डायपर पहनने पर बच्चों को नहीं होगा इंफेक्शन, इन बातों का रखें ध्यान: Diaper Infection Precaution
Diaper Infection Precaution

Diaper Infection: आधुनिक बिजी लाइफ स्टाइल में नवजात शिशु और छोटे बच्चों में डिस्पोजेबल डायपर के बढ़ते चलन का परिणाम है-डायपर रैशेज और यूटीआई इंफेक्शन। यूरिन पास करने के बावजूद गीलापन महसूस न करने के कारण हालांकि बच्चे डायपर में ज्यादा खुश रहते हैं। लेकिन कभी-कभी डायपर के ज्यादा समय तक पहने रहने या गंदा होने के बावजूद 4-5 घंटे तक बदले न जाने के कारण उनकी नाजुक त्वचा प्रभावित हो जाती है। साथ ही साफ-सफाई पर ध्यान न रखे जाने पर इस जगह कई तरह के बैक्टीरिया पनपने लगते हैं। जो बच्चे के डायपर एरिया की त्वचा पर में रैशेज जैसे फंगल इंफेक्शन बढ़ाते हैं।

डायपर पहनने से होने वाली समस्याएं

अधिक देर तक गीला या गंदा डायपर पहनने से बच्चे को आमतौर पर स्किन एलर्जी हो जाती है। डायपर एरिया में पसीना आने से समस्या और बढ़ सकती हैं। छोटे-छोटे लाल दाने निकलने लगते हैं जिनमें डायपर की रगड़ से खून भी निकलने लगता है और दर्द होती है। यहां तक कि गंदगी लगी रह जाने से उसके प्राइवेट पार्ट्स में जख्म भी हो जाते हैं जिनमें इचिंग और दर्द रहता है। ऐसी स्थिति में बच्चा बैचेन रहता है, चिड़चिड़ा हो जाता है और बेमतलब रोता है। यूरिन इंफेक्शन से हल्का बुखार भी  आ सकता हैै। खाना-पीना तक छोड़ देता है।

समुचित पाॅटी ट्रेनिंग न दिए जाने पर या बार-बार नेपी बदलने के बजाय कई पेरेंट्स 2-3 साल तक के कई बच्चों को भी डायपर पहनाते हैं। डायपर में ऐसे बच्चे कंफर्टेबल महसूस नहीं करते। आमतौर पर बंधा-बंधा महसूस करने से वे ठीक से उठबैठ नहीं पाते या ठीक से चल नहीं पाते, डायपर की रगड़ से उनकी जांघों और टांगों में दर्द भी हो सकता है। गंदा डायपर ज्यादा देर तक पहने रहने पर उन्हें त्वचा और यूरिन इंफेक्शन होने की संभावना ज्यादा रहती है। ऐसे बच्चे मेंटल स्ट्रेस में भी देखे जा सकते हैं। स्वभाव से चिड़चिड़े होते हैं, बात-बात पर चीखते-चिल्लाते हैं, कभी-कभी अपने हमउम्र बच्चों या बड़ों के साथ सामंजस्य नहीं बिठा पाते, लड़ते हैं, बात को अनसुना करते हैं।

क्या है कारण

Diaper Infection
Reason of Diaper Infection

देखा जाए तो ये डिस्पोज़ेबल डायपर छोटे-छोटे ग्रैन्यूल से बनते हैं जो यूरिन के सुपर एब्जार्बर का काम करते हैं यानी यूरिन अवशोषित करते हैं। ये ग्रैन्यूल डाइऑक्साइड जैसे हानिकारक कैमिकल्स से बनते है। डायपर की आउटर लेयर रिफाइंड प्लास्टिक पॉलिथिलीन फिल्म से बनती है जो ग्रैन्यूल द्वारा एब्जार्ब किए गए यूरिन को बाहर नहीं निकलने देती और बच्चे को गीलेपन का अहसास नहीं होने देती। लेकिन इस आउटर लेयर की वजह से डायपर में से हवा पास नहीं होती और यही वजह है कि लंबे समय तक डायपर पहनने वाले बच्चे इंफेक्शन का शिकार हो जाते हैं। 

ये डायपर कभी-कभी पेरेंट्स की लापरवाही से बच्चे को नुकसान भी पहुंचाते हैं। डायपर का चुनाव करते समय उनकी क्वाॅलिटी और ठीक नाप का अंदाजा नहीं लग पाता। ऐसे डायपर पहनने से बच्चे की परेशानी और बढ़ सकती है। कई बार पेरेंट्स ठीक से चैक न करने की वजह से अंदाजा नहीं लगा पाते कि डायपर कितना गंदा हुआ है। अक्सर माना जाता है कि बच्चे को एक डायपर कम से कम 4 घंटे तक पहनाया जा सकता है। जबकि ऐसा मानना सर्वथा गलत है क्योंकि अगर बच्चा यूरिन ज्यादा पास करेगा, तो डायपर जल्दी गंदा होगा। इस बीच अगर बच्चे ने मल-त्याग कर दिया और डायपर चैक करके बदला नहीं गया, तो बच्चें को इंफेक्शन होने की पूरी संभावना रहती है।

डायपर बदलते समय हाइजीन का ध्यान न रखना इंफेक्शन होने का बड़ा कारण है। अगर डायपर सही समय पर बदला न जाए या फिर बदलने से पहले डायपर एरिया को साफ न किया जाए, तो ऐसे में बैक्टीरिया जल्दी पनपते हैं और इंफेक्शन बढ़ा सकते हैं।

कब जाएं डाॅक्टर के पास

कई बार बच्चे अपनी बात बोल नहीं पातें, उनके हाव-भाव से ही पेरेंट्स जज करते हैं कि उसे किसी तरह की परेशानी हो रही है। जब आप महसूस करें कि बच्चा बैचेन है, बेमतलब रो रहा है, दूध नहीं पी पा रहा है या कुछ खा नहीं पा रहा है, अपना हाथ बार-बार डायपर की ओर ले जा रहा है , डायपर पकड़ रहा है या खींच रहा है, तो पेरेंट्स को समझ लेना चाहिए कुछ गड़बड़ है। उन्हें तुरंत डायपर चैक करना चाहिए। अगर रैशेज हों या बच्चे को हल्का सा भी बुखार हो तो तुरंत डाॅक्टर को दिखाना चाहिए।

क्या है उपचार

डायपर से होने वाले यूटीआई इंफेक्शन को दूर करने के लिए डाॅक्टर बच्चे को सिरप फार्म में एंटीबाॅयोटिक मेडिसिन देते हैं जो बच्चे की स्थिति के हिसाब से 3-5 दिन का कोर्स होता है। रैशेज पर रेगुलर लगाने के लिए एंटी-रैशेज क्रीम और कार्न स्टार्च युक्त एंटी-फंगल टैल्कम पाउडर दिया जाता है। इस पाउडर को डायपर पहनाने से पहले लगाने से त्वचा ड्राई और साॅफ्ट रहती है। 

बरतें सावधानी

इसके अलावा डायपर इंफेक्शन से बचने के लिए डाॅक्टर कुछ सावधानियां बरतने की हिदायत भी देते हैं- 

  • डायपर हमेशा अच्छी क्वाॅलिटी का खरीदें। बाजार में कई वैराइटी के डायपर मिलते हैं। आंकड़ों के हिसाब से उनमें हग्गीज़, पैम्पर स्वैडलर, जाॅनसन बेबी नैपी पैड, स्नग़ीज़, ममी पोको पैन डायपर बेस्ट हैं। पैम्पर स्वैडलर जैसे डायपर के ऊपर तो पीली लाइन बनी होती है जो बच्चे के यूरिन करने पर नीले रंग की हो जाती है। इससे डायपर गंदा होने का पता चल जाता है।
  • खरीदते समय ध्यान रखें कि वो बच्चे की उम्र और साइज के मुताबिक हो। वो पतला और नर्म हो ताकि बच्चे को पहनने में असुविधा न हो। पहनने में मुश्किल होने के कारण छोटे बच्चे को पैंट स्टाइल के डायपर का इस्तेमाल न करें। अधिक साॅफ्ट होने के कारण जहां तक हो सके जैल बेस डायपर का उपयोग करें। 
  • डायपर पहनाने के बाद कम से कम 20-25 मिनट के बाद चैक करते रहें। ताकि उसकी पाॅजीशन का पता चलता रहे। अगर बच्चा पाॅटी करता है तो बिना देर किए डायपर बदल दें।
  • डायपर पहनाने या बदलने से पहले रोजाना बच्चे की स्किन पर एंटी-फंगल टैल्कम पाउडर या एंटी-रैशेज क्रीम का इस्तेमाल करें। डायपर बदलने से पहले उस एरिया और प्राइवेट पार्ट्स को गुनगुने पानी में रुई भिगोकर अच्छी तरह साफ करें। साॅफ्ट टाॅवल से अच्छी तरह पौंछ दें। बच्चे को बिना डायपर पहनाए 10-15 मिनट के लिए ऐसे ही छोड़ दें ताकि डायपर एरिया में हवा लग सके। या फिर डायपर न पहना कर लूज़ लोअर पहनाएं। कोशिश करे कि डायपर दिन में न पहनाएं, सिर्फ सोते समय या रात को ही पहनाएं ताकि वह बिना किसी परेशानी के सो सके।

( डाॅ भूपेन्द्र सिंगला, चाइल्ड स्पेशलिस्ट, सिंगला क्लिनिक, नई दिल्ली)