हिंदू धर्म,पूर्णतया वैज्ञानिक और व्यवहारिक धर्म माना जाता है,जिसमें मनाए जाने वाले हर त्यौहार के पीछे कुछ व्यवहारिक वजहें और मान्यताएं होती हैं,जिसे जानना हर हिंदू धर्म के आवलंबी के लिए  महत्वपूर्ण है। जैसे कि भाद्रपद की पूर्णिमा एवं आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा से अमावस्या तक के समय में पितरों के श्राद्ध की परंपरा है,जोकि पितृ पक्ष के रूप में जाना जात है। इस पितृ पक्ष के मनाए जाने के पीछे भी कुछ आवश्यक मान्यताएं हैं और आज हम आपको इसी बारे में बताने जा रहे हैं।

 

क्यों जरूरी है पूर्वजों का श्राद्ध कर्म

असल में शास्त्रों की मानें तो इस अवधि में हमारे पूर्वज,मोक्ष की कामना लिए धरती लोक पर अपने परिजनों के पास आते हैं। ऐसे में ये हमारा कर्तव्य बनता है कि हम इस दौरान अपने पितरों की शांति के लिए कुछ दानपुण्य कर्म करें और श्रद्धा पूर्वक पितरों के प्रति किए ये कर्म ही श्राद्ध कहलाते हैं।

 

क्या है श्राद्ध की परंपरा

पितृ पक्ष के दौरान पुत्र या पौत्र द्वारा श्राद्ध कर्म किए जाने की परंपरा है,जिसमें तीन पीढ़ी पूर्व तक के पूर्वजों की पूजा करने की मान्यता है। परंपरा अनुसार,सबसे पहले अपने पितरों के आवाहन के लिए भात,काले तिल और घी का मिश्रण बना के उसका पिंड दान और तर्पण किया जाता है। इसके बाद विष्णु भगवान और यमराज की पूजाअर्चना के साथसाथ पितरों की पूजा की जाती है। 

 

क्या है पितृ पक्ष का महत्व

दरअसल,पूर्वजो का श्राद्ध कर्म करने से ना सिर्फ पूर्वजों को मोक्ष प्राप्त होता है,बल्कि आपको उनका आशीर्वाद भी मिलता है। इन 16दिन के पितृ पक्ष में पूर्वजों के प्रति किए गए कर्मकांड के जरिए आपको अपने पूर्वजो के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने का मौका मिलता है,वहीं आपके पूर्वज भी आप पर अपनी कृपा बनाए रखते हैं।

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