भारत कथा माला
उन अनाम वैरागी-मिरासी व भांड नाम से जाने जाने वाले लोक गायकों, घुमक्कड़ साधुओं और हमारे समाज परिवार के अनेक पुरखों को जिनकी बदौलत ये अनमोल कथाएँ पीढ़ी दर पीढ़ी होती हुई हम तक पहुँची हैं
“कभी एशिया महादेश का सबसे बड़ा गाँव ‘भुवन’ हुआ करता था। तुझे पता है क्या रीकु? पर अब नहीं है। खैर छोड़ो ये बात।”
नारायण चाचा रीकु को बोल रहे थे…
रीक चपचाप सन रहा था उनकी बातें। जब वह गांव जाता था. उसको नारायण चाचा घुमाने ले जाते थे। इस बार ब्राह्मणी नदी के किनारे ले गए हैं। जो कि जिल्ला ढेंकानाल शहर से भुवन को बिलकुल छिन्न कर देता है। इसलिए एक ब्रिज बन रहा है नदी के ऊपर। ताकि भुवन गांव को जोड़ पाएगा शहर के साथ और लोग आसानी से नदी के उस पार ‘कपिलाश’ नाम के एक दर्शनीय स्थान भी जा पाएंगे। रोज हजार-हजार श्रद्धालुओं की भीड़ रहती है वहां। जब कि वो भगवान शिव जी का मंदिर है और हर साल वहां महाशिवरात्रि मनाया जाता है लाखों भक्तों से।
वह ब्रिज दिखाने नारायण चाचा रीकु को ले गए।
(ब्राह्मणी नदी ओडिशा की बड़ी-बड़ी नदियों में से एक है)
अचानक एक स्टैच्यू के ऊपर रीकु की नजर पड़ गई तो चाचा को पूछने लगा कि वो किस की स्टैच्यू है। उसने जितने भी स्टैच्यू देखे हैं, सब के सब किसी न किसी बूढे या बूढ़ी लोगों के होते हैं, पर आज उसको कुछ अलग दिख गया तो ये बात जानने के लिए उत्सुकता के साथ चाचा को पूछने लगा।
चाचा ने बताया…वो स्टैच्यू ‘बाजी राउत’ नाम का एक बारा साल के लड़के का है। जब अंग्रेजों का शासन चल रहा था तब की बात है। बाजी के पापा एक केवट थे और उनकी एक नाव थी, उसी से वो लोगों को नदी पार करवाते थे क्योंकि तब नदी के ऊपर ब्रिज नहीं था। एक दिन बाजी के पापा किसी कारण से काम पे आ नहीं पाए तो काम संभालने के लिए बाजी नाव चलाने आ गया था। वो कभी-कभी पापा के साथ नाव पर आता था तो उन से नाव चलाना सीख गया था। उसी दिन शहर से बंदूक धारी कुछ अंग्रेज सैनिक भवन गांव आने के लिए नदी के उस पार आ गए। बाजी राउत को उन लोगों को अपनी नाव में बिठा के इस पार पहुंचाने के लिए बोले। बाजी इन दुश्मनों की बात नहीं माना और नदी पार नहीं करवायी। जिसके कारण उसको अंग्रेजों की गोलियां खानी पड़ी और वो शहीद हो गया था वहीं, इसी नदी के किनारे।
12 साल की उम्र में बाजी राउत ने अंग्रेजों की गोलियां खाई और शहीद हुए। लेकिन उनके साहस की कहानी आज भी रगों में जान फूंक देती है। स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में बाजी राउत को देश का सबसे कम उम्र का शहीद बताया गया है।
रीकु को इतनी बड़ी बात की जानकारी मिली तो मन ही मन में सोच रहा था काश… वो भी उस वक्त होता। तुरंत आसपास से वो कुछ फूल ले आया और उस स्टैच्यू पर फूल अर्पित कर रिकु ने शहीद बाजी राउत को सैल्यूट किया।
मैं भी अपने देश के लिए कुछ जरूर करूंगा चाचा।
चाचा उसके सिर पर हाथ रख के बोले-
“शाबाश बेटा! यही जोश और साहस लाने के लिए ही तो यह स्टैच्यू यहीं पर बनाया गया है, ताकि तेरे जैसे बच्चों को प्रेरणा मिले और वो आगे बढ़ें, देश के लिए कुछ कर सकें।
भारत कथा माला
उन अनाम वैरागी-मिरासी व भांड नाम से जाने जाने वाले लोक गायकों, घुमक्कड़ साधुओं और हमारे समाज परिवार के अनेक पुरखों को जिनकी बदौलत ये अनमोल कथाएँ पीढ़ी दर पीढ़ी होती हुई हम तक पहुँची हैं
