yogy ho gae
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बुद्धदेव का एक शिष्य उनके पास हाथ जोड़कर खड़ा हो गया। उन्होंने उससे प्रश्न किया, “क्या चाहते हो?”

शिष्य बोला, “यदि भगवान् आज्ञा दें तो देश विचरण करना चाहता हूँ।” तथागत ने भिक्षु से पुनः पूछा, “पूर्ण! तू कौन से प्रान्त में विचरण करेगा?”

“भंते, सूनापरान्त नामक जनपद में।” भिक्षु पूर्ण ने उत्तर दिया।

“सूनापरान्त के मनुष्य कठोर वचनों का प्रयोग करेंगे तो तुम्हें कैसा लगेगा?”

“मैं समझूँगा कि वे भले हैं, क्योंकि मुझ पर हाथ नहीं उठाते।”

“यदि उनमें से किसी ने धूल फेंकी और थप्पड़ लगाया तो?”

“मैं उन्हें इसलिए भला समझूँगा कि वे मुझ पर डंडों का तो प्रयोग नहीं करते।”

“डंडे मारने वाले भी दस-पाँच मनुष्य मिल सकते हैं।”

“मैं समझूँगा कि वे भी भले हैं, क्योंकि शस्त्र चलाकर प्राण तो नहीं लेते।”

“यदि शस्त्र से मार डालें तो?”

“तो भी समझूँगा कि सूनापरान्त के लोग भले हैं_ क्योंकि कोई-कोई व्यक्ति जीवन से तंग आकर आत्महत्या करने के लिए शस्त्र खोजते हैं और वह शस्त्र मुझे अनायास ही प्राप्त होता है।”

शिष्य की बात सुनकर बुद्धदेव बड़े ही प्रसन्न हुए_ बोले, “अब तुम पर्यटन करने के योग्य हो गये हो! सच्चा साधु वही है, जो कभी भी किसी भी दशा में किसी को बुरा नहीं कहता। जो दूसरों की बुराई नहीं देखता, जो सबका भला ही समझता है, वही परिव्राजक होने योग्य है।”

ये कहानी ‘ अनमोल प्रेरक प्रसंग’ किताब से ली गई है, इसकी और कहानियां पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर जाएंAnmol Prerak Prasang(अनमोल प्रेरक प्रसंग)