स्वर्ग में विचरण करते हुए अचानक एक दूसरे के सामने आ गये, विचलित से कृष्ण और प्रसन्नचित्त सी राधा। कृष्ण सकपकाये राधा जी मुस्कराई।

इससे पूर्व कृष्ण जी कुछ कहते, राधा बोली, कैसे हो द्वारिकाधीश।

जो राधा उन्हें कान्हा कान्हा कहकर बुलाती थी उनके मुख से द्वारिकाधीश का सम्बोधन सुन उन्हें भीतर तक घायल कर गया।

फिर भी अपने को संभाल लिया और बोले राधा से मैं तो तुम्हारे लिये आज भी कान्हा हूं तुम तो मुझे द्वारिकाधीश मत कहो।

आओ बैठते हैं कुछ तुम अपनी कहो कुछ मैं अपनी सुनाता हूं।

सच कहूं राधा जब भी तुम्हारी याद आती थी इन आंखों से आंसुओं की बूदें निकल आती थीं।

राधा बोली, ऐसा हमारे साथ कभी नहीं हुआ न कभी तुम्हारी याद आई और न कभी कोई आंसू बहा क्योंकि हम तुम्हें कभी भूले ही कहां थे जो तुम याद आते। इन आंखों में सदा तुम रहते थे। कहीं आंसुओं के साथ तुम निकल नहीं जाओ इसीलिये रोते भी नहीं थे। प्रेम के अलग होने पर तुमने क्या खोया एक आइना आपको कुछ कड़वे सच सुन सको तो सुनाऊं।

कभी सोचा इस तरक्की में तुम कितना पिछड़ गये यमुना के मीठे पानी से जिन्दगी शुरू की और समुन्दर के खारे पानी तक पहुंच गए।

एक अंगुली पर चलने वाले सुदर्शन चक्र पर भरोसा कर लिया और दस अंगुलियों पर चलने वाली बांसुरी को भूल गये। कान्हा जब तुम प्रेम से जुड़े थे तो जो उंगली गोवर्धन पर्वत उठाकर लोगों को विनाश से बचाती थी प्रेम से अलग होकर वहीं उंगली क्या-क्या रंग दिखाने लगी।

सुदर्शन चक्र उठाकर विनाश के काम आने लगी। कान्हा और द्वारिकाधीश में क्या फर्क होता है दिखाएं तुम्हें। कान्हा होते तो तुम सुदामा के घर जाते वो तुम्हारे महल में नहीं आते। युद्ध में और प्रेम में यही तो फर्क होता है युद्ध में आप मिटाकर जीतते हैं और प्रेम में आप मिटकर जीतते हैं। कान्हा प्रेम में डूबा व्यक्ति दुःखी तो रह सकता है किसी को दुःख नहीं दे सकता।

आप तो कई कलाओं के स्वामी हो, स्वप्न, दूर दृष्टा हो, गीता जैसे ग्रन्थ के दाता हो। पर आपने क्या निर्णय किया अपनी पूरी नारायणी सेना कौरवों को सौंप दी और स्वयं को पांडवों के साथ कर लिया। सेना तो आपकी प्रजा थी राजा तो पालक होता है उसका रक्षक होता है।

आप जैसा ज्ञानी उस रथ को चला रहा था जिस पर बैठा अर्जुन आपकी प्रजा को ही मार रहा था, अपनी प्रजा को मरता देख आपको करूणा नहीं आई। क्योंकि आप प्रेम में शून्य हो चुके थे आज भी धरती पर जाकर देखो अपनी द्वारिकाधीश वाली छवि को ढूंढते रह जाओगे, हर घर हर मन्दिर में मेरे साथ ही खड़े नजर आओगे।

आज भी मैं मानती हूं लोग गीता के ज्ञान की बात करते हैं उनके महत्व की बात करते हैं, मगर धरती वाले लोग युद्ध वाले द्वारिकाधीश पर नहीं, प्रेम करने वाले कान्हा पर अधिक भरोसा करते हैं। गीता में मेरा दूर-दूर तक नाम नहीं पर आज भी लोग ‘‘राधे” ‘‘राधे ” ही जपते हैं, ‘‘राधे” ‘‘राधे ” ही जपते हैं।

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