तभी अचानक सांता को याद आया, अपना उपहारों वाला पिटारा। उसे अब खोलने का समय आ गया था। सबसे पहले उसे हैरी की याद आई और उसकी बग्घी शहर के लालपुर मोहल्ले की ओर दौड़ पड़ी। एकदम ऊबड़-खाबड़ रास्ता। बड़ी मुश्किल से मिला हैरी का घर। सांता बहुत चुपके से उसकी चारपाई के पास पहुँचा, ताकि उसकी नींद न खुले। पर हैरी की नींद फिर भी खुल ही गई।
सांता को देखकर जैसे उसे यकीन ही नहीं हो रहा था कि सचमुच सांता उसके पास आया है।
वह खुशी के मारे रो पड़ा।
सांता ने उसके सिर पर हाथ फेरा, तो वह धीरे से बुदबुदाया, “सांता…सांता माई फ्रेंड! तुम मेरा उपहार लाए हो? जरूर लाए होगे! मेरी वह प्यारी डाॅल, जो हैट उठाकर सबको नमस्ते…!” और सांता ने उसे बड़ा सा पैकेट पकड़ाया तो वह ‘थैंक्यू’ कहकर उसे पकड़े-पकड़े सो गया।
सांता मुसकराया। सोचने लगा, ‘शायद हैरी को लगा होगा कि यह भी एक सपना है…!’ उसके चेहरे पर एक मीठी, शरारती मुसकराहट थिरक उठी।
फिर सांता ने अपनी बग्घी जॉन के घर की ओर मोड़ दी।
जॉन का घर वाकई बड़ी तंग और अँधेरी गलियों में था। कहीं-कहीं तो इतना तंग रास्ता और सँकरे मोड़ थे कि बग्घी को वहाँ से निकालने में बड़ी आफत आई। फिर जगह-जगह गड्ढे, ऊबड़-खाबड़ रास्ता। जहाँ-तहाँ कीचड़ और कूड़े के ढेर।…
पर सांताक्लॉज ने जान के घर पहुँचकर ही दम लिया। गनीमत थी कि उसके घर की खिड़की खुली थी।
“ओह, शुक्र है…प्रभु का लाख-लाख शुक्र!” बड़ी देर बाद सांता के चेहरे पर मुसकान आई।
उसने बग्घी पर खड़े होकर देखा, खिड़की उसकी पहुँच में थी। बस, वहीं से उसने झटपट टाॅफी और चाकलेट वाला पैकेट सरकाया। उसी पैकेट में उसने ऊपर-ऊपर जॉन की फीस के रुपए भी रख दिए थे। पूरा पैकेट धीरे से उसके सिरहाने के पास जाकर टिक गया।
देखकर सांता खुश था। आनंदमग्न!…वह किसी छोटे बच्चे की तरह किलक पड़ा। पर फिर जल्दी ही उसने अपनी खुशी को दबा लिया और अपने अगले पड़ाव के बारे में सोचा।
अब सांता ने बग्घी को नील के घर की ओर मोड़ दिया।
तेजी से दौड़ती उसकी बग्घी कुछ ही देर में नील के घर के पास आकर रुकी। नील का घर एक बहुमंजिली इमारत में ऊपर वाली बरसाती पर था।…पर वहाँ तक पहुँचा कैसे जाए?
सीढ़ियों पर बड़ा सा पीतल का ताला लटक रहा था। ऊपर जाने का कोई और रास्ता भी नहीं।
तो अब क्या हो…? सांता परेशान।
सांता ने गौर से इधर-उधर देखा, तो उसकी निगाह लोहे के एक पाइप पर गई, जो ऊपर तक चला गया था। वह जैसे खुशी के मारे चिल्ला पड़ा, “वव्वाह…! मिल गया…मिल गया रास्ता…!! अरे, यही लोहे का पुराना पाइप! शायद बारिश के पानी के निकास के लिए यह पाइप लगाया गया हो। ठीक है, पुराना है, पर अभी तो मजबूत लगता है। तो क्यों न इसी के सहारे…!”
अब देर करने की भला क्या जरूरत थी? सांता ने झट पानी के पाइप के सहारे ऊपर चढ़ने का फैसला किया और फिर तेजी से अपनी योजना को अंजाम देना शुरू किया।
उसे इस तरह ऊपर चढ़ते हुए खुद हँसी आ रही थी। पर फिर अपना निश्चय याद आया कि जैसे भी हो, नील को क्रिसमस पर उपहार देना ही है।
आखिर सांता पानी के पाइप के सहारे ऊपर चढ़ने में कामयाब हो ही गया। इस कोशिश में उसका लाल चोगा एक-दो जगह नुकीली कील में उलझने से फट गया। माथे पर हलकी सी खरोंच भी आई। पर नील के पास पहुँचने की खुशी इस सबसे बढ़कर थी।
अपने इस अद्भुत करतब के जरिए सांता जिस समय नील के पास पहुँचा, वह गहरी नींद में था। पर दोस्तों की हँसी-मजाक में कही गई तीखी बातों ने उसे शायद रुलाया भी था। इसीलिए सोते हुए भी उसके गाल पर आँसू की कुछ बूँदें दिखाई पड़ रही थीं।
सांता ने नील को एक बड़ा सा केक उपहार में दिया। नीले रंग की एक सुंदर पैंट और नारंगी शर्ट भी। साथ ही अपने हाथ से लिखकर एक प्यारी सी चिट्ठी भी रख दी, जिस पर मोती जैसे सुंदर अक्षरों में उसने लिखा था—
‘तुम बहुत अच्छे बच्चे हो, नील। बहुत अच्छे।…मेरा दिल तुम्हारी बातें याद करके आनंद से भर जाता है। तुम जिंदगी में बहुत आगे निकलोगे और सबको खुशियाँ बाँटोगे। मुझे पता है, तुम्हारे दिल में बहुत नेकी और उजाला है। प्रभु का एक प्यारा अंश तुममें है। यही तुम्हारी सबसे बड़ी दौलत है। और इसीलिए यीशु तुम्हें प्यार करते हैं।…
तुम्हारा दोस्त, सांता’
ये उपन्यास ‘बच्चों के 7 रोचक उपन्यास’ किताब से ली गई है, इसकी और उपन्यास पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर जाएं – Bachchon Ke Saat Rochak Upanyaas (बच्चों के 7 रोचक उपन्यास)
