Pururava
Pururava

Bhagwan Vishnu Katha: चन्द्रमा के पुत्र बुध ने वैवस्वत मनु की पुत्री इला से विवाह किया, जिससे उन्हें पुरूरवा नामक एक तेजस्वी पुत्र प्राप्त हुआ । पुरूरवा बड़े विद्वान और दानवीर थे । एक बार की बात है, स्वर्ग में देवराज इन्द्र की सभा लगी हुई थी । देवगण अपने-अपने असिन पर विराजमान थे । नारद भी वहाँ उपस्थित थे । इसी अवसर पर इन्द्र ने उनसे पृथ्वी के किसी तेजस्वी राजा के बारे में पूछा । तब नारदजी बोले – “देवेन्द्र ! पृथ्वी पर इस समय केवल पुरूरवा ही सब राजाओं में श्रेष्ठ हैं । वे वीर पराक्रमी सदाचारी धर्मात्मा उदार विद्वान, सुंदर, सुशील और विवेकी राजा है । ब्राह्मणों और याचकों को वे इतनी दान-दक्षिणा देते हैं कि उन्हें जीवन में पुन: माँगने की आवश्यकता नहीं पड़ती । उनके चरण जहाँ पड़ते हैं, वहीं सुख-समृद्धि की वर्षा होने लगती है । किसी के साथ उनकी तुलना करना असम्भव है ।” पुरूरवा की प्रशंसा सुनकर उर्वशी नामक अप्सरा अत्यंत भाव-विभोर हो गई । उसके मन में पुरूरवा के प्रति प्रेम उत्पन्न हो गया । वह उनसे मिलने के लिए व्याकुल हो उठी । लेकिन वह देवराज इन्द्र की सबसे प्रिय अप्सरा थी और वे उसे पुरूरवा के पास जाने की अनुमति कदापि नहीं देते, इसलिए वह किसी को कुछ बताए बिना उनके पास चली गई ।

उर्वशी को देखकर पुरूरवा आसक्त हो गए । उन्होंने विवाह का प्रस्ताव रखा । तब वह बोली – “राजन ! संसार में भला कौन-सी ऐसी स्त्री होगी, जो आपके साथ विवाह को उत्सुक न हो? स्त्री श्रेष्ठ गुणों से सम्पन्न सुंदर पुरुष की कामना करती है । फिर आप तो उत्तम गुणों की खान हैं । अतः मैं आपके साथ अवश्य विवाह करूँगी । किंतु इसके लिए आपको मेरी दो शर्तें स्वीकार करनी होंगी । पहली यह कि मैं आपको उपहारस्वरूप भेड़ के दो बच्चे सौंपती हूँ । आपको सदा इनकी रक्षा करनी होगी । दूसरी मैथुन के अतिरिक्त मैं आपको कभी वस्त्रहीन न देखूँ । इनमें से आपने किसी भी शर्त का उल्लंघन किया तो मैं उसी क्षण वापस स्वर्ग लौट जाऊंगी ।” कामपीड़ित पुरूरवा ने दोनों शर्तें स्वीकार कर लीं और उससे विधिवत विवाह कर गृहस्थ जीवन का आनन्द भोगने लगे ।

इधर, जब देवराज इन्द्र को उर्वशी के विषय में ज्ञात हुआ तो उन्होंने दो गंधर्वों को उसे वापस स्वर्ग लाने के लिए भेजा । रात्रि के समय वे गंधर्व पुरूरवा को उपहार में दी गई भेड़ें चुराकर स्वर्ग की ओर चल पड़े । भेड़ों की आवाज सुनकर उर्वशी ने पुरूरवा से उन्हें वापस लाने के लिए कहा । पुरूरवा उस समय वस्त्रहीन थे । उर्वशी की प्रार्थना सुनकर वे तत्क्षण हाथ में तलवार लेकर गंधर्वों की ओर दौड़े । उन्हें आते देख गंधर्व भयभीत होकर भेड़ों को छोड़कर भाग गए । पुरूरवा भेड़ों को लेकर महल में लौट आए । जब उर्वशी की दृष्टि वस्त्रहीन पुरूरवा पर पड़ी तो वह स्वर्ग लौट गई । पुरूरवा ने अनेक प्रकार से उसे रोकने का प्रयास किया, किंतु वे असफल रहे ।

एक दिन सरस्वती नदी के तट पर उन्होंने उर्वशी को देखा जो सखियों सहित वहाँ भ्रमण कर रही थी । उन्होंने उर्वशी से प्रेम निवेदन किया । उर्वशी उन्हें समझाते हुए बोली – “राजन ! वीर पुरुष को इस प्रकार की बातें शोभा नहीं देतीं । एक स्त्री के पीछे अपने धर्म से विमुख होना उचित नहीं है । फिर भी मैं आपको वचन देती हूँ कि मैं वर्ष में एक दिन आपके साथ व्यतीत करूँगी । इससे आपको अनेक पुत्र प्राप्त होंगे ।” फिर वह स्वर्ग लौट गई । एक वर्ष के बाद पुरूरवा पुन: उस स्थान पर पहुँचे । उस समय उर्वशी एक पुत्र की माता हो चुकी थी । उर्वशी ने वह पुत्र पुरूरवा को सौंप दिया । प्रात:काल विदा होते समय उर्वशी ने पुरूरवा को गंधर्वराज की स्तुति करने का परामर्श दिया । पुरूरवा ने निराहार गंधर्वराज की स्तुति की ।

गंधर्वराज ने उन्हें भगवान् विष्णु का यज्ञ करने का सुझाव दिया । पुरूरवा ने वैसा ही किया । तब भगवान् विष्णु ने प्रसन्न होकर उन्हें गंधर्व लोक प्रदान कर दिया । जहाँ वे उर्वशी के साथ रहने लगे ।

ये कथा ‘पुराणों की कथाएं’ किताब से ली गई है, इसकी और कथाएं पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर जाएं Purano Ki Kathayen(पुराणों की कथाएं)