कार्तिक माह, धर्म और अध्यातम की दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है… इस माह के हर दिन कोई ना कोई त्यौहार या व्रत-अनुष्ठान जरूर होता है। जैसा कि दिवाली के 8 दिन बाद का​र्तिक मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को अक्षय नवमी मनाई जाती है, जिसे आंवला नवमी के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन भगवान शिव और विष्णु के साथ ही आंवले के वृक्ष की भी पूजा की जाती है। इस बार अक्षय नवमी 5 नवंबर को है। मान्यता है कि इस दिन आंवले की पूजा करने से सेहत और सौंदर्य के साथ जीवन में सुख-समृ्द्धी की प्राप्ति होती है। चलिए आपको अक्षय नवमी के पौराणिक महत्व के बारे में बताते हैं, साथ ही आपको ये भी बताएंगे कि कैसे आप पूजा-पाठ के जरिए इस त्यौहार का लाभ ले सकते हैं। 

पौराणिक महत्व

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, अक्षय नवमी के दिन भगवान विष्णु ने कुष्माण्डक नाम के दानव को मारा था। वहीं ये भी मान्यता है कि भगवान श्रीकृष्ण ने कंस का वध करने से पहले तीन वनों की परिक्रमा की थी। ऐसे में अक्षय नवमी के दिन लाखों की संख्या में भक्त मथुरा-वृदांवन की परिक्रमा भी करते हैं। इनके अलावा एक मान्यता ये भी है कि इस दिन देवी लक्ष्मी ने आंवले के नीचे भगवान विष्णु और शिप की उपासना की थी। ऐसे में इस दिन आंवला की पूजा और उपासना की जाती है। साथ ही इस दिन आंवले के पेड़ के नीचे भोजन बनाने और उसे ग्रहण करने का भी विशेष महत्व है। 

पूजा विधि

इस दिन सुबह जल्दी उठें और स्नान-ध्यान करके आंवले के पेड़ के आस-पास सफाई कर उसकी विधिवत पूजा करें। आंवले के पेड़ में जल या कच्चा दूध चढ़ाएं और कच्चा सूत या मौली 108 परिक्रमा करते हुए लपेटें। ऐसा करते हुए परिवार की सुख समृद्धि की कामना करें। पूजा के बाद आंवले के पेड़ के नीचे बैठकर परिवार के साथ भोजन ग्रहण करें। ऐसा करने से सुख-समृद्धी के साथ ही उत्तम संतान की प्राप्ति होती है।