सरदार साहब को बिठाकर मैंने विस्तारपूर्वक सब हाल कहा। कहानी सुनकर सरदार साहब ने मुझसे कहा – नाजिर, अब तुम्हें नाजिर ही कहूंगा। तुरीय को मैं तुमसे मांगता हूं मैं इसके साथ विवाह करूंगा।
मैंने हंसकर कहा – मगर आप हिंदू हैं, और हम लोग मुसलमान।
सरदार साहब ने हंसकर कहा – पलटनियों की कोई जाति-पांति नहीं है।
तुरीय ने उसी समय कहा – लेकिन सरदार साहब, मैं तुमसे विवाह नहीं करूंगी। हां, अगर तुम अपने दोनों बच्चों को मेरे पास भेज दो, तो मैं उनकी मां बन जाऊंगी।
सरदार साहब हंसते हुए विदा हुए।
उसी दिन – शाम को हमने सरदार साहब, तुरीय और दूसरे पलटनियों के साथ जाकर अपने बाप की लाश दफनायी।
सूरज डूब रहा था। धीरे-धीरे अंधेरा हो रहा था और हम दोनों, तुरीय और मैं, अपने बाप की कब्र पर फातिहा पढ़ रहे थे।
