इस मानसून फंगल इंफेक्शन से अपने बच्चों को बचाएं: Fungal Infection in Children
Fungal Infection in Children

Fungal Infection in Children: मानसून गर्मी की तपिश से राहत देता है हालांकि यह अपने साथ कई स्वास्थ्य समस्याएं लेकर आता है। जिनमें से एक है- फंगल इंफेक्शन, जो मानसून के मौसम में बहुत तेजी से बढ़ता है। इसका सीधा कनेक्शन हमारी स्किन और बढ़ते वातावरणीय मॉश्चर लेवल से होता है। वातावरण की नमी हमारी त्वचा के पोर बंद कर देती है जिससे हमारी अंदरूनी त्वचा सांस नहीं ले पाती। समुचित मात्रा में ऑक्सीजन नहीं पहुंच पाने की वजह से शरीर में पसीना ज्यादा आता है। कई तरह के त्वचा रोग होने की संभावना रहती है।

यूं तो फंगल इंफेक्शन छोटे-बड़े किसी को भी हो सकता है। विशेष रूप से बच्चे मानसून की बारिश के दौरान फैलने वाले संक्रमणों के प्रति अत्यधिक संवेदनशील होते हैं। बच्चों में आम संक्रमण कम प्रतिरोधक क्षमता और फंगल रोगों के कारण होता है। कम प्रतिरक्षा स्तर बच्चों को सभी प्रकार की बीमारियों और त्वचा संक्रमणों के प्रति संवेदनशील बनाता है। नमी फंगस के लिए प्रजनन स्थल है और मानसून का मौसम कवक-आधारित संक्रमणों के विकास और वृद्धि के लिए एक आदर्श वातावरण प्रदान करता है, जिनमें एथलीट फुट, जॉक खुजली, डायपर रैश और दाद सबसे आम हैं।

डर्मेटोफाइटोसिस फंगल इंफेक्शन

पसीने के कारण त्वचा लंबे समय तक गीली रहती है। जब यह आपस में रगड़ती है तो त्वचा पर दाने हो जाते हैं जिसे इंटरट्रिगो कहा जाता है। यह बच्चों में होने वाला एक बहुत ही आम त्वचा संक्रमण है। जो क्षेत्र आमतौर पर प्रभावित होते है- बगल, घुटनों के पीछे, अंदरूनी जांधो, पेट के नीचे का भाग, गर्दन पर सिलवटें, कमर, हाथ-पैरों की उंगलियों के बीच में। इसमें प्रभावित जगह पर लालिमा और खुजली रहती है। त्वचा में दरारें पड़ सकती हैं, त्वचा गीली और चिपचिपी हो जाती है। इसके अलावा दाद यानी डर्मेटोफाइटोसिस फंगस के कारण त्वचा पर चकत्ते यानी टीनिया क्रुरिस भी हो जाता है। जिसमें त्वचा सूखी, पपड़ीदार और लालिमायुक्त हो जाती है।

Fungal Infection in Children
Dermatophytosis Fungal Infection in Children
  • एथलीट फुट- को चिकित्सकीय भाषा में टीनिया पेडिस कहा जाता है। संक्रमण पैर की उंगलियों के बीच सफेद पपड़ीदार दाने के रूप में दिखाई देता है जिसमें समय के साथ खुजली होने लगती है। क्षेत्र को रगड़ने से क्षणिक राहत मिलती है, लेकिन बाद में यह असहनीय जलन में बदल जाती है।
  • जॉक इच- को चिकित्सकीय भाषा में टीनिया क्रूरिस कहा जाता है और यह आमतौर पर जांघ की आंतरिक तह को प्रभावित करता है जो अंडरवियर के संपर्क में आता है जहां पसीना जमा होता है। इससे लाल दाने और जलन होती है और खुजली करने की इच्छा होती है।
  • डायपर रैश- एक लाल त्वचा की सूजन है जो शिशुओं को तब प्रभावित करती है जब उनकी गीली नैपी को नियमित रूप से सूखी नैपी में नहीं बदला जाता है।
  • नाखून फंगल संक्रमण- पानी के अधिक संपर्क में रहने, अत्यधिक पसीना आने और संक्रमित त्वचा को खरोंचने के कारण बच्चों में काफी होता है। नाखून के आसपास की त्वचा लाल और सूज जाती है।
  • बालों में फंगल इंफेक्शन- तापमान में नमी का असर बालों पर भी पड़ता है। बारिश में भीगने, गीले होने, पसीने से तरबतर होने या मॉश्चर अधिक होने के कारण इस मौसम में बाल भी बच नहीं पाते। नियमित सफाई के अभाव में चिपचिपे, बेजान और फंगल इंफेक्शन हो जाते हैं। स्कैल्प पर डेंड्रफ और दाने हो जाते हैैं जिससे जड़े कमजोर पड़ जाती हैं और बाल झड़ने लगते हैं।

रखें ध्यान

निवारण हमेशा इलाज से बेहतर है। मानसून के मौसम के दौरान उचित देखभाल और स्वच्छता निश्चित रूप से बच्चों में होने वाले कई संक्रमणों और बीमारियों को दूर रखने में मदद कर सकती है।

  • व्यक्तिगत स्वच्छता है जरूरी- बच्चों की साफ-सफाई का विशेष ध्यान रखें। नहाते समय त्वचा की सभी परतों को साबुन से साफ करें। फंगस नमी पर पनपता है और इसलिए नहाने के बाद अच्छी तरह पोंछना बहुत जरूरी है, खासकर घुटनों, कोहनियों, गर्दन, बांहों, उंगलियों और पैर की उंगलियों को अच्छी तरह पोंछना। खेलने या किसी एक्टिविटी के बाद आए पसीने से होने वाली परेशानियों से बचने के लिए बच्चे को हल्का-सा नहला दें। इससे बच्चा फ्रेश महसूस करेगा। पसीने की नमी से बचाने के लिए बच्चों के बाल सप्ताह में कम से कम दो बार माइल्ड एंटी डेंड्रफ शैंपू जरूर धोएं। जहां तक हो सके बालों में तेल न लगाएं। बच्चों को नहलाने के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला पानी ज्यादा गर्म या ठंडा नहीं होना चाहिए बल्कि गुनगुना पानी ही होना चाहिए। डायपर रेशैज से बचने के लिए शिशु के डायपर क्षेत्र को साफ रखें और डायपर को कुछ समय बाद बराबर बदलते रहना चाहिए।
  • नाखूनों का रखें ध्यान- बच्चों के नाखून नियमित रूप से काटने चाहिए और मैल वगैरह को साफ करना चाहिए। इससे पेट संबंधी बिमारियों का भी खतरा नहीं रहता। सप्ताह में एकाध बार एंटी-फंगल क्रीम का उपयोग करना फायदेमंद है।
  • हैंड हाइजीन भी जरूरी-हाथों को बार-बार साबुन और पानी से धोना चाहिए। खासकर बाहर से आने पर या खाना खाते समय हाथ जरूर साफ करने चाहिए या फिर हैंड सेनिटाइजर का उपयोग करना चाहिए।
  • आरामदायक कपड़े पहनाएं- मानसून के दौरान जलवायु बहुत गर्म और आर्द्र होती है। इसलिए बच्चों को हल्के, ढीले-ढाले और सूती कपड़े ही पहनाएं। सबसे जरूरी है कि बच्चों को कपड़े रोज बदलने चाहिए। टाइट फिटिंग वाले कपड़े नमी को फंसाते हैं और फंगस को आकर्षित करते हैं। जबकि आरामदायक कपड़ों में हवा आसानी से जा पाती है और ये आसानी से पसीना सोख लेते हैं। इससे शरीर में मॉश्चर कम होने पर फंगल इंफेक्शन का खतरा कम रहता है।
  • खुले पैर के जूते, सैंडल, या चप्पल पहनाएं-हालांकि खुले पैर के जूते और सैंडल भी मानसून के दौरान गीले हो जाते हैं। लेकिन बंद जूतों की तरह उनमें शायद ही कभी पानी जमा रहता है, जो निकालने तक भीगते, गीले और बदबूदार हो जाते हैं। एथलीट फुट की समस्या होने पर जितनी जल्दी हो सके पैरों को सुखाकर एंटी-फंगल पाउडर लगाने से दर्द और दर्द काफी कम हो जाता है। बारिश में जाते वक्त कोशिश करें कि बच्चों को गम शूज पहनाएं। इससे उनके पैर भीगने से बचे रहेंगे।
  • डॉक्टर से करें संपर्क- बच्चों की त्वचा बहुत कोमल और इम्यूनिटी कमजोर होती है और बीमारियों से आसानी से प्रभावित होते हैं। आपातकालीन दवाएं अपने पास रखनी चाहिए और तुरंत डॉक्टर से परामर्श लेना बहुत मददगार होगा।

(डॉ सीरिशा सिंह, त्वचा रोग विशेषज्ञ, दिल्ली)