क्या आप जानते हैं दुर्गा पूजा से जुड़ी बंगालियों की ये 10 खास बातें ?: Durga Puja Facts
Durga Puja Facts

Durga Puja Facts: ‘दुर्गा पूजा’ नाम लेते ही आंखों के सामने मां दुर्गा की विशाल आकर्षक प्रतिमाएं, भव्य पंडाल, चहल-पहल से भरा माहौल सब घूमने लगता है। क्लासिक प्रवृत्ति के माने जाने वाले बंगाली समुदाय के लिए दुर्गा पूजा की अत्यंत महत्ता है। पश्चिम बंगाल में इस दिन त्याहोर के समय दस दिनों की छुट्टियों होती है। समूचा बंगाल और देश-विदेश में जहां भी बंगाली समुदाय के लोग रहते हैं, उत्सव के माहौल में रंगे होते हैं। आइए इस बार आपको बताते हैं दुर्गा पूजा से जुड़े बंगालियों की 10 खास बातें..

1. दस दिन का त्यौहार दस दिन की छुट्टी

दुर्गा पूजा का त्योहार 10 दिनों का होता है। हालांकि षष्ठी के दिन से इसकी महता जो-शोर से शुरू हो जाती है, जब देवी के पट खुलने के साथ ‘अधिवासन’ की शुरूआत होती है। इस दिन से पूजा में नये कपड़े पहनने की शुरूआत हो जाती है चाहे आपके पास एक नया रूमाल ही हो। हालांकि बदलते वक्त में तेजी से दौड़ती भागती जिन्दगी में लोग अब सिर्फ 5 दिनों की ही छुट्टी लेते हैं, षष्ठी से दशमी तक।

2. नये कपड़े (धोती-पायजामा कुर्ता, लाल बॉर्डर की व्हाइट साड़ी)

दुर्गा पूजा के दस दिन और नये कपड़ों की भरमार होती है। प्रत्येक बंगाली परिवार के प्रत्येक सदस्यों के लिए 10-10 नये कपड़े तो होते ही हैं। पुरुष सदस्य पूजा के दौरान नये धोती-कुरता पायजामा पहनते हैं और महिलाएं लाल किनारे की सफेद या क्रीम साड़ी। यह पारंपरिकता को निभाने का एक महत्वपूर्ण कदम है। इस दिन मंदिर और पंडालों में चारो तरफ पुरुष वर्ग धोती-कुरता-पायजामा और महिलाएं लाल किनारे की सफेद साड़ियों में सजी-धजी दिखती है।

3. पुष्पांजलि

दुर्गा पूजा की वास्तविक धूमधाम षष्ठी के दिन से शुरू होती है दूसरे दिन महासप्तमी से महानवमी तक प्रत्येक बंगालियों के लिए अत्यंत व्यस्तता भरे दिन होते हैं। महासप्तमी से मां दुर्गा को पुष्पाजंलि देने की शुरूआत होती है, जिसमें सारा जनसमुदाय उमड़ जाता है। पुष्पांजलि देने की महत्ता इसलिए भी होती है, क्योंकि इसी के बाद आप पानी ग्रहण कर सकते हैं। भले ही आप 10 दिन पूजा न कर सकें, कोई बात नहीं, लेकिन पुष्पाजंलि की महत्ता अनिवार्य है।

4. शुद्ध सात्विक भोजन और मिठाइयों की भरमार

ब्ंगाली समुदाय में धर्म को लेकर इतनी बंदिशे नहीं है कि आप ये ना करो या वो ना करो। बंगाली समुदाय नॉन वेज खाते हैं, लेकिन दुर्गा पूजा के दौरान घर का पूरा माहौल उत्सवमय होता है तो घर में नाॅनवेज खाने की सख्त मनाही होती है। भले ही आप बाहर खा लो। लेकिन महाषष्ठी से लेकर विजयादशमी तक पांच दिन नॉनवेज खाना निषिद्ध रहता है। जिसका आप उल्लंघन नहीं कर सकते। यूं तो प्रत्येक बंगाली परिवार में हरेक दिन ही मिठाइयां खाई जाती हैं, लेकिन दुर्गा पूजा के दौरान तो मिठाइयां खाने और खिलाने का एक दौर सा ही चलता रहता है जैसे – संदेश, राजभोग, चन्द्रकला, लवंगलतिका, रसगुल्ला वगैरह-2 ।

5. धुनुची नृत्य और ढाक की थाप

दुर्गा पूजा के दौरान विशेष रूप से ढाक वालों को बुलाया जाता है। यह ढाक भी विशेष रूप से तैयार होता है। संध्या आरती के समय ढाक की थाप पर मिट्टी के कुल्हड़ में नारियल के सूखे छिलके कपूर के साथ जलाकर उसे हाथों में लेकर स्त्रियां-पुरुष और बच्चे मां दुर्गा के सम्मुख नृत्य करते है। यह अपनी कला के प्रदर्शन के साथ एक प्रतियोगिता भी होती है, शर्त बस इतनी है कि एक भी चिंगारी जमीं पर न गिरे। ढाक की थाप पर धुनुची नृत्य करने का कारण मां दुर्गा के मायके आने पर, अपने उत्साह व उल्लास प्रदर्शन के लिए किया जाता है।

Also read: ये हैं भारत के सबसे मशहूर और भव्य दुर्गा पूजा पंडाल: Durga Puja Pandal in India

6. आनंद मेला

दुर्गा पूजा के दौरान बनाये गये विशाल और भव्य पंडालों में षष्ठी या सप्तमी के दिन, विशेष रूप से महिलाओं के पाक कला में दक्ष होने की प्रतिभा को सम्मानित करने के लिए आनंद मेला का आयोजन किया जाता है। इस दौरान महिलाएं अपने-अपने घरों से खाद्य पदार्थ बनाकर लाती है और आनंद मेला के दौरान स्टालों पर बिक्री करती है। जिनके व्यंजन सर्वाधिक स्वादिष्ट होते हैं, और जिनके स्टालों पर सर्वाधिक बिक्री होती है, उन्हें पुरस्कारों से सम्मानित किया जाता है।

7. मंदिर में भोग-प्रसाद

दुर्गा पूजा के अवसर पर प्रत्येक मंदिरों और पंडालों में दोपहर की पूजा के बाद भोग-प्रसाद का आयोजन किया जाता है। जिसमें मंदिर में आने वाले प्रत्येक श्रद्धालु को बाकायदा सम्मान के साथ बिठाकर प्रसाद ग्रहण करने के लिए दिया जाता है। 
चूंकि मां दुर्गा को ‘अन्नपूर्णा’ भी माना जाता है और उनके द्वारा कभी कोई भूखा नहीं जाता, इसी मान्यता को ध्यान में रखकर भोग प्रसाद वितरण के दौरान अमीरी-गरीबी का भेदभाव, धर्म मतभेद की समस्या को हमेशा नजरअंदाज किया जाता है।

8. अपराजिता बांधने की रस्म

दुर्गा पूजा के दसवें दिन विसर्जन पूजा के बाद पंड़ित जी प्रत्येक श्रद्धालुओं के हाथ में अपराजिता (अपराजिता फूल की पतली शाखाएं) बांधते हैं, जिसके पीछे स्वस्थ व दीर्घायु रहने का आशीवार्द छिपा होता है। अपराजिता बांधने के पश्चात मां दुर्गा के पैरों के सामने रखे पानी से भरे बर्तन में अपने दोनों हाथ डुबोकर सामने रखे आइने में देवी के पैर देखन की प्रथा है। माना जाता है कि ऐसा करने से आपके खाना बनाने की कला में दिन-ब-दिन निखार आता है और आप खाना बनाने में सिद्धहस्त हो जाते हैं।

9. सिंदूर खेला

दशमी के दिन विसर्जन की पूजा के पश्चात माँ को विदाई देने के लिए सुहागिन स्त्रियां मां दुर्गा की प्रतिमा को सिंदूर लगाती है, साबुत पान के पत्तों से उनके दोनों गालों को सहलाती हैं और उनका मुँह मीठा करती हैं। फिर सभी सुहागिन स्त्रियां एक-दूसरे के मांग और सुहाग चिन्ह शाखा-पोला में सिंदूर  लगाती है और मिठाई खिलाती है। उसके बाद विदाई के उपलक्ष्य में सिंदूर की होली खेली जाती है। मान्यता है कि इस समय वहां उपस्थित किसी कुंवारे लड़के या लड़की को भी सिंदूर लगा देने से उनका विवाह शीघ्र हो जाता है।

10. शान्ति जल और विजया दशमी की शुरूआत

प्रतिमा विसर्जन के बाद, जो भी लोग विसर्जन यात्रा में शामिल हुए थे, वे सभी लोग वापस मंदिर आते हैं। वहां पंडित जी सभी लोगों पर शान्ति जल छिड़कते हैं और सभी को मिठाइयां देते हैं। बदलते समय के साथ अब लोगों को छोटे-छोटे पैकेटों में मिठाइयां दे दी जाती हैं। फिर सभी हमउम्र लोग आपस में गले मिलते हैं और एक-दूसरे को विजयादशमी की शुभकामनाएं देते हैं। बच्चे बड़ों के चरण स्पर्श करके उनका आशीर्वाद लेते हैं। घरों में माएं और दादियां सभी को धान और दूब से मस्तक पर रखकर आशीर्वाद देते हैं। विजयादशमी की प्रथा इस दिन से शुरू होकर दीपावली के दिन तक चलती है। इस दौरान घर आने वाले प्रत्येक मेहमानों का मुंह मीठा करवाने की प्रथा है।

तो यह थी दुर्गा पूजा से जुड़े बंगाली समुदाय की 10 खास और अनकही जानकारियां, जिससे अधिकांश लोग अनभिज्ञ हैं।

 

यह भी पढ़े –

जानिए मां दुर्गा को यह दिव्यास्त्र कहां से प्राप्त हुए

माँ को अपर्ण करें ये नौ नवरात्रि भोग

पहाड़ों में है मां वैष्णो का धाम, जानिए कब, कैसे करें यात्रा

 

आप हमें फेसबुक और ट्विटर पर भी फॉलो कर सकते हैं।