ज्ञान की देवी के रूप में प्राय: हर भारतीय मां सरस्वती की पूजा-अर्चना करता है। श्वेत वस्त्र, हाथों में वीणा, मुखमंडल पर शान्ति, वैभव व सौंदर्य की आभा भक्तों को अपनी ओर खींचती है। मां की हर मूरत ज्ञान व अहिंसा का संदेश देती प्रतीत होती है। बसंत पंचमी पर माता की विशेष पूजा करके हम आभार प्रकट करते हैं कहते हैं कि जिसके सिर पर माता सरस्वती का हाथ हो वहां सुख समृद्धि स्वयं ही आ जाती है।

1. मालवा (मध्य प्रदेश)- माता सरस्वती का मंदिर राजा भोज ने बनवाया था। सन् 1034 में ये भारत का सबसे बड़ा विश्वविद्यालय था परंतु मुस्लिम आक्रमणकारियों के द्वारा इस मंदिर को ध्वस्त करके मस्जिद में बदल दिया गया। ये पूरा मंदिर गुलाबी पत्थरों से बना है। यहां माता सरस्वती की भव्य प्रतिमा है, जिसकी पूजा हिन्दू वर्ष में एक दिन बस बसंत पंचमी के दिन ही कर सकते हैं। क्योंकि बाकी के दिनों में यहां पर नमाज पढ़ी जाती है। बसंत पंचमी के दिन यहां नमाज पढ़ना वर्जित है। इस दिन यहां हिन्दू अपने रीति-रिवाज व मंत्रों से माता सरस्वती की पूजा करते हैं।

2. बासर– बासर में माता सरस्वती का प्रसिद्ध व पुराना मंदिर है। यहां पर माता सरस्वती को ज्ञान की देवी के रूप में पूजने के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं। इस मंदिर के बारे में हिंदू दर्शन में ये ही मान्यता है कि जब वेद व्यास जी ब्रह्मपुराण की रचना कर रहे थे तो उस वक्त लाख कोशिशों के बाद भी उनकी एकाग्रता भंग हो रही थी तब वे एकाग्रता को बनाने के लिए गोदावरी नदी के तट पर आए और वहां गहन चिंतन में डूब गए। तभी वहां माता सरस्वती आईं, उनके आते ही व्यास जी की सारी इन्द्रियां जागृत हो गईं और उनके हाथ स्वयं ही चलने लगे, तब उन्होंने वहां मुट्ठी में रेत लेकर तीन पिंड स्थापित किए और माता लक्ष्मी, काली, सरस्वती का आह्वï न किया। तब देखते-देखते वह मुट्ठी भर रेत माता सरस्वती की मूर्ति में बदल गई। तभी व्यास जी ने मंत्रों द्वारा माता सरस्वती को वहां ज्ञान की देवी के रूप में स्थापित किया।

यहां के मंदिर की एक विशेषता है कि यहां पर माता सरस्वती को अंहिसा व ज्ञान की देवी के रूप में पूजा जाता है यहां बसंत पंचमी पर माता-पिता अपने बच्चों को सरस्वती पूजन करने के लिए एक उद्देश्य लेकर आते हैं कि इस दिन इस मंदिर में माता सरस्वती की पूजा करने से उनके बच्चों का दिमाग तो तेज होगा ही साथ ही उच्च शिक्षा भी प्राप्त होगी उनका ये भी मानना है कि अगर इस बच्चे का विद्यारम्भ संस्कार इस मंदिर में किया जाता है तो वे बच्चे जीवन में ना केवल उच्च शिक्षा पाते हैं बल्कि उच्च पदों पर भी आसीन होते हैं। यहां बड़ी संख्या में भक्त गण मन में कामनाएं लेकर आते हैं। इस मंदिर में पीले मीठे चावलों का प्रसाद चढ़ता है।

3. महा सरस्वती कैलाशवरम-कैलाशवरम में माता सरस्वती का सुंदर मंदिर है। यहां देवी को महा सरस्वती के रूप में पूजा जाता है।

4. प्रौढ़ सरस्वती कश्मीर-मतंग महा मुनि के पुत्र शांडिल्य द्वारा बनाया गया मंदिर पश्चिमी कश्मीर में है। इसमें माता के प्रौढ़ रूप के दर्शन होते हैं इसलिए इसे प्रौढ़ सरस्वती मंदिर कहा जाता है।

5. विद्या सरस्वती वारगल-यहां पर माता सरस्वती हंस पर आसीन हैं। इस मंदिर को 1940 में ही पूर्णता मिली है तभी से यहां सरस्वती जी को विद्या सरस्वती के रूप में पूजा जाता है।

6. शारदा देवी श्रंगेरी-श्रंगेरी में माता सरस्वती को शारदा शक्ति के रूप में पूजा जाता है। कहा जाता है कि आदि शंकराचार्य ने इस स्थान को ज्ञान पीठ के रूप में इसलिए चुना था क्योंकि यहां पर एक भक्षक रक्षक बन गया था यानी एक सांप ने मेढ़क की रक्षा की। यानी ये वो स्थान है जहां पर माता सरस्वती यानी सुबुद्धि विद्यमान है। इसलिए इस स्थान पर उन्होंने चंदन की माता सस्वती की वीणा लिए प्रतिमा स्थापित की। चंदन इसलिए क्योंकि उसमें शीतलता होती है जबकि बाद में आदि शंकराचार्य के ही शिष्य विधारानयूलू ने सोने की सरस्वती प्रतिमा स्थापित की।

7. सरस्वती मंदिर कुथनुर-तमिलनाडु के कुथनूर में सरस्वती का एक ऐसा बड़ा मंदिर है जहां पर वो सफेद कमल पर आसीन हैं। इसमें सरस्वती के चार हाथ हैं। पहले हाथ में अक्षरमाला, दूसरे में ताम्रग्रन्थ, तीसरे में अमृत कलश व चौथे में वीणा है। यहां पर प्रतिवर्ष विजयदशमी पर माता सरस्वती की विशेष पूजा होती है।

8. सरस्वती माता मंदिर अमृतसर-अमृतसर में माता सरस्वती जी का एक अलग ही रूप देखने को मिलता है। यहां मां की खड़ी प्रतिमा हैं, जिसमें माता हंस के पास खड़ी हैं। उनके हाथों में वीणा, अक्षर माला, और ग्रन्थ व कमल का पुष्प है।

अमृतसर पर यद्यपि सिख धर्म का प्रभाव अधिक दिखाई देता है परन्तु यहां माता सरस्वती के मंदिर में सभी धर्मों के लोग पूजा करने के लिए आते हैं इस मंदिर के एक विशेषता ये भी है कि यहां पर बसंत पंचमी को बसंत उत्सव में मंदिर में एक विशेष पूजा व मेले का आयोजन किया जाता है। इस दिन माता-पिता अपने बच्चों को लेकर यहां बड़ी संख्या में आते हैं व माता सरस्वती के चरणों में बूंदी के प्रसाद पठन लेखन सामग्री जैसे कॉपी, पेन्सिल, पैन, रबड़, पुस्तकें आदि बच्चों के हाथों से चढ़वाते हैं उनका मानना है कि इससे उनके बच्चों वार्षिक परिक्षाफल अच्छा निकलता है। यहां प्रत्येक वीरवार को भी माता के मंदिर में काफी भीड़भाड़ रहती है।

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