sukhi vyakti
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एक दार्शनिक था। वह इतना सादगी पसंद था कि पैरों में जूते तक नहीं पहनता था। फिर भी वह रोजाना नगर के एक भव्य बाजार में घूमने जाता। हर दुकान के सामने कुछ पल खड़ा होता, वहाँ सजाकर रखी हुई वस्तुओं को देखता, मुस्व़्ाफ़ुराता और आगे बढ़ जाता।

यह सिलसिला एक लंबे समय से चल रहा था। एक बार एक दुकानदार ने उससे पूछा कि आप वर्षों से चीज़ों को देखते हैं, यदि आपको कुछ चाहिए तो बताइए, मैं आपको बिना दाम के वह चीज़ दे सकता हूँ। दार्शनिक ने कहा कि उसे कुछ नहीं चाहिए। दुकानदार ने आश्चर्य से पूछा कि फिर आप रोजाना इन चीज़ों को इतने मनोयोग से क्यों देखते हैं। दार्शनिक ने उत्तर दिया कि मैं सिर्फ स्वयं को यह याद दिलाते रहना चाहता हूँ कि संसार में ऐसी हजारों चीज़्ों हैं, जिनके बिना भी सुख से रहा जा सकता है।

सारः हम अपनी इच्छाओं को जरूरत का नाम न दें तो बहुत कम में भी जिया जा सकता है।

ये कहानी ‘इंद्रधनुषी प्रेरक प्रसंग’ किताब से ली गई है, इसकी और कहानियां पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर जाएंIndradhanushi Prerak Prasang (इंद्रधनुषी प्रेरक प्रसंग)