कुम्भ के बाद कहां गायब हो जाते हैं नागा साधु? Naga Sadhu Life
Naga Sadhu Life

Naga Sadhu Life: भारतीयों की आस्था का महापर्व कुम्भ अपनी प्राचीनता, परम्परा के लिए पूरी दुनिया में जाना जाता है। भारत में चार स्थानों पर 12 वर्षों के अन्तराल पर कुम्भ आयोजित होता है। ये स्थान हैं: प्रयाग (इलाहाबाद), हरिद्वार, नासिक और उज्जैन। कुम्भ में बड़ी संख्या में आम लोगों के साथ-साथ साधु-संन्यासी भी शामिल होते हैं। जिसमें नागा साधु भी पहुंचते हैं।
नागा साधु कुम्भ में तो खूब दिखाई देते हैं लेकिन कुम्भ के अलावा अमूमन सार्वजनिक जीवन में दिखाई नहीं देते। आखिर कुम्भ के बाद कहां गायब हो जाते हैं नागा साधु? आइए जानते हैं।

Naga Sadhu Life: हिमालय की गुफाओं में

कुम्भ के समाप्त होने के बाद अधिकतर साधु अपने शरीर पर भभूत लपेट कर हिमालय की चोटियों के बीच चले जाते हैं। वहां यह अपने गुरु स्थान पर अगले कुम्भ तक कठोर तप करते हैं।

जंगल के रास्ते करते हैं यात्रा

कहते हैं कि नागा साधु घने जंगल के रास्ते से यात्रा करते हैं। माना जाता है कि ये देर रात में अपनी यात्रा शुरू करते हैं, जब लोग नींद की आगोश में होते हैं।
इंसानों से इनका अधिक आमना-सामना न हो इसलिए ये यात्रा के दौरान किसी गांव या नगर में नहीं बल्कि जंगल और वीरान रास्तों में ही डेरा डालते हैं। यही कारण बताया जाता है कि ये आते या जाते हुए ये किसी को नजर नहीं आते हैं। रात में यात्रा और दिन में जंगल में विश्राम करने के कारण सिंहस्थ में आते या जाते हुए ये किसी को नजर नहीं आते। कुछ नागा साधु झुण्ड में निकलते हैं तो कुछ अकेले ही यात्रा करते हैं।

सोते नहीं हैं नागा साधु

माना जाता है कि अपनी यात्रा के दौरान नागा साधु सोते भी नहीं हैं, जब तक जरुरी न हो। और, यदि सोते भी हैं, वो भी जमीन पर, बिना किसी प्रकार के कृत्रिम बिस्तर के। कहते हैं कि ये यात्रा में केवल कंदमूल, जड़ी-बूटियों, फल-पत्तियों का ही सेवन करते हैं, जो ये जंगल से ही प्राप्त कर लेते हैं।

जगह बदलते रहते हैं

Naga Sadhu Life
Naga Sadhu keep changing places

नागा संन्यासी किसी एक गुफा में कुछ साल रहते हैं और फिर किसी दूसरी गुफा में चले जाते हैं। इस कारण इनकी सटीक स्थिति का पता लगा पाना मुश्किल होता है। इनमें से बहुत से संन्यासी वस्त्र धारण कर और कुछ निर्वस्त्र भी गुप्त स्थान पर रहकर तपस्या करते हैं।

हर अखाड़े में होता है एक कोतवाल

साधुओं की अखाड़ों की परंपरा के अनुसार, हर अखाड़े में एक कोतवाल होता है, जो नागा साधुओं और अखाड़ों के बीच मध्यस्थ का काम करता है। जब दीक्षा पूरी होने के बाद नागा साधु अखाड़ा छोड़ साधना करने जंगल, पहाड़ों या कंदराओं में चले जाते हैं, तब ये कोतवाल ही नागाओं और अखाड़ों को सूचनाएं पहुंचाते हैं।
जब कभी कुम्भ और अर्धकुम्भ जैसा महापर्व आयोजित होता है तो ये नागा साधु, कोतवाल की सूचना पर वहां रहस्मय तरीके से पहुंच जाते हैं।
नागा साधु अपनी पहचान छिपा कर रखना पसंद करते हैं और एक गुफा या स्थान पर कुछ साल रहने के बाद अपनी जगह बदल देते हैं।