एक मंदिर के पास में एक किसान की झोपड़ी थी। मंदिर में रोजाना एक साधु प्रवचन के लिए आते थे। जब उनका प्रवचन आरंभ होता तो किसान भी अपने घर में ही बैठ जाता और उनका प्रवचन सुनने लगता।
एक दिन पिंजरे में बंद उसके पालतू तोते ने उससे पूछा किं प्रवचन आरंभ होते ही, वह ऐसे क्यों बैठ जाता है। किसान ने उत्तर दिया कि सत्वचन सुनने से मनुष्य को मुक्ति मिलती है। तोते ने कहा कि तुम सालों से यह सुनते आ रहे हो, अपने गुरु से पूछो कि तुम्हें अब तक मुक्ति- क्यों नहीं मिली? किसान साधु के पास गया और उसे तोते के पास ले आया। तोते ने अपनी शंका उनके सामने रखी। इस प्रश्न का उत्तर देने में असमर्थ साधु मौन रह गया। इसके बाद तोते ने चुप्पी साध ली। उसने कुछ भी बोलना, खाना-पीना सब छोड़ दिया। तीन-चार दिन ऐसे ही बीत गए। एक दिन किसान ने देखा कि वह पिंजरे के भीतर लुढ़का पड़ा है और उसमें जीवन का कोई चिह्न नहीं है। उसने उसे पिंजरे से निकालकर जैसे ही फर्श पर लिटाया, वह फुर्र से उड़कर एक पेड़ की डाल पर जा बैठा और किसान से कहा कि मुक्ति का जो मार्ग तुम इतने साल क्या प्रवचन सुनने के बाद नहीं तलाश पाए, वह मुझे साधु के एक क्षण के मौन ने दिखा दिया।
सारः मौन ही मुक्ति हैं।
ये कहानी ‘ अनमोल प्रेरक प्रसंग’ किताब से ली गई है, इसकी और कहानियां पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर जाएं–Anmol Prerak Prasang(अनमोल प्रेरक प्रसंग)
