किसी राज्य में एक बहुत ख्यातिप्राप्त चित्रकार भी था। कोई भी चित्र- बनाने से पहले वह चित्र बनवानेवाले से पूरी अग्रिम राशि ले लेता था। वह चित्र बनाने के लिए बहुत अधिक मूल्य लेता था। उससे जलने वालों ने उसकी शिकायत राजा तक पहुँचा दी। राजा ने उसकी परीक्षा लेने के लिए एक गणिका को उसके पास भेजा। गणिका ने उसे चित्र बनाने के लिए बुलाया और उसे चित्र बनाने के लिए कहा। चित्रकार ने उससे एक मोटी राशि मेहनताने के रूप में माँगी। वह मान गई। उसने अपना चित्र ले जाकर राजा को सौंप दिया और कहा कि उसके बनाए चित्र लाजवाब हैं, लेकिन वह बहुत लालची है।
राजा को बहुत क्रोध आया। उसने कला को बेचने के लिए उसे दंडित करने का निश्चय किया और उसके घर पर आ पहुँचा। वहाँ उसे पता चला कि वह किसी कार्य वश नगर से बहुत दूर स्थित एक सीमावर्ती गाँव में गया हुआ है। राजा अपने सैनिकों को लेकर उस गाँव में जा पहुँचा। वहाँ जाकर उसने देखा कि गाँव में अकाल पड़ा हुआ है और एक स्थान पर सभी भूखों को भोजन कराया जा रहा है। उसे बहुत हैरानी हुई कि उसके राज्य में यह सब हो रहा है और उसे जानकारी तक नहीं है।
उसने पूछा कि इस गाँव में ऐसा कौन व्यक्ति है, जो पूरे गाँव के लिए भोजन की व्यवस्था कर रहा है। तो उसे पता चला कि जिस चित्रकार को वह लोभी समझकर दंडित करना चाहता था, वह लोगों के चित्र बनाकर उनसे मिली राशि से इस गाँव के लोगों की सहायता कर रहा था। वह चुपचाप वापस चला गया। और जब चित्रकार शहर लौटा तो उसने उसे बुलाकर अपना विशेष सलाहकार नियुक्त कर लिया।
सारः सत्य जाने बिना किसी के बारे में बुरी राय नहीं बनानी चाहिए।
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