गाय हमारी संस्कृति का अभिन्न अंग है। हमारे यहां गाय को माता और देवतुल्य समझकर पूजा जाता है। गाय का केवल आध्यात्मिक या धार्मिक महत्त्व ही नहीं है अपितु गाय से प्राप्त होने वाली प्रत्येक वस्तु जैसे गोबर, मूत्र और दूध सभी का वैज्ञानिक व चिकित्सकीय महत्व भी है।

अाप आस्था-श्रद्धा रखें या न रखें परन्तु यह वैज्ञानिक अनुभूत सिद्ध सत्य है कि गाय का रोग हरण प्रभाव व अलौकिक-प्राकृतिक महत्त्व है। गौमूत्र के अन्दर नाइट्रोजन, सल्फर, फास्फेट, सोडियम, पौटेशियम, मैग्नीज, कार्बोलिक एसिड, आयरन, सिलीकॉन, क्लोरीन, मैग्नीशियम, मौलिक एसिड, साइट्रिक एसिड, ट्राटिक एसिड, एक्रसेसिन एसिड, कैल्शियम, सॉल्ट विटामिन्स, ए.बी.सी.डी.ई. मिनरल्स, लेक्टोज एन्जाइम्स जल, हिप्यूरिक एसिड, क्रियेटिनिन, हार्मोन्स, स्वर्णक्षार है।

गुणवत्ता व उपयोगिता

  • गाय के दूध में रेडियो विकिरण (एटामिक रेडियेशन) से रक्षा करने की सर्वाधिक शक्ति होती है।
  • गाय कैसा भी पदार्थ खाए उसका दूध निरापद एवं शुद्ध होता है।
  • जिन घरों में गाय के गोबर से लिपाई-पुताई होती है, वे घर रेडियो विकिरण से सुरक्षित रहते हैं। 
  • गाय का दूध हृदय रोग से बचाता है। गाय का दूध शरीर में स्फूॢत, आलस्यहीनता चुस्ती लाता है तथा स्मरण शक्ति बढ़ाता है।
  • गाय के घी को अग्नि पर डालकर धुआं करने अथवा इससे हवन-यज्ञ करने से वातावरण एटामिक रेडियेशन से बचता है।
  • गाय के रंभाने की आवाज से मनुष्य की अनेक मानसिक विकृतियां एवं रोग स्वमेव दूर हो जाते हैं।
  • गाय के गोबर में हैजे के कीटाणुओं को नष्ट करने की शक्ति है।
  • क्षय रोगियों को गाय के बाड़े या गौशाला में रखने से गोबर और गौमूत्र की गंध से क्षय रोग के कीटाणु मर जाते हैं।
  • एक तोला घी के यज्ञ में एक टन ऑक्सीजन बनता है। 
  • कसाई, कत्लखानों से भूकम्प की संभावनाएं बढ़ती हैं।
  • गाय की रीढ़ की हड्डी में सूर्य-केतु नाड़ी होती है जो सूर्य के प्रकाश में जागृत होती है। नाड़ी जागृत होने पर वह पीले रंग का पदार्थ छोड़ती है। अत: गाय का दूध पीले रंग का होता है, यह किरोटिन तत्त्व सर्वरोग नाशक, सर्वविष विनाशक है।
  • गौमूत्र में अनेक रसायन होते हैं जैसे नाइट्रोजन, कार्बोलिक एसिड। दूध देती गाय के मूत्र में लेक्टोज, सल्फर, अमोनिया गैस, कॉपर पोटेशियम, मैग्नीज, यूरिया, सॉल्ट तथा अन्य कई क्षार आरोग्यकारक अम्ल आदि होते हैं।
  • गाय के गोबर में 16 प्रकार के उपयोगी खनिज पाए जाते हैं।
  • मरे पशु के एक सींग में गोबर भरकर भूमि में दबाने से कुछ समय के उपरान्त एक एकड़ भूमि के लिए उपयोगी सींग या अणुखाद प्राप्त होती है।
  • मरे हुए पशु के शरीर को भूमि में दबाने से कुछ मास में समाधि खाद मिलती है जो कई एकड़ भूमि के लिए उपयुक्त होती है।

(साभार – शशिकांत सदैव, साधना पथ)

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