tisate kshan
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भारत कथा माला

उन अनाम वैरागी-मिरासी व भांड नाम से जाने जाने वाले लोक गायकों, घुमक्कड़  साधुओं  और हमारे समाज परिवार के अनेक पुरखों को जिनकी बदौलत ये अनमोल कथाएँ पीढ़ी दर पीढ़ी होती हुई हम तक पहुँची हैं

अरे! भैया जी, जरा अपना सामान उस सीट के नीचे रखिए। मुझे भी तो अपना सामान रखना है।

  • कहती हुई मरियम अपना बैग व्यवस्थित करने लगी। आज वह प्रयागराज से दिल्ली वापस जा रही थी। कल उच्च न्यायालय में उसके सम्बन्ध-विच्छेद के मुकदमे की सुनवाई थी। मरियम अन्य सुनवाई की तरह इस बार भी अगली तारीख लेकर वापस घर लौट रही थी और न्यायालय के लेट-लतीफ कार्यवाही को मन ही मन कोस रही थी।

भागदौड़ से थकी हुई मरियम जैसे ही व्यवस्थित होकर रेलगाड़ी में बैठी ही थी कि तभी उसकी छोटी बिटिया का कॉल आया, “माँ! कैसी हो? तबियत तो ठीक है। केस में क्या हुआ? वकील ने इस बार कुछ हला-भला किया कि नहीं।” ऐसे ही कितने प्रश्नों की बौछार रमोला ने एक ही सांस में कह डाली। तब मरियम ने शान्तचित्त होकर कहा, “बेटा! बताती हूँ… बताती हूँ। पहले थोड़ा सांस तो ले लो। पहले तो मेरी इतनी चिन्ता ना किया करो! अपना सारा ध्यान पढ़ाई में लगाओ। यहाँ जो भी होगा, मैं सम्भाल लूंगी और रही केस की बात तो आज भी पहले की तरह आगे की सात जुलाई की तारीख ही मिली है। कुछ नया नहीं जो तुरंत तुझे बताती।”

“ओह! अच्छा माँ, कब तक केस से छुटकारा मिलेगा, कुछ वकील अंकल ने बताया?

  • खीझते हुए रमोला ने पूछा। मरियम ने समझाया कि बेटा! यह अदालत की कार्यवाही है। एक-एक केस में वर्षों लगते हैं। अच्छा मोबाइल रखो, घर पहुँच कर आराम से बात करेंगे। खुश रहिए।

छोटी बेटी रमोला से बात करने के बाद मरियम खिड़की से टेक लगाकर बैठ गयी। थकान के कारण शीघ्र ही वह स्वप्न में खो गयीं और अतीत मानो चलचित्र की भांति उसके समक्ष चलने लगा ।

बात है, जब मरियम के विवाह की तैयारी घर में जोर-शोर से चल रही थी। विक्की एक प्रख्यात कम्पनी में मैनेजर था। परिवार वाले इस रिश्ते से बहुत प्रसन्न थे। मरियम भी एक बार विक्की से मिल चुकी थी। विक्की के व्यक्तित्व से बहुत प्रभावित थी। अतः उसने विवाह के लिए सहर्ष स्वीकृति भी दे दी ।

मरियम ने अपने सुखी दाम्पत्य जीवन के लिए कितने ही स्वप्न भी सजा लिए थे। हंसी-खुशी वैवाहिक आयोजन सम्पन्न हो गया और मरियम अपने नये परिवार में रचने-बसने का प्रयास करने लगी। देखते ही देखते विवाह को दस वर्ष बीत गये और इस अन्तराल में उसने दो फूल-सी पुत्रियों को जन्म दिया- देवीना और रमोला ।

मरियम की दोनो पुत्रियाँ जब विद्यालय जाने लगी तब उसे अपने लिए कुछ समय मिलने लगा। वह भौतिक विज्ञान से परास्नातक थी और बीएड भी कर रखा था, अतएव उसने विक्की से विचार-विमर्श कर पड़ोस के मकान में बाल-विद्यालय खोलने निश्चय किया। हालांकि विक्की ने साफ-साफ कह दिया था कि घर की सारी जिम्मेदारियों को निभाते हुए अपना यह शौक पूरा कर सकती हो तो करो। मुझे ऐतराज नहीं लेकिन ध्यान रखना तुम्हारे शौक के कारण घर में किसी भी प्रकार की कमी बर्दाश्त नहीं करूँगा। विक्की की इस बात से मरियम का उत्साह कम नहीं हुआ अपितु जीवन के इस नये मोड़ को वह जी-भर के जीना चाहती थी। विवाह के पश्चात जिस सामाजिक ताने-बाने में जो उसका व्यक्तित्व गुम गया था, उसे प्रकाश से भर देना चाहती थी। सौभाग्यवश इसमें उसे उसकी पुत्रियों का पूरा साथ और प्रेम मिला।

समय के साथ मरियम को अपने लक्ष्य में सफलता मिलने लगी। मरियम के स्नेह और परिश्रम से ‘फर्स्ट स्टेप नर्सरी स्कल’ का नाम दूर-दूर तक फैल गया। माता-पिता इस विद्यालय में नाम लिखवाना श्रेयस्कर व बच्चों के लिए हितकर समझने लगे। मरियम की उपलब्धि पर उसकी पुत्रियाँ बहुत गर्व करती थीं। यह सब विक्की के अहं को कहीं न कहीं ठेस पहुँचा रहा था। पिछले दस वर्षों से जिस परिवार का वह सर्वेसर्वा था, लोग प्रत्येक छोटी-बड़ी वस्तुओं के लिए उस पर निर्भर थे; आज मरियम की सफलता व आत्मनिर्भरता उसे प्रतिद्वंद्वी प्रतीत हो रही थी। उसके दम्भ व पौरुष को जो चोट पहुँच रही थी उसका प्रतिफल विक्की के व्यवहार में परिलक्षित होने लगा। वह मरियम को छोटी-छोटी बातों पर झिड़कने लगा। परिवार के प्रति दायित्वों में कमी निकालकर दोषी ठहराने लगा लेकिन मरियम काम का बोझ समझ इन बातों को अनदेखा कर रही थी। उसका परिश्रम रंग ला रहा था। सड़क पर चलते लोग मरियम को सम्मान देने लगे और विक्की को मरियम के पति के रूप में अधिक पहचानने लगे। यह बात अब विक्की के लिए असहनीय होने लगी।

जब विक्की के झिड़कने और क्रोध का मरियम पर प्रभाव नहीं पड़ा तब उसने साम, दाम, दण्ड, भेद अपनाने की ठानी। एक रविवार के दिन उसने पिकनिक का प्रोग्राम बनाया। सभी लोग पिकनिक पर प्रसन्नता से गये, जब पुत्रियाँ खेलने लगीं तो विक्की बड़े प्यार से मरियम की गोद में सिर रखकर लेट गया। वह भी बालों को सहलाने लगी। आज बहुत दिनों बाद उसके जीवन में सुखद क्षण आये थे। अवसर पाते ही विक्की बोल उठा, “मरियम! जबसे तुम अपने स्कूल की झंझट में फंस गयी हो तबसे हमें आपस में सुखद समय बिताने का समय ही नहीं मिल रहा।” मरियम ने भी सहमति में सिर हिला दिया और कहा, “शायद तुम सच बोल रहे हो परन्तु स्कूल मेरे जीवन का महत्त्वपूर्ण हिस्सा बन गया है। मैं वहाँ जाकर अपने को और अपनी सारी परेशानियों को भूल जाती हूँ। मुझे मेरा जीवन सार्थक लगने लगा है… परन्तु मैं पूरी कोशिश करती हूँ कि इससे मेरे पारिवारिक दायित्वों में कमी न आए। फिर भी पता नहीं कहाँ और कैसे चूक जाती हूँ। प्रभु यीशु की कृपा से तुम मेरी जिन्दगी में हो। देखो! आज तुमने ही ये खुशी के पल हमारे जीवन में भर दिए, थैक्स डियर।”

विक्की को समझ नहीं आ रहा था कि वह कैसे स्कूल बन्द करवाए कि तभी मरियम की माँ का स्वास्थ्य खराब हो गया। वह परेशान हो उठी। मार्च का समय था। परीक्षाएं समाप्त हो गयी थीं, बस रिजल्ट देना रह गया था। उसे समझ नहीं आ रहा था कि स्कूल का कार्य देखे या बीमार माँ को देखने जाए। यद्यपि भाई माँ का ध्यान रख रहा था परन्तु वह भी तो एक बेटी है, उसका भी कुछ दायित्व है। उसने विक्की को परिस्थिति बताई। विक्की ने कहा- तुम परेशान न हो। जाओ माँ को देखो। मैं यहाँ सब सम्भाल लूंगा। मरियम हृदय से उसे बहुत धन्यवाद देती हुई अपने भाग्य को सराह रही थी और शीघ्रता से बच्चों को लेकर माँ के पास चली गई।

सप्ताह के पश्चात् माँ के स्वास्थ्य में सुधार आ गया। मरियम बच्चों के साथ घर वापस आ रही थी। आखिर अप्रैल से स्कूल में नये सत्र की तैयारी भी तो करनी थी। रेलवे स्टेशन पर ही उसे एक बच्चे के माता-पिता मिले। उन्होंने मरियम को देखते ही बड़ी ही उत्सुकता के साथ पूछा, “आपने अपना स्कूल क्यों बन्द कर दिया? इतना अच्छा चल रहा था। हमारे बच्चों को आपके संरक्षण की बहुत आवश्यकता थी। यदि कोई समस्या हो तो हमें अपना शुभचिंतक समझकर अवश्य बताइएगा। हमसे जो भी बन पड़ेगा हम सब करेंगे।” उनकी बातें सुनकर मरियम स्तब्ध थी। उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या प्रतिक्रिया दे? मन में प्रश्नों का अम्बार लग गया। ये ऐसा क्यों कह रहे हैं? आखिर ऐसा क्या हो गया? मरियम सशंकित हो उठी। उनसे इतना ही कह पायी कि, “जी, जरूर।” कहते ही तेज कदमों से घर की ओर बढ़ी। बच्चियाँ पूछ रहीं थीं कि माँ! ये अंकल-आण्टी ऐसे क्यों बोल रहे थे। पर उनकी बातें मानो उसके कानों तक नहीं पहुंच रही थी। बस वह किसी तरह शीघ्रता से घर पहुँचना चाहती थी।

घर पहुँचते ही सामान एक तरफ रखते हुए बदहवास मरियम ने विक्की से पूछा, “अविनाश के माता-पिता मिले थे। अपने स्कूल के बारे ऊटपटांग बातें कह रहे थे। कोई बात हो गई है क्या जी? “विक्की निश्चिन्त भाव से बोला कि अभी तो आई हो, पहले कुछ खा-पी लो। बच्चे तुम थोड़ा आराम कर लो फिर बात करते हैं। अभी मुझे ऑफिस के काम से जल्दी जाना है, ओके बाय। मरियम ने सोचा कुछ ऐसी-वैसी बात होती तो ये अवश्य बताते और अविनाश के माता-पिता की बातों को अनसुना कर घर के काम-काज में जुट गयी। रात किसी तरह आंखों ही आंखों में बीती। उसे सुबह स्कूल जो जाना था। इधर विक्की का व्यवहार भी कुछ बदला-बदला सा लग रहा था।

सुबह हुई। मरियम दैनिक कार्यों को निपटा कर स्कूल पहुँची और सब देख कर उसे पैरों तले जमीन खिसक गयी। उसे चक्कर आया तो पास की दीवार के सहारे जमीन पर बैठ गयी और फफक-फफक कर रोने लगी। उसने देखा पूरा स्कूल खाली है। वहाँ की मेज-कुर्सियां, फ्रेम, बोर्ड कुछ भी नहीं है। उसके मस्तिष्क में अविनाश को माता-पिता की बातें रह-रह कर गूंजने लगी। उसके समक्ष विक्की का विश्वासघात राक्षस की भांति मुंह खोले खड़ा था। मरियम घण्टों अचेत-सी पड़ी रही फिर एकाएक वह उठ खड़ी हुई। अपने आंसू पोंछते हुए तत्क्षण अपने आपसे सौगन्ध खायी कि वह टूटेगी नहीं, रोएगी नहीं, गिड़गिड़ाएगी नहीं अपितु फिर से पैरों पर खड़ी होकर दिखाएगी। अब मरियम के मुख पर अलग ही आभा थी। हृदय में कुछ अलग कर देने का जज्बा था। मरियम ने भाई को फोन लगाया और आपबीती बताई। भाई ने उसको आश्वस्त कर साथ होने का धैर्य बंधाया और बोला, “दीदी! आप समझदार हो। जो भी करोगी, अपने और बच्चों के हित में करोगी। यदि मेरी आवश्यकता हो तो बताओ, मैं अभी आ जाऊँ!” मरियम ने कहा, “नहीं भैया! तुम मत आना। जैसा भी होगा, मैं बताऊँगी।”

मरियम ने घर लौटकर विक्की से यह सब करने का कारण जानना चाहा परन्तु वह ऐसा कोई उत्तर नहीं दे पाया जो उसकी करनी को उचित ठहरा सके अपितु चिकने घड़े की तरह उसने मरियम को घर पर रहकर परिवार देखने और व्यक्तिगत व्यय के लिए मासिक आठ-दस हजार अतिरिक्त देने का प्रस्ताव रखा। निःसन्देह जिसे मरियम ने ठुकरा दिया।

विक्की के विश्वासघात ने उसे अन्दर तक साल दिया था। अतः विश्वास की डोर टूटने के बाद साथ रहना दुष्कर कार्य था। फिर भी कुछ निर्णय लेने से पहले पुत्रियों के विचार लेना आवश्यक समझा क्योंकि इस निर्णय का सीधा प्रभाव उनके जीवन पर पड़ना था। उन बच्चियों ने मां का परिश्रम देखा था इसलिए माँ के निर्णय में साथ दिया और नानी के घर चलीं गयीं। विक्की ने रोकने का प्रयास भी नहीं किया। वह उसे अपनी क्रिया की प्रतिक्रिया मान रहा था। उसने पहले ही स्कूल के सारे सामान बेचकर रुपये अपने पास सुरक्षित कर लिये थे और आश्वस्त था कि जिस समय मरियम को बच्चों की परवरिश का खर्चा व अपनी जरूरतें समझ आएंगी तो उसकी अकड़ निकल जाएगी। अंततः मरियम पहले की तरह उसके संरक्षण में सहज जीवनधारा में वापस चली आएगी।

परन्तु गहरी चोट खायी मरियम ने विक्की की इस सोच को गलत साबित कर दिया। उसने मायके जाकर विद्यालय में शिक्षिका के लिए आवेदन देकर और योग्यता के अनुरूप पद प्राप्त किया। पुत्रियों ने भी मन लगाकर पढ़ाई की। इस कठिन समय में माँ की भुजाएँ बन गयीं। समय गुजरता गया और देखते ही देखते देवीना भौतिक विज्ञान से परास्नातक कर पी.एच. डी के लिए स्कॉलरशिप लेकर कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय चली गयी। रमोला दिल्ली विश्वविद्यालय से एम.बी.ए कर रही है। वर्षों पश्चात् विक्की का देवीना के पास कॉल आया। बेटा! घर आ जाओ। मुझे आपकी आवश्यकता है। देवीना ने उत्तर दिया, “पापा सॉरी! जब हमें आपकी जरूरत थी तब आपको नहीं थी। अब हमने आपके बगैर जीना सीख लिया है। मेरी माँ हमारे लिए काफी है।”

तभी मरियम के साथ चल रही महिला ने हिलाते हुए कहा, “अरे बहन! तुम्हारा ध्यान कहाँ है? तुम्हें गाजियाबाद उतरना था न! अगला स्टेशन ही है।” मरियम एकाएक वर्तमान में लौट आयी और धन्यवाद देती हुई सामान व्यवस्थित करने लगी।

भारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा मालाभारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा माला’ का अद्भुत प्रकाशन।’