Kamakhya Temple Navratri
Kamakhya Temple Navratri

Overview:मूर्ति नहीं, योनिकुंड है देवी का स्वरूप, नवरात्रि में खास है कामाख्या मंदिर

असम स्थित कामाख्या शक्तिपीठ 51 शक्तिपीठों में से एक है, जहां देवी सती का योनिभाग पूजित है। यहां देवी की मूर्ति नहीं, बल्कि प्राकृतिक योनिकुंड की पूजा होती है। नवरात्रि में इस मंदिर की महिमा और बढ़ जाती है, जब हजारों भक्त यहां आकर मां से आशीर्वाद लेते हैं। मान्यता है कि कामाख्या के दर्शन और पूजा से हर मनोकामना पूरी होती है।

Kamakhya Temple during Navratri: नवरात्रि का समय आते ही पूरे भारत में देवी मंदिरों में भक्तों की भीड़ लग जाती है। हर जगह माता रानी के भजन, पूजा और सजावट का खास माहौल देखने को मिलता है। लेकिन असम में एक ऐसा मंदिर है, जिसकी परंपरा सबसे अलग है। यह है कामाख्या मंदिर, जिसे 51 शक्तिपीठों में गिना जाता है। यहां देवी की मूर्ति नहीं है, बल्कि एक प्राकृतिक योनिकुंड की पूजा होती है।

मान्यता है कि जब देवी सती ने अपना शरीर त्याग दिया था, तो उनके अंग अलग-अलग जगहों पर गिरे। उन्हीं में से योनिभाग कामाख्या में गिरा और तभी से यह जगह शक्तिपीठ कहलाती है। इस कारण यहां देवी को शक्ति और सृजन का रूप मानकर पूजा जाता है।

नवरात्रि में इस मंदिर की भीड़ सबसे ज्यादा होती है। भक्त मानते हैं कि यहां आकर सच्चे मन से मां की आराधना करने से हर मनोकामना पूरी होती है। खास बात यह है कि यहां पूजा सिर्फ परंपरा नहीं, बल्कि जीवन और शक्ति का उत्सव है। नवरात्रि के नौ दिनों में कामाख्या मंदिर का माहौल भक्तों के लिए किसी आध्यात्मिक ऊर्जा से कम नहीं होता।

कामाख्या मंदिर की नवरात्रि में खास महिमा

Devotees offering prayers at Kamakhya Shaktipeeth during Navratri
Kamakhya Temple decorated during Navratri festival in Assam

नवरात्रि के समय कामाख्या मंदिर का रंग कुछ अलग ही होता है। इस दौरान यहां दूर-दूर से भक्त आते हैं और देवी को शक्ति का स्वरूप मानकर पूजा करते हैं। मां के इस अनोखे मंदिर में श्रद्धालु अपने परिवार और जीवन की खुशहाली की कामना करते हैं। यहां देवी की मूर्ति नहीं, बल्कि योनिकुंड की पूजा होती है, जो सृजन और शक्ति का प्रतीक है। नवरात्रि के नौ दिनों में इस मंदिर में जो माहौल होता है, वह भक्तों के लिए अविस्मरणीय अनुभव बन जाता है।

देवी सती की कथा से जुड़ा पवित्र स्थान

कामाख्या मंदिर की कथा देवी सती से जुड़ी है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, जब सती ने अग्निकुंड में अपने प्राण त्याग दिए, तो भगवान विष्णु ने उनके शरीर के टुकड़े कर दिए। ये अंग अलग-अलग जगहों पर गिरे और वहीं शक्तिपीठ बने। कामाख्या में देवी का योनिभाग गिरा था, इसलिए यहां की पूजा सबसे खास मानी जाती है। नवरात्रि के समय यह कथा भक्तों को और गहराई से जोड़ती है।

बिना मूर्ति के देवी की अनोखी पूजा

कामाख्या मंदिर की सबसे बड़ी खासियत है कि यहां देवी की कोई मूर्ति नहीं है। गर्भगृह में एक प्राकृतिक योनिकुंड है, जिसे जलधारा लगातार सिंचित करती रहती है। भक्त उसी को माता का स्वरूप मानकर पूजा करते हैं। यह परंपरा अन्य मंदिरों से बिल्कुल अलग है और इसे देखकर हर कोई आश्चर्यचकित हो जाता है। नवरात्रि में इस पूजा का महत्व और भी बढ़ जाता है।

अंबुबाची मेला और देवी का रहस्य

नवरात्रि की तरह ही कामाख्या मंदिर में हर साल अंबुबाची मेला भी बहुत प्रसिद्ध है। यह मेला देवी के मासिक धर्म की प्रतीक परंपरा से जुड़ा है। तीन दिन मंदिर के द्वार बंद रहते हैं और चौथे दिन भक्तों के लिए खुलते हैं। इसे देवी की शक्ति और सृजन की ऊर्जा से जोड़ा जाता है। नवरात्रि और अंबुबाची, दोनों ही त्योहार इस मंदिर की महिमा को और गहरा बनाते हैं।

यात्रा और दर्शन की आसान जानकारी

अगर आप नवरात्रि में कामाख्या मंदिर जाना चाहते हैं, तो यह असम के गुवाहाटी शहर से करीब 8 किलोमीटर दूर नीलांचल पर्वत पर स्थित है। गुवाहाटी एयरपोर्ट और कामाख्या रेलवे स्टेशन यहां पहुंचने का सबसे अच्छा साधन है। मंदिर तक टैक्सी और बस आसानी से मिल जाती हैं। नवरात्रि में यहां भीड़ बहुत ज्यादा होती है, इसलिए बेहतर है कि पहले से तैयारी कर लें। इस यात्रा में आपको न सिर्फ दर्शन का आनंद मिलेगा बल्कि एक दिव्य शांति भी महसूस होगी।

मेरा नाम दिव्या गोयल है। मैंने अर्थशास्त्र (Economics) में पोस्ट ग्रेजुएशन किया है और उत्तर प्रदेश के आगरा शहर से हूं। लेखन मेरे लिए सिर्फ एक अभिव्यक्ति का माध्यम नहीं, बल्कि समाज से संवाद का एक ज़रिया है।मुझे महिला सशक्तिकरण, पारिवारिक...