मृत्युंजय भगवान शिव का दूसरा नाम है। जब किसी भी तरह के कर्मकांड व पूजा-आराधना से आपके कष्टों का निवारण न हो पाए, तो ऐसे में महामृत्युंजय मंत्र का जाप एक ऐसा अमोघ बाण है जो आपके सभी कष्टों को भेदकर आपका जीवन सुखमय बनाता है। जब आपको लगे कि सारे रास्ते बंद हो गए हैं, सभी उपाय व प्रयास व्यर्थ जा रहे हैं तो ऐसे में महामृत्युंजय मंत्र आपकी मनोकामना सिद्धि कर आपको जीवन में एक नई राह देता है। महामृत्युंजय मंत्र का जाप और हवन अत्यंत शुद्ध हृदय व पवित्र भाव से करना चाहिए, अन्यथा महामृत्युंजय मंत्र का जाप निष्फल या विपरीत प्रभाव भी पैदा कर सकते हैं। इसे शास्त्रों में दोधारी तलवार भी कहा गया है। मृत्युंजय शिव मृत्यु को जीतने वाले हैं। जीवन की सभी समस्याओं से उबरने में महामृत्युंजय जप मंत्र का जाप सहायक व अत्यंत प्रभावशाली है।

 

कब करें आराधना?

मृत्युंजय शिव सब प्रकार की मृत्यु सामने होने पर सहायक हैं। विचारशील लोगों ने मृत्यु के आठ रूप माने हैं।

शर्मन्दगी, 2. अपमान, 3. बदनामी व आलोचना, 4. बड़ा शोक, 5. घोर पीड़ा, 6. असहनीय रोग, 7. भयाक्रान्त, 8. मृत्यु।

 

इनमें से किसी भी प्रकार का कष्ट हो, तो निसंकोच मृत्युंजय शिव की शरण में जाइए, सब कुछ शुभ ही शुभ होगा। घातक व जटिल स्थिति में महामृत्युंजय मंत्र का सहारा कष्टों से मुक्ति दिलाता है।

सम्पूर्ण महामृत्युंजय मंत्र निम्न प्रकार से है-

 

ॐ ह्रौं जूं सः। ॐ भूः भुवः स्वः।
त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्।
उर्वारुकमिव बन्धवान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्॥
स्वः भुवः भूः ॐ। सः जूं ह्रौं ॐ ॥

 

 

 

 

सारे मुख्य मृत्युंजय मंत्रों में शामिल होने के कारण मूल त्र्यम्बक मंत्र का आप स्वास्थ्य रक्षा, आयु रक्षा और श्री वृद्धि के लिए नित्य जाप कर सकते हैं। मृत्युंजय मंत्र का खास तौर से साधारण रोगावस्था में अथवा शोकावस्था में जाप करना अत्यंत लाभकारी है। 

 

जटिलावस्था में मंत्र जाप (मृतसंजीवनी)

अपने नाम के ही अनुरूप महामृत्युंजय मृतसंजीवनी मंत्र असाध्य रोगों की शान्ति, रोगी को असहनीय कष्ट, जटिल रोग की पहचान कराने में और प्राण छूटने में अनावश्यक देरी हो रही हो, तो उस स्थिति में मंत्र का जाप जातक को पीड़ा से मुक्ति दिलाता है।

 

मृत्युंजय मंत्र के अन्य सरल रूप

 

1- अनिष्ट की आशंका (अनिष्ट आने पर नहीं) होने पर रोजाना इस मंत्र का जाप करें।

ऊँ जूं स: स: जूं ऊँ॥

 

2- शरीर में किसी रोग, बुढ़ापे या रेडियेशन के कारण रक्त प्रवाह धीमा हो जाए या आप वात रोग से पीडि़त हो तो यह मंत्र लाभकारी है।

ऊँ हौं जूं स:॥

 

 

3-जब शरीर में विषैले तत्त्व जमा होकर रोग उत्पन्न करें तो निम्नलिखित मंत्र से अभिमंत्रित जल का सेवन करें।

ऊँ जू स: पालय पालय

 

4- हृदय रोग से उत्पन्न शारीरिक परेशानियों को दूर करने हेतु इस मंत्र का नियमित जाप करें।

ऊं व जूं स:॥

 

 

5- संकटों व शारीरिक परेशानियों से बचाव के लिए इस मंत्र का प्रतिदिन जाप करें।

ऊँ मृत्युंजयाय रुद्राय नीलकाण्ठाय शम्भवे।
अमृतेशाय शर्वाय महादेवाय ते नम: ऊँ॥

 

 

 

महामृत्युंजय मंत्रों के जाप, यज्ञ, हवन में प्रयुक्त होने वाली हवन सामग्री द्वारा आहुति देने से भी अलग-अलग लाभ प्राप्त होते हैं। जैसे- घी से आयु रक्षा, घी लगी दूब से महारोग, शहद व घी से मधुमेह, घी, शहद, शक्कर व साबुत मसूर से मुंह के रोग, घी लगी आक की लकड़ी या पत्ते से स्वास्थ्य और शरीर की रक्षा, ढाक के पत्ते से नेत्ररोग, बेल पत्ते या फल से पेट के रोग, भांग, धतूरा या आक से मनोरोग, गूलर समिधा, आंवले या काले तिल से शरीर का दर्द, ढाक की समिधा या पत्ते से सभी रोगों से मुक्ति, दूध में डूबे आम के पत्तों से जटिल बुखार दूर होता है।

 

 

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