आखिर सपिंड विवाह से क्यों है समाज को गुरेज: Sapinda Marriage
Sapinda Marriage

Sapinda Marriage: बड़ी मानी हुई बात है कि मियां-बीवी राजी तो क्या करेगा काजी! लेकिन कुछ मामलों में काजी आपकी शादी रुकवा सकता है। यदि आप हिन्दू हैं तो आपको ‘हिन्दू विवाह अधिनियम की सीमाओं के भीतर रहते हुए ही विवाह करना होगा। ऐसा न करने पर काजी यानी कानून आपकी शादी को अमान्य घोषित कर सकता है। हालांकि शर्त कई हैं लेकिन सबसे जरूरी है- लड़के और लड़की दोनों का संबंध आपस में माता की ओर से तीन पीढ़ी और पिता की ओर से पांच पीढ़ी तक नहीं होना चाहिए। हां, कुछ हिन्दू समुदायों में ममेरी या चचेरी बहन के साथ शादी करने का रिवाज है तो उन परिस्थितियों में इसे परंपरा मानकर एक विशेष छूट दी गई है। लेकिन आपके यहां ऐसी कोई परंपरा नहीं है, फिर भी अपने किसी चचेरी, फुफेरी और ममेरी बहन या भाई से शादी कर ली है तो इसे गलत माना जाएगा। तब कानून कभी भी इस सपिंड विवाह को खारिज कर सकता है।

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सपिंड विवाह क्या है

हिंदू-समाज में सपिंड-विवाह की वर्जना की गई है। सपिंड का अर्थ होता है एक ही पिंड अथवा शरीर से उत्पन्न। यही कारण है कि समान पिंड वालों में विवाह को निषिद्ध बताया गया है। हिन्दू विवाह अधिनियम की धारा 3 के अनुसार, सपिंडा विवाह वह है जिसमें दो लोगों के पूर्वज एक ही हैं। यद्यपि हिन्दू विधि से जुड़ी दो शाखाओं मिताक्षरा और दायभाग में सपिंड संबंधों पर अलग-अलग मान्यता है। मिताक्षरा शरीर के कणों पर जोर देती है और दायभाग पिंड पर ध्यान केंद्रित करता है। 1955 का हिंदू विवाह अधिनियम सपिंड विवाह पर प्रतिबंध लगाता है, जब तक कि कोई वास्तविक परंपरा या रीति-रिवाज इसकी अनुमति न दे। अधिनियम पीढ़ियों के आधार पर निषेधों की रूपरेखा देता है। उदाहरणस्वरुप माता की ओर से तीन पीढ़ी के भीतर और पिता की ओर से पांच पीढ़ियों के भीतर आप विवाह नहीं कर सकते हैं।

अधिनियम धारा 3(जी) में निषिद्ध संबंधों की डिग्री को परिभाषित करता है और धारा 5(iv) में आदेश देता है कि विवाह करने वाले पक्षों को इन निषिद्ध डिग्री के अंतर्गत नहीं आना चाहिए। यह अनाचारपूर्ण विवाहों को रोकता है, जो सार्वजनिक व्यवस्था और नैतिकता को कमजोर करते हैं। इसका एक वैज्ञानिक तर्क यह भी है कि एक ही परिवार में शादी करने से होने वाली संतान को अनुवांशिक रोग होने की संभावनाएं बढ़ जाती हैं। अधिनियम पूर्ण रक्त, आधे रक्त और गर्भाशय रक्त (धारा 3(सी) और (डी) के आधार पर संबंधों को भी चित्रित करता है। अधिनियम में वैध, नाजायज और गोद लिए हुए रिश्तों में भी इस तरह के विवाह को सपिंड विवाह की श्रेणी में रखा गया है।

इलाहाबाद हाई कोर्ट का मामला

इलाहाबाद हाई कोर्ट का बेहद चर्चित मामला श्रीमती मौसमी शर्मा बनाम हिमांशु शर्मा (अक्टूबर 2017) की शादी को कोर्ट ने अमान्य घोषित करार दिया था। हालांकि दोनों ने कोर्ट के समक्ष एक-दूसरे से रक्त या गर्भाशय संबंध नहीं होने का भी तर्क दिया था, लेकिन पति के पिता और पत्नी की मां में भाई-बहन का संबंध होने के कारण उनकी शादी को शून्य माना गया। विशेष विवाह अधिनियम, 1954 के तहत संपन्न विवाह, अधिनियम की धारा 4 और धारा 2(बी) के साथ पढ़ी गई धारा 24 के अनुसार उनका विवाह शून्य था।

नीतू ग्रोवर बनाम गगन ग्रोवर (9 अक्टूबर 2023) का चर्चित मामला

Neetu Grover and  Gagan Grover
Neetu Grover and Gagan Grover

नीतू और गगन का विवाह साल 1998 को दिल्ली में हिंदू रीति-रिवाजों और समारोहों के अनुसार हुआ था और इस विवाह से 28-08-1999 को एक कन्या का जन्म हुआ। प्रतिवादी-पति ने याचिकाकर्ता से अनुरोध किया है कि दोनों पक्षों के बीच विवाह को हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 5 की उपधारा 4 के उल्लंघन के कारण शून्य घोषित किया जाए। परिणामस्वरूप साल 2007 में शादी को शून्य घोषित कर दिया गया था। पति के अनुसार दोनों का आपस में खून का रिश्ता है, उस लिहाज उनकी शादी सपिंड विवाह के अंतर्गत आती थी। जबकि लड़की या लड़के में से किसी एक के समुदाय में मौजूद समय में इस तरह की शादियां नहीं होती हैं।

नीतू ग्रोवर की याचिका

जबकि पत्नी ने हार नहीं मानी और उसने इस फैसले के खिलाफ दिल्ली हाई कोर्ट में अपील की। लेकिन अक्टूबर 2023 में कोर्ट ने उसकी इस अपील को खारिज कर दिया। महिला ने दोबारा दिल्ली हाई कोर्ट में उसी कानून को चुनौती दी। इस बार उन्होंने ये कहा कि सपिंड शादियां कई जगह पर होती हैं, चाहे वो समुदाय का रिवाज न भी हो। उन्होंने दलील दी कि हिंदू विवाह अधिनियम में सपिंड शादियों को केवल इसलिए रोकना कि वो रिवाज में नहीं, असंवैधानिक है। ये संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है जो बराबरी का अधिकार देता है। नीतू ने आगे यह भी कहा कि दोनों परिवारों ने उनकी शादी को अपनी सहमति दे दी है, जो साबित करता है कि ये विवाह गलत नहीं है।

दिल्ली उच्च न्यायालय का फैसला

दिल्ली उच्च न्यायालय ने अपने फैसले में याचिकाकर्ता की दलीलों को खारिज कर दिया, जिसमें एक स्थापित परंपरा के अस्तित्व का समर्थन करने के लिए पर्याप्त सबूतों की कमी पर जोर दिया गया था, जो सपिंडा विवाह को उचित ठहराने के लिए एक शर्त थी। स्थापित परंपरा का अर्थ है कि यदि आपके समुदाय में कभी किसी समय सपिंड विवाह का रिवाज रहा है लेकिन कुछ पीढ़ियों से इसका अनुसरण नहीं किया जा रहा है तो प्रथा का रूप नहीं दिया जाएगा।

अदालत ने महिला को समझाया कि वैवाहिक साथी की पसंद विनियमन के अधीन हो सकती है, जिसका अर्थ है कि केवल माता-पिता की सहमति ही परंपरा स्थापित करने के लिए पर्याप्त नहीं है। परिणामस्वरूप, अदालत ने कहा, ‘याचिकाकर्ता अपने मामले के तथ्यों में एक प्रथा के अस्तित्व को साबित करने में असमर्थ रही और उसने माता-पिता की सहमति पर भरोसा किया है जो प्रथा की जगह नहीं ले सकती।’ इसके अलावा, अदालत ने याचिकाकर्ता के इस तर्क को खारिज कर दिया कि एचएमए अधिनियम की धारा 5 (1) ने संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन किया है। यह तर्क देते हुए कि प्रावधान में अपवाद केवल कानून द्वारा मान्यता प्राप्त रीति-रिवाजों के आधार पर विवाह पर लागू होता है, जिसके लिए कठोर प्रमाण और न्यायिक निर्णय की आवश्यकता होती है। इस प्रकार, अदालत को वर्तमान रिट याचिका में एचएमए अधिनियम की धारा 5(1) को दी गई चुनौती में कोई योग्यता नहीं मिली।
अंत में अदालत ने निष्कर्ष निकाला कि याचिकाकर्ता यह प्रदर्शित करने वाला कोई भी ठोस कानूनी आधार प्रस्तुत करने में विफल रही है कि सपिंड विवाह के खिलाफ प्रतिबंध समानता के अधिकार का उल्लंघन करता है।

सपिंड विवाह होने से होती हैं बीमारियां

वास्तव में यह धारा सामाजिक और नैतिक व्यवस्था को सुचारू रूप से बनाए रखने के लिए बनाई गई है जो आपको करीबी पारिवारिक संबंधों में विवाह करने से रोकता है। विज्ञान भी मानता है कि ‘क्रॉस कजिन मैरिज एक प्रकार से उचित नहीं है क्योंकि एक ही परिवार में शादी करने से संतान के जीन में आनुवंशिक विकृति उत्पन्न होती है।

इतिहास में ऐसी शादियां देखी गई हैं

History
Such marriages have been seen in history

‘क्रॉस कजिन मैरिज की अगर बात करे तो हिन्दुओं में इस तरह की कई शादियों के प्रमाण मिलते हैं। सबसे बड़ा उदहारण अर्जुन और सुभद्रा का विवाह है। सुभद्रा अर्जुन के मामा की बेटी थीं, इसके बाद भी वे उन्हें भगा ले गए। चौहान वंश के राजा पृथ्वीराज चौहान अपने मौसेरे भाई जयचंद की बेटी संयोगिता को भगा ले गए थे और उनके साथ उन्होंने गंधर्व विवाह किया था। अंत में, प्रेम कभी भी सामाजिक दायरों में बंधकर नहीं रहा, वह हमेशा से व्यक्तिगत रुचि और इच्छा के साथ पनपता है। प्रेम करने वाले कभी भी धर्म, जाति और लिंग में भेदभाव नहीं रखते। दिक्कतें तब शुरू होती हैं जब वे अपने प्रेम को एक नाम देना चाहते हैं जिसे समाज ‘विवाह’ कहकर संबोधित करता है। वास्तव में विवाह एक सामाजिक और धार्मिक मान्यता है, जहां आपको परिवार के साथ समाज की भी स्वीकृति चाहिए। वहीं समाज को सुचारू रूप से चलाने के लिए कुछ नियम बनाए गए हैं जिन्हें कानून भी मानता है।

मोहिनी प्रिया (एडवोकेट, सुप्रीम कोर्ट) से बातचीत पर आधारित