गुड़ी पड़वा मुख्यतः महाराष्ट्र में हिन्दू नववर्ष के आरंभ की ख़ुशी में मनाया जाता है। पंचांग के अनुसार चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से नए साल की शुरुआत होती है और इसी दिन यह त्योहार मनाने की प्रथा है। मान्यता है के इसी दिन ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना की थी। इसी दिन से चैत्र नवरात्र की भी शुरुआत होती है। भारत के कई अन्य प्रदेशो में इसे अलग-अलग नाम से पुकारा जाता है जैसे कर्नाटक मे उगादी और आंध्र प्रदेश में युगादि और केरल में विशु।
गुड़ी पड़वा का महत्व
स्वास्थ्य के नज़रिये से भी गुड़ी पड़वा का काफी महत्व है। इस दिन बनाए जाने वाले व्यंजन चाहें आंध्र प्रदेश में बनाई जाने वाली पच्चड़ी हो, या फिर महाराष्ट्र में बनाई जाने वाली पूरन पोली, सभी स्वास्थ्यवर्द्धक होते हैं। माना जाता है कि खाली पेट पच्चड़ी के सेवन से चर्म रोग दूर होने के साथ-साथ हेल्थ अच्छी होती है। वहीं पूरन पोली में गुड़, नीम के फूल, इमली और आम का उपयोग होता है जो स्वास्थ्य की दृष्टि से फायदेमंद होते हैं। इस दिन लोग सुबह में नीम की पत्तियां भी खाते हैं। माना जाता है कि इससे रक्त शुद्ध होता है।
शुभ मुहूर्त (मराठी विक्रम संवत 2076 शुरू)
अप्रैल 5, 2019 को दोपहर 2:21:48 से प्रतिपदा आरम्भ
अप्रैल 6, 2019 को दोपहर 3:24:55 पर प्रतिपदा समाप्त

गुड़ी पड़वा मनाने की विधि
1. गुड़ी को आम के पत्ते और लाल रंग के फूलों के हार से बनाया जाता है। इसे लकड़ी की छड़ी पर, एक चांदी या तांबे के लोटे को उल्टा रखा जाता है।
2. जिस स्थान पर गुड़ी लगानी हो, उसे अच्छे से साफ़ कर लेना चाहिए। फिर स्वस्तिक चिह्न बनाकर उसके बीच में में हल्दी और कुमकुम अर्पण करें।
3. चटख रंगों से रंगोली बनाने के साथ ही फूलों से घर को सजाया जाता है।
इस दिन नए वर्ष का भविष्यफल सुनने-सुनाने की भी परंपरा है।
4. गुड़ी पड़वा पर श्रीखंड, पूरन पोली, खीर आदि पकवान बनाए जाते हैं।
5. सूर्योदय के तुरंत बाद गुड़ी की पूजा का विधान है।
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