एक सुबह 20 वर्ष के आसपास की एक युवती मेरे घर आई और हाथ से लिखा एक कागज छोड़ गई, जिसमें कुछ प्रश्न उठाए गए थे, ‘क्या एक महिला पैदा इसीलिए होती है कि बड़े होने पर उसका जीवन पुरुषों और समाज द्वारा बनाए नियमों पर ही चले? हमारे देश में, पहले दिन से लड़की को सिखाया जाता है कि उसे उस तरह नहीं चलना है जैसा वह सोचती है और सही मानती है, अपितु उसे पुरुषों अथवा बुजुर्गों के निर्देशों या आदर्शों पर चलना है। अगर वे उसे खड़े होने का आदेश देते हैं तो उसे खड़ा होना चाहिए, अगर वे उसे बैठने का आदेश देते हैं तो उसे बैठना चाहिए। उसका विवाह भी उसी व्यक्ति से होता है, जो उसके बड़े उसके लिए चुनते हैं। यह वह समाज है जहां लड़की को एक जानवर की तरह समझा जाता है, जो अधिक समय तक न बच सकती है और न ही विकास कर सकती है।
कागज के अंत में उसने लिखा था कि वह सुबह 9 बजे मेरे घर आएगी। वह सुबह सही समय पर मेरे घर पर थी। मुझे किसी आवश्यक कार्य से कहीं पहुंचना था, लेकिन वह मुझे जाने ही नहीं दे रही थी। उसके प्रश्नों का उत्तर देने के लिए काफी समय की आवश्यकता थी। मैंने अपने सहायक से कहा कि उसे नवज्योति काउंसलर के पास भेज दे। उसका हाथ से लिखा कागज मेरे पास था, जो मैंने कार में पढऩा आरंभ किया। कागज पढऩे के साथ ही मैंने अपने घर फोन कर उस युवती से बात की। मैंने उसे सलाह दी कि वह चिंता न करे और निराश न हो। मैंने उससे पूछा कि वास्तव में समस्या क्या थी। उसका कहना था, ‘मैडम मैं आगे पढऩा चाहती हूं और एम.ए. करना चाहती हूं लेकिन मेरे घर वाले मेरी शादी करना चाहते हैं, जो मैं नहीं करना चाहती।
मैंने उससे कहा, ‘पहले तुम यह क्यों नहीं देख लेती कि तुम्हारे बड़े किस प्रकार का प्रस्ताव दे रहे हैं। देखो कि क्या शादी के बाद तुम्हें पढऩे की आज्ञा मिल सकती है या नहीं। उसका उत्तर था, ‘नहीं मैडम, अब मैं किसी के बारे में सोच भी नहीं सकती, क्योंकि मैंने किसी और को अपने पति के रूप में स्वीकार कर लिया है।
मैंने कहा, ‘तो यह तुम्हारी वास्तविक समस्या है कि जिसे तुम स्वीकार कर रही हो, उसे तुम्हारा परिवार स्वीकार नहीं करेगा? उसका यह भी कहना था कि अगर उसके माता-पिता को यह पता चला तो वे मुझे ताले में बंद कर देंगे या शायद मार ही डालें, जैसा उसके गांव की लड़कियों के साथ हो चुका है।
अगले सप्ताह मुझे दिल्ली की जानी-मानी काउंसलर डॉ. अरुणा बरुता द्वारा आयोजित ‘माता-पिता पर की गई वर्कशॉप में भाग लेने का अवसर मिला। मैंने उस महिला की चर्चा वहां आए लोगों से की और सुझाव मांगे कि गलती क्या हुई थी। माता-पिता का अर्थ केवल पैदा करना, भोजन, कपड़े और शिक्षा के बाद लड़की का विवाह करना ही नहीं है, अपितु एक जीवन को तैयार करना व उसका विकास करना है। हमारे समाज में जो सबसे अप्रशिक्षित कार्य व कर्तव्य होता है, वह है माता-पिता बनना।
शादी से पहले अथवा शादी के बाद ऐसी किसी काउंसलिंग की धारणा नहीं है, जो माता-पिताओं व नौजवान जोड़ों द्वारा की गई गलतियों में कमी ला सके। ऐसा एक कार्यक्रम सिंगापुर में है जिसमें नौजवान जोड़ों के लिए शादी से पहले काउंसलिंग अनिवार्य है। यह देखना सार्थक होगा कि वे क्या व कैसे करते हैं और इसके क्या परिणाम निकलते हैं।
हमारा देश बहुत बड़ा है। यहां शहरी-ग्रामीण, अमीर-गरीब, शिक्षित-अशिक्षित, अग्रणी-पिछड़े, महल झोंपड़पट्टी सभी साथ हैं, फिर हम कहां से आरंभ करें और प्रशिक्षण व काउंसलिंग का खर्चा कौन सहे? आवश्यकता और सुलभता के बीच बड़ी भिन्नता रहेगी। यह समस्या जो मैंने अभी शेयर की, वह बहुत बड़ी और अनगिनत है। तथ्य यह भी है कि किसी-न-किसी रूप में यह विषय प्रत्येक भारतीय घर में मौजूद है। इन सबके परिणाम भी देखे जा सकते हैं। जैसे कि कॉल गल्र्स की बढ़ती संख्या व लड़कियों से दुर्व्यवहार।
इसलिए हम यहां से कहां जाएं? आज की वास्तविक समस्या यह है कि महिलाएं सुरक्षा के साथ गतिशीलता व चुनौती चाहती हैं, जबकि माता-पिता केवल सुरक्षा चाहते हैं। जब हम लड़की को शिक्षित करते हैं तो इसके साथ-साथ हम कैसे कह सकते हैं कि तुम अपने बारे में सोचो। उसे सुनने-सुनाने, कारण बताने और स्थिति समझने का अधिकार व आवश्यकता है। माता-पिता व बच्चे दोनों ही गलत नहीं हैं, लेकिन माता-पिताओं को उस बदलाव को समझने की आवश्यकता है जो शिक्षा, मीडिया की जागरूकता व अवसरो से आती है। इसलिए माता-पिता के प्रशिक्षण की अति आवश्यकता है। कई घरों में किशोरों को पालना और बड़े परिवारों में रहना नर्क बनाता जा रहा है। हमें इसका सामना करने की आवश्यकता है और उस प्रकार के दुखों से बचने की आवश्यकता है, जैसा कि मैंने आपके साथ शेयर किया है। नौजवान लड़की की घटना, जो मैंने आपके साथ बांटी, वह कई घरों की कहानी है। यहां उत्तर है, लेकिन हमें उन्हें ढूंढ़कर प्रयोग करने की आवश्यकता है।
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