अपनी जॉब के घंटों में अपने काम के प्रति ईमानदार रहना हम सभी का फर्ज होता है। ठीक इसी तरह से उस वर्क प्लेस पर अपने अधिकारों के बारे में जागरूक होना भी हमारे लिए बहुत अहम है, क्योंकि यदि वहां हमारे हितों का ध्यान नहीं रखा जा रहा है या फिर हमारे ज़रूरी अधिकारों में कटौती की जा रही है तो उसका असर हमारे काम, हमारे समर्पण के साथ-साथ हमारी योग्यता को भी बहुत गहरे तक प्रभावित करता है। श्रम अधिकार ऐसे विभिन्न कानूनी अधिकारों का समूह है, जिसके अंतर्गत काम करने वालों और काम कराने वालों के बीच मानवीय आधार पर अमल करने की ज़रूरत होती है। यहां पर एक और बात पर ध्यान देने की ज़रूरत है कि गार्मेंट सेक्टर में रोज़गारों की संख्या काफी सीमित है, इसलिए हमारे देश में एक बड़ा वर्ग प्राइवेट सेक्टर में जॉब करता है। ये अक्सर देखने में आता है कि यहां पर कर्मचारियों के हितों की अक्सर अनदेखी की जाती है। भारत के कानून में दिए गए श्रमिक अधिकारों के काफी ऐसे पक्ष हैं, जिनका पालन सभी को करना ही पड़ता है।
अनिवार्य न्यूनतम पारिश्रमिक
हर इंसान, जो कहीं भी नौकरी करता है, उसके काम के स्तर, उसकी शिक्षा, अनुभव, तकनीकी दक्षता के आधार पर ही उसका वेतन तय हो। न्यूनतम पारिश्रमिक विधेयक का उद्देश्य ही इस अधिकार को मज़बूत करना है। साथ ही यह भी तय करता है कि विभिन्न राज्य सरकारें केंद्र सरकारों द्वारा निर्धारित विशेष क्षेत्र के लिए नेशनल मिनिमम वेज के आधार पर ही किसी भी कर्मी का वेतन तय करे। श्रम कानूनों में ऐसी व्यवस्था भी है कि वह कंपनी या ऑफिस अपने कर्मचारियों को तय किए गए काम के घंटों के अलावा कराए गए अतिरिक्त घंटों के कामों का भुगतान भी अतिरिक्त करे।
कार्यस्थल पर भेदभाव नहीं
न सिर्फ़ मानवीय आधार पर, बल्कि श्रम कानूनों के अनुसार भी किसी भी कार्यस्थल पर लिंग, मातृत्व, धार्मिक भावनाओं या मान्यताओं, जाति, नस्ल या राष्ट्रीय मूल, विकलांगता आदि से जुड़े पक्षों के आधार पर भेदभाव नहीं किया जा सकता। विकलांगता का यह पक्ष भी ज़रूरी है कि वह व्यक्ति उस कार्य को करने के योग्यता रखता हो। यहां आप्रवासी दर्जा भी शामिल है, यानी नियोक्ता किसी व्यक्ति को इसलिए नौकरी देने से मना नहीं कर सकता, क्योंकि उस व्यक्ति का जन्म किसी अन्य देश में हुआ है।
न्यूनतम आयु व सुरक्षा
किसी भी कार्यस्थल पर कर्मचारी की न्यूनतम आयु का ध्यान रखा जाना भी ज़रूरी है। इसके अतिरिक्त उस कार्य से जुड़ी हर तरह की सुरक्षा व कार्यस्थल पर एक सुरक्षित व भयमुक्त परिवेश उपलब्ध कराना भी उस कंपनी का फजऱ् है। सुरक्षित परिवेश के अंतर्गत सेहत से जुड़ी सुरक्षा भी शामिल है। यह मामला ऑक्यूपेशनल सेफ्टी एंड हेल्थ एडमिनिस्ट्रेशन के अंतर्गत आता है।
कोडेड लेबर कानून
कोड ऑफ वेजेज बिल्स का नियोजन केंद्र सरकार द्वारा संबद्ध विभिन्न श्रम कानूनों को चार प्रमुख ढांचों में व्यवस्थित करना एक बड़े अधिनियम का हिस्सा है। ये हैं- कोड ऑन वेजेज, कोड ऑन इंडस्ट्रियल रिलेशंस, कोड ऑन सोशल सिक्योरिटी और कोड ऑन ऑक्यूपेशनल सेटी, हेल्थ एंड वॄकग कंडीशंस। इनसे न सिर्फ़ श्रम कानूनों में प्रणालीगत लचीलापन आता है, बल्कि व्यापार करना भी आसान हो जाता है। महिला कर्मचारियों के हित महिला कर्मचारियों से उनके लिंग के आधार पर भेदभाव नहीं किया जा सकता। ये फर्क उनके लिए वेतन तय करते समय भी नहीं किया जा सकता। उनके लिए समान पद, कार्य और काम के घंटों में भी पुरुष कर्मियों के साथ समानता बरती जाएगी। साथ ही कानून द्वारा दिए गए मातृत्व अवकाश व यौन सुरक्षा से संबंधित सभी पहलुओं को पूरा करना सरकारी और प्राइवेट, दोनों ही सेक्टर्स के लिए ज़रूरी है। कौशल और तकनीकी जानकारी संगठित और असंगठित, दोनों ही क्षेत्रों में अपने कर्मियों को बढ़ती मांग पूरा करने के लिए तकनीक से अवगत कराने, उन्हें ज़रूरी प्रशिक्षण दिलाने, नई मशीनरी और तकनीक की जानकारी दिलाना कंपनी के कर्तव्यों में आता है। अन्य ज़रूरी पहलुओं में तकनीक और प्रौद्योगिकी में कर्मचारियों को एक ऐसे संपूर्ण कौशल निर्माण एवं प्रशिक्षण कार्यक्रम के दायरे में लाने की ज़रूरत होगी, जो उन्हें आगामी नवीनताओं से अवगत बनाए रखे।

