एक दिन सुबह-सुबह साईं बाबा हाथ से पीसने वाली चक्की से गेहूं पीसने लगे। यह देखकर हर कोई हैरान था लेकिन किसी में भी बाबा से इसका कारण पूछने की हिम्मत नहीं थी। सब लोग सोच में पड़ गये कि बाबा का ना तो कोई घर है, ना परिवार फिर गेहूं पीस क्यों रहे हैं?
बहुत देर हो गई यह देखते-देखते तो कुछ महिलाएं साईं बाबा को हटाकर खुद ही गेंहू पीसने लगीं। जब सारा गेंहू पिस गया तो चारों महिलाओं ने आटे के चार हिस्से किए और उसे घर लेकर जाने लगीं। तभी साईं बाबा ने उन्हें रोकते हुए कहा कि इस आटे को ले जाकर गांव की मेड़ पर बिखेर आओ। कुछ दिन बाद पता चला कि गांव में हैजा की बीमारी फैल चुकी थी, आटा पीसकर बिखेरने से इस जानलेवा बीमारी का इलाज हो गया।

साईं बाबा की ऐसी महिमा की उसी आटे ने गांव से हैजा नामक संक्रामक बीमारी को खत्म कर दिया और गांववाले खुश हो गए। साईं बाबा ने बड़े-बड़े रोग-बीमारियों और कुरीतियों का अंत किया था। साईं बाबा की हर लीला में कुछ ना कुछ संदेश छुपा है। आपको जानकारी के लिए बता दें कि साईं बाबा शिरडी में गेहूं पीसने का काम लगभग रोज किया।

साईं बाबा लगभग 60 साल तक शिरडी में रहे। भक्ति और कर्म के बीच ज्ञान के जरिए ही इंसान की सभी बुराइयों का अंत करते थे अर्थात गेहूं प्रतीक था भक्तों के पाप, दुर्भाग्य, मानसिक और शारीरिक कष्टों का और चक्की के दोनों पाटों में भक्ति और कर्म था। चक्की की मुठिया ज्ञान का प्रतीक थी। यानि भक्ति और कर्म के बीच ज्ञान के जरिए ही इंसान की सभी बुराइयों का अंत करते थे साईं। बाबा का दृढ़ विश्वास था कि जब तक इंसान की प्रवृत्तियां, आसक्ति, घृणा और अहंकार नष्ट नहीं हो जाते तब तक ज्ञान और आत्म अनुभूति संभव नहीं।
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