diwali 2024
Ganesh-Lakshmi Puja in Diwali

Ganesh-Lakshmi Puja in Diwali: दिवाली खुशियों के साथ परम्पराओं का भी त्यौहार है जिसे हिन्दू धर्म में सबसे बड़ा त्यौहार माना जाता है। इस साल 12 नवंबर को दिवाली मनाई जाएगी। प्रेमभाव के साथ इस दिन गणेश-लक्ष्‍मी जी की स्थापना कर उनकी पूजा की जाती है लेकिन इन सब के बीच एक सवाल है जो लोगों के मन में रहता है कि “आखिर दिवाली के दिन मां लक्ष्‍मी के साथ गणेश जी की पूजा ही क्‍यों की जाती है? इसके अलावा माता लक्ष्‍मी को सदैव गणपति की दाहिनी (राइट) साइड पर ही क्‍यों रखा जाता है?

क्यों होता है दिवाली पर लक्ष्मी पूजन?

दीवाली के दिन होने वाली लक्ष्‍मी पूजन को लेकर एक पारम्परिक कहानी काफ़ी प्रसिद्ध है। हुआ यूं था कि एक बार माँ लक्ष्‍मी अपने महालक्ष्‍मी रूप में इंद्रलोक में भ्रमण करने पहुंची। वहाँ पहुंचने पर माता की शक्ति से अन्य देवताओं की भी शक्ति बढ़ गई। इससे वहाँ मौजूद सभी देवताओं को घमंड हो गया कि अब उन्‍हें कोई भी हरा नहीं सकता है। तो एक बार इंद्र अपने वाहन ऐरावत हाथी पर सवार होकर कहीं जा रहे थे, उसी रास्ते से ऋषि दुर्वासा भी अपनी माला पहनकर गुजर रहे थे। तभी खुश होकर ऋषि दुर्वासा ने अपनी पहनी हुई माला इंद्र के गले में फेंककर डाली, लेकिन इंद्र उसे ठीक से पकड़ नहीं पाए और वो माला इंद्र की जगह उनके वाहन ऐरावत हाथी के गले में पड़ गई। तभी हाथी ने भी सिर को हिलाया तो वो माला जमीन पर गिर गई। जिससे ऋषि दुर्वासा इंद्र से नाराज़ हो गए और उन्‍होंने उन्हें श्राप दे दिया कि जिसके कारण तुम खुद पर इतना घमंड कर रहे हो, वो पाताल लोक में चली जाए।

Ganesh-Lakshmi Puja in Diwali
diwali 2023

इस श्राप के कारण माँ लक्ष्‍मी को पाताल लोक जाना पड़ा ,वहीं माँ लक्ष्मी के चले जाने से इंद्र व अन्य
देवगढ़ भी कमजोर हो गए और सभी राक्षस मजबूत हो गए। तब इस संसार के पालनहारी भगवान नारायण ने लक्ष्मी को पाताललोक से वापस बुलाने के लिए समुद्र मंथन करवाया। सभी देवताओं और राक्षसों की कोशिश से समुद्र मंथन हुआ तो इसमें कार्तिक मास की कृष्‍ण पक्ष की त्रयोदशी के दिन भगवान धनवंतरि निकले। जिसे हम धनतेरस के रूप मे मनाते है और अमावस्‍या के दिन लक्ष्‍मी बाहर आईं। इसलिए हर साल कार्तिक महीने की अमावस्‍या पर मां लक्ष्‍मी की पूजा होती है। क्योंकि इसी दिन श्रीराम वनवास से लौटकर अयोध्‍या वापस आए थे, इस खुशी में तब अयोध्या के घरों को दीपक से रोशन किया गया था, इसलिए कार्तिक महीने की अमावस्‍या पर दिवाली मनाई जाने लगी। इस दिन पहले लक्ष्‍मी पूजन होता है, उसके बाद घर को दीपक से रोशन किया जाता है।

क्‍यों होता है लक्ष्मी-गणेश पूजन?

माँ लक्ष्मी धन की देवी हैं, जो भक्तों को ऐश्वर्या प्रदान करती है लेकिन जब यह किसी के पास ज्यादा हो जाती है तो उसे अहंकार आ जाता है। बुद्धि भ्रष्ट हो जाती है, तभी आता है गणेश जी का काम। क्योंकि गणपति बुद्धि के देवता माने जाते है। जहां गजानन का वास होता है, वहाँ के सभी परेशानी खत्म हो जाती है, शुभ ही शुभ होता है। गणेश जी वो देव हैं जिन्होंने कुबेर के अहंकार को भी तोड़ा था। इसलिए दिवाली पर माँ लक्ष्मी के साथ गणेश जी को भी पूजा जाता है।

नारायण की पूजा क्‍यों नहीं होती?

यह तो हम सब जानते है कि दीवाली का त्यौहार चतुर्मास में आता है इस समय विष्णु भगवान योग निद्रा में होते है और उनकी यह तपस्या भंग नहीं हो इसलिए उनकी पूजा इस दिन नहीं की जाती है। पर दिवाली के बाद देवउठनी एकादशी पर नारायण निद्रा से बाहर आते है। उसके बाद ज़ोर-शोर से देव दिवाली मनाई जाती है।

लक्ष्‍मी जी गणपति के दायीं तरफ ही क्‍यों विराजमान हैं?

माँ लक्ष्‍मी के कोई संतान नहीं है, जिसकी वजह से माँ लक्ष्मी ने गणेश को अपना दत्‍तक पुत्र माना है। बेटे के साथ मां को हमेशा दाहिनी तरफ पर ही बैठना चाहिए पति के हमेशा बाई तरफ़ बैठना चाहिए। यही कारण है कि लक्ष्मी- नारायण की पूजा के समय गणेश जी को हमेशा लक्ष्मी जी के दाई तरफ़ बैठाया जाता है।