mittee ke khilaune moral story
mittee ke khilaune moral story

एक था खिलौना वाला बल्लू शाह। वह चुनमुन के घर के पास खिलौने बेचने आता था। बड़ा ही मनमौजी था बल्लू शाह। हरदम अपनी घनी-घनी मूँछों में हँसता रहता। और कलाकार तो ऐसा कि क्या कहने! उसके खिलौने मानो बोलते हुए जान पड़ते। शाम के समय मोहल्ले के सारे बच्चे उसके खिलौनों को देखने दौड़ पड़ते। सब बड़ी हसरत से खिलौनों को देखते। अगर किसी की जेब में पैसे हों तो वह बल्लू शाह की रंग-बिरंगी चिड़ियाँ, तोते, मोर, हिरन या खरगोश खरीदे बगैर न रहता।

चुनमुन को भी बहुत अच्छे लगते थे बल्लू शाह के बनाए हुए खिलौने। तरह-तरह के मोर, हिरन, शेर और बारहसिंघे। उजले-उजले हंस, बतखें और छोटी-छोटी, चंचल रंग-बिरंगी चिड़ियाँ। अहा, क्या कला थी! इसी तरह लाला मटरूमल की बारात भी अनोखी थी, जिसमें तरह-तरह के बैंड-बाजे वाले लोग थे और आगे-आगे झबरे बालों वाला एक मोटा भालू नाचता जा रहा था। बच्चों को बल्लू शाह के बनाए सफेद खरगोश भी बहुत अच्छे लगते थे, बिल्कुल पप्पू जैसे। इतने प्यारे, जैसे अभी उछल-उछलकर नाचने लगेंगे।

चुनमुन बल्लू शाह के उन खिलौनों को बार-बार देखने जाता था। पूछता, ”बल्लू चाचा, आप इन्हें कैसे बनाते हैं? मुझे भी सिखा देंगे इतने सुंदर-सुंदर खिलौने बनाना?”

इस पर बल्लू शाह घनी-घनी मूँछों में मुसकराने लगता। फिर हँसकर कहता, ”कभी मम्मी-पापा के साथ आना हमारे गाँव झिलमिलपुर में। एक दिन रहना हमारे साथ। बस, अपने आप समझ जाओगे!”

बल्लू शाह खूब हँस-हँसकर चुनमुन से बातें करता। चुनमुन का भोलापन उसे भा गया था। चुनमुन को भी बड़ी अच्छी लगती थीं बल्लू शाह की बातें। सोचता, ”कितना मनमौजी है बल्लू शाह! लेकिन कलाकार कैसा अनोखा है। जरा भी घमंड नहीं।’

एक दिन चुनमुन ने घर आकर कहा मम्मी से, ”मम्मी, क्या हम कभी बल्लू शाह के गाँव झिलमिलपुर नहीं जा सकते? उसने मुझे रास्ता भी बता दिया है। मेरा मन है कि नजदीक से देखूँ, बल्लू चाचा ये इतने बढ़िया खिलौने बनाते कैसे हैं!”

मम्मी ने पापा से कहा, तो वे झटपट राजी हो गए। बोले, ”सचमुच बल्लू शाह अनोखा कलाकार है। उसके खिलौने सबसे अलग हैं और एकदम बोलते हुए जान पड़ते हैं। उसे खिलौने बनाते देखना वाकई अच्छा लगेगा।”

”और पापा, बल्लू चाचा ने बताया है, उनका गाँव नदी किनारे है—बड़ा ही सुंदर। हम वहाँ घूम भी सकते हैं।” चुनमुन बोला।

”बिल्कुल…बिल्कुल!” पापा ने कहा। मम्मी ही नहीं, मीनू दीदी और नंदू भैया भी इस बात से खुश थे कि उन्हें नदी किनारे घूमने को मिलेगा। फिर रंग-रंग के खिलौने बनाते बल्लू शाह को तो वे देखेंगे ही।

अगले इतवार को चुनमुन के मम्मी-पापा उसके साथ-साथ मीनू दीदी और नंदू भैया को भी लेकर गए बल्लू शाह के गाँव झिलमिलपुर में। सबको वहाँ बड़ा अच्छा लगा। बल्लू शाह खुश था। उसकी घरवाली सरोज और बच्चे भी उत्साह से भरे हुए थे।

चुनुमन ने बल्लू शाह के बनाए खिलौने तो देखे ही, साथ ही खुद अपने हाथों से भी खिलौने बनाए और उनमें रंग भरे। मीनू दीदी ने गुड़ियाँ और नंदू भैया ने हाथी बनाया। वे नदी किनारे घूमने भी गए।

जब चुनमुन अपने मम्मी-पापा के साथ झिलमिलपुर से लौट रहा था, उसकी गोदी में दो लंबे-लंबे कानों वाले बड़े ही खूबसूरत खरगोश थे। बल्लू शाह ने इन्हें चुनमुन को भेंट करते हुए कहा था, ”चुनमुन, ये बेचने के लिए नहीं है। मैंने तुम्हें भेंट करने के लिए खास तौर से बनाए हैं। इन्हें सँभालकर रखना, मेरी याद के रूप में!”

अब कुछ समय से बल्लू शाह का आना कम हो गया है। पर उसके बनाए खिलौने चुनमुन को उसकी याद दिलाते हैं और वह मन ही मन कह उठता है, ”सचमुच अनोखे कलाकार हैं बल्लू चाचा!”