Ganesh Chaturthi Katha: हिंदू धर्म शास्त्रों में सावन और भाद्रपद के महीने में सभी हिंदू व्रत- त्योहारों की शुरुआत मानी गई हैं। सावन महीने में भगवान शिव की आराधना की जाती है तो भाद्रपद का महीना भगवान श्री कृष्ण और गणेश जी की बहती करने के लिए श्रेष्ठ माना गया है। भाद्रपद के महीने में ही भगवान श्रीकृष्ण और भगवान गणेश के जन्मोत्सव का पर्व हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है।
इस बार गणेश चतुर्थी का पर्व मंगलवार, 19 सितंबर 2023 को मनाया जायेगा। हिंदू धर्म में भगवान गणेश की पूजा के बिना कोई भी मांगलिक आयोजन संपन्न नहीं माना जाता है। इसीलिए सभी शुभ कार्यों में, पूजा पाठ, विवाह संस्कार और यज्ञ अनुष्ठान जैसे अवसरों पर सबसे पहले भगवान गणेश का आह्वान किया जाता है। शास्त्रों में बताया गया है कि भगवान गणेश माता पार्वती और भगवान शिव के पुत्र थे लेकिन माता पार्वती के गर्भ से भगवान गणेश का जन्म नहीं हुआ था। आज इस लेख के द्वारा हम आपको बताएंगे माता पार्वती के गर्भ से जन्म न लेने के बाद भी भगवान गणेश गौरी पुत्र क्यों कहलाते हैं। आइए जानते हैं-
हल्दी के उबटन से बने थे श्री गणेश

पंडित इंद्रमणि घनस्याल बताते हैं कि शिवपुराण में भगवान श्री गणेश के जन्म की कथा का वर्णन मिलता है। कथा के अनुसार, माता पार्वती जब स्नान के लिए जाती तब नंदी को पहरेदारी का कार्य सौंप देती थीं। जब भी भगवान शिव माता पार्वती से मिलने आते तब नंदी जी भगवान शिव की आज्ञा के पालन करते हुए उन्हें अंदर जाने देते थे। इस बात से माता पार्वती को बहुत ही बुरा लगा कि नंदी जी ने उनकी आज्ञा न मानकर शिव जी को अंदर आने दिया।
इसीलिए माता पार्वती ने सोचा कि उन्हें कोई ऐसा प्राणी चाहिए जो उनकी आज्ञा के विरुद्ध न जाए। एक दिन माता पार्वती जब हल्दी का उबटन लगा रही थी तब उन्होंने अपने शरीर पर लगे हल्दी के उबटन को उतारकर एक बालक का पुतला बनाया और अपनी दिव्य शक्तियों से उस पुतले में प्राण डाल दिए। प्राण डालने के बाद वह पुतला एक बालक की तरह ही जीवित हो गया। माता पार्वती ने उबटन से बने इस बालक का नाम श्री गणेश रखा। इसी कारण भगवान गणेश को पार्वती पुत्र कहा जाता है।
माता पार्वती को मिले वरदान से जन्मे श्री गणेश

गणेश चालीसा में वर्णित कथा के अनुसार, माता पार्वती ने पुत्र प्राप्ति के लिए जंगलों में कठोर तप किया था। माता पार्वती के इसी कठोर तप की शक्ति से एक दिव्य शक्ति उत्पन्न हुई। इस दिव्य शक्ति ने माता पार्वती से कहा कि माता पार्वती बिना गर्भ धारण के ही एक बुद्धिमान और विवेकशील पुत्र की माता बनेंगी। इतना कहकर तप की दिव्य शक्ति एक बालक के रूप में बदल गई, जिसे माता पार्वती ने अपना पुत्र माना और उसे बाल गणेश का नाम दिया।
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