साईं बाबा के भक्तों की गिनती इतनी है कि गिनना मुश्किल हैं। कह सकते हैं कि सबके दिलों में साईं बसते ही हैं। लेकिन आप साईं के जीवन के बारे में क्या जानती हैं और कितना? जितना भी जानती हैं…वो आपको कहां से पता चला है। हो सकता है इंटरनेट से आपको बहुत जानने को मिल गया हो। लेकिन साईं से जुड़ी हर जानकारी का पहला सोर्स एक ही है। नाम है साईं सत्चरित्र। ये एक किताब है, जिसे करीब 90 साल पहले लिखा गया था। इस किताब को साईं के ही अनन्य भक्त ने लिखा था। वो साईं के चमत्कारों को देख कर अचंभित और हतप्रभ भी थे। बाद में वो साईं बाबा के इतने बड़े भक्त बने कि उनके पूरे जीवन को किताब में दर्ज करके शब्दों में पिरो दिया।

1930 में मराठी–
साईं सत्चरित्र को पहली बात 26 नवंबर, 1930 को पब्लिश किया गया था। लेकिन पहली बार इसे मराठी में लिखा गया था। लेकिन फिर 1944 में नागेश देवस्टेट गुनाजी ने इसे अंग्रेजी भाषा में भी लिखा। इसको मराठी वाली किताब से ट्रांसलेट किया गया था। इसके बाद इस किताब को सिंधी, बंगाली, उड़िया, तमिल, टेलगु, हिन्दी, कन्नड़ा, कोंकणी और पंजाबी में भी अनुवाद किया गया।
हेमाद्पंत था नाम–
साईं बाबा के उस भक्त का नाम श्री गोविंद रघुनाथ दाभोलकर उर्फ हेमाद्पंत था, जिन्होंने साईं सत्चरित्र लिखी। उन्होंने सारी बातें सच्ची कहानियों के आधार पर लिखी थीं।
गेंहू छिड़क हैजा से बचाया शिरडी को–
बात 1910 की है, जब पहली बार गोविंद रघुनाथ दाभोलकर उर्फ हेमाद्पंत शिरडी आए तो उन्होंने साईं के चमत्कारों को अपनी आंखों से देखा। वो इतने अचंभित हुए कि उन्होंने देखा कि कैसे साईं बाबा ने शिरडी में हैजा की महामारी को घुसने भी नहीं दिया। उन्होंने गेंहू को पीसकर शिरडी गांव के किनारे-किनारे छिड़क दिया था। बस महामारी शिरडी में घुस भी नहीं पाई। बस यही चमत्कार देख कर हेमाद्पंत ने तय कर लिया कि वो इन सारे कारनामों को किताब में दर्ज करेंगे।
1916 में साईं ने खुद कही हां–
हेमाद्पंत ने जब किताब लिखने की सोची तो साईं बाबा से किस बारे में बात भी की। फिर 1916 में बाबा ने माना कि उनकी जीवनी पर कहानी लिखी जा सकती है। लेकिन हेमाद्पंत की ये प्रार्थना साईं बाबा तक उनके दोस्त माधवराव देशपांडे ने पहुंचाई थी। इस वक्त साईं ने कहा था
1922 में हुई शुरुआत और हेमाद्पंत की मृत्यु –
माना जाता है कि साईं सत्चरित्र लिखने की शुरुआत साल 1922 में हुई थी। खास बात ये है कि हेमाद्पंत इस किताब का 51 वां अध्याय खत्म ही किया था, जब उनकी मृत्यु हो गई। ये बात है साल 1929 की। उनकी लिखी मेन्यूस्क्रिप्ट को आज भी मुंबई के साईं निवास में संभाल कर रखा गया है। ये उसी कमरे में रखी है, जहां बैठ कर उन्होंने इसे लिखा था। उनसे जुड़ी कई दूसरी चीजें भी वहीं रखी गई हैं।
