प्रिय के जन्मदिन पर एक पाती प्रेम भरी-गृहलक्ष्मी की कविता 
Priya ke Janamdin Par Ek Paati Prem Bhari

आपके जन्मदिन पर भी प्रिय अपने लिए ही कुछ चाहती हूं,
पत्नी हूं प्रिय तो पत्नी का हक जताना जानती हूँ।

स्वास्थ्य सुख समृद्धि बिछे मेरे आंगन में आपके साथ में,
हो हर ख्वाब पूरे आपके बस आपके ख्वाबों में सजना चाहती हूं।
आपके जन्मदिन पर भी प्रिय अपने लिए ही कुछ चाहती हूं।

खिलें सुमन सुरभित सुरम्य बगिया में आपकी सारे,
उस बगिया की प्रिय मैं तो बस ,
छोटी सी मालकिन होना चाहती हूं।
आपके जन्मदिन पर भी प्रिय अपने लिए ही कुछ चाहती हूं।

रहे अमर बेल बढ़ती वंश की आपकी,
उस बेल की बस में तो प्रिय,
जड़ बिंदु होना चाहती हूं।
आपके जन्मदिन पर भी प्रिय अपने लिए ही कुछ चाहती हूं।

मिलें चाहें दो कौर ही कलेवा में रोज,
बस उस कलेवा को प्रिय मै,
आपकी थाली में आपके संग खाना चाहती हूं।
आपके जन्मदिन पर भी प्रिय अपने लिए ही कुछ चाहती हूं।

सिंदूर आपके नाम का बनके नूर दमकता रहे
कयामत तलक ललाट पर मेरे
चेहरे पर आ जाए चाहे झुर्रियां जितनी,
कांपते हुए हाथों में भी अंतिम समय तक अपने, बस मैं प्रिय,
स्पर्श आपके हाथों का चाहती हूं।
आपके जन्मदिन पर भी प्रिय अपने लिए ही कुछ चाहती हूं।
पत्नी हूं तो प्रिय पत्नी का हक  जताना जानती हूं।
आपके जन्मदिन पर भी प्रिय..

मिले सुख सारे आपको जितने भले हो आप,
हर रिश्ता खुशनसीब है वो जिससे बंधें हो आप।
इतनी ही शुभकामनाएं है हमारी आपको जन्मदिन पर आपके
ईश्वर का आशीर्वाद संग हो,
मिलें हर खुशी आपको हर कदम पर,
ईश्वर का आशीर्वाद आपके अंग संग हो।