Laanchan by Munshi Premchand
Laanchan by Munshi Premchand

देवी – ‘मेहतर लोग अपनी औरतों को कुछ कहते नहीं।’

मुन्नू, – ‘क्या कहें हुजूर! डरते हैं कि कहीं अपने आसना से चुगली खाकर हमारी नौकरी-चाकरी न छुड़ा दें।’

मेहतरानियों पर बाबू साहबों की बहुत निगाह रहती है, सरकार!’

देवी – (हंसकर) ‘चल झूठे! बाबू साहबों की औरतें क्या मेहतरानियों से भी गयी-गुजरी होती हैं।’

मुन्नू, – अब सरकार कुछ न कहलाएं हुजूर को छोड़कर और तो कोई ऐसी बबुआइन नहीं देखता, जिसका कोई बखान करे। बहुत ही छोटा आदमी हूं सरकार, पर बबुआइनों की तरह मेरी औरत होती, तो उससे बोलने को जी न चाहता। हुजूर के चेहरे-मोहरे की कोई औरत मैंने तो नहीं देखी।’

देवी – ‘चल झूठे, इतनी खुशामद करना किससे सीखा?’

मुन्नू – ‘खुशामद नहीं करता सरकार, सच्ची बात कहता हूं। हुजूर एक दिन खिड़की के सामने खड़ी थीं। राजा मियां की निगाह आप पर पड़ गई। जूते की बड़ी दुकान है उनकी। अल्लाह ने जैसा धन दिया है, वैसा ही दिल भी। आपको देखते ही आंखें नीची कर ली। आज बातों-बातों में हुजूर की सकल-सूरत को सराहने लगे। मैंने कहा – जैसी सूरत है, वैसा सरकार को अल्लाह ने दिल भी दिया है।’

देवी – ‘अच्छा, वह लंबा-सा सांवले रंग का जवान है?’

मुन्नू – ‘हां हुजूर, वही। मुझसे कहने लगे कि किसी तरह एक बार फिर उन्हें देख पाता, लेकिन मैंने डांटकर कहा – खबरदार! मियां, जो मुझसे ऐसी बातें की। वहां तुम्हारी दाल न गलेगी।’

देवी – ‘तुमने बहुत अच्छा किया। निगोड़े की आंखें फूट जाएं, जब इधर से जाता है, खिड़की की ओर उसकी निगाह रहती है। कह देना, इधर भूल कर भी न ताके।’

मुन्नू – ‘कह दिया है हुजूर, हुक्म हो तो चलूं। और तो कुछ साफ नहीं करना है? सरकार के आने की बेला हो गई है। मुझे देखेंगे तो कहेंगे – यह क्या बातें कर रहा है।’

देवी – ‘ये रोटियां लेते जाओ। आज चूल्हे से बच जाओगे।’

मुन्नू – ‘अल्लाह हुजूर को सलामत रखे! मेरा तो यही जी चाहता है कि इसी दरवाजे पर पड़ा रहूं और एक टुकड़ा खा लिया करूं। सच कहता हूं हुजूर को देखकर भूख-प्यास जाती रहती है।’

मुन्नू जा ही रहा था कि बाबू श्याम किशोर ऊपर आ पहुंचे। मुन्नू की पिछली बात उनके कान में पड़ गयी थी। मुन्नू ज्यों ही नीचे गया, बाबू साहब देवी से बोले – ‘मैंने तुमसे कह दिया था कि मुन्नू, को मुंह न लगाओ, पर तुमने मेरी बात न मानी। छोटे आदमी एक घर की बात दूसरे घर पहुंचा देते है, इन्हें कभी मुंह न लगाना चाहिए। भूख-प्यास बंद होने की क्या बात थी?’

देवी – ‘क्या जानें, भूख-प्यास कैसी? ऐसी तो कोई बात न थी।’

श्याम – ‘थी क्यों नहीं, मैंने साफ सुना।’

देवी – ‘मुझे तो खयाल नहीं आता, होगी कोई बात। मैं कौन उसकी सब बातें बैठी सुना करती हूं।’

श्याम – ‘तो क्या वह दीवार से बातें करता है? देखो, नीचे एक आदमी इस खिड़की की तरफ ताकता चला जाता है। इसी मुहल्ले का मुसलमान लौंडा है। जूते की दुकान करता है। तुम क्यों इस खिड़की पर खड़ी रहा करती हो?’

देवी – ‘चिक तो पड़ी हुई है।’

श्याम – ‘चिक के पास खड़ी होने से बाहर का आदमी तुम्हें साफ देख सकता है।’

देवी – ‘यह मुझे मालूम न था। अब कभी खिड़की खोलूंगी ही नहीं।’

श्याम – ‘हां, फायदा क्या? मुन्नू, को अंदर मत आने दिया करो।’

देवी – ‘गुसलखाना कौन साफ करेगा?’

श्याम – ‘खैर आये, मगर उससे बातें न करनी चाहिए। आज एक नया थियेटर आया है। चलो देख आओ। सुना है, इसके ऐक्टर बहुत अच्छे हैं।’

इतने में शारदा नीचे से मिठाई का दोना लिये दौड़ती हुई आयी। देवी ने पूछा – ‘अरे, यह मिठाई किसने दी?’

शारदा – ‘राजा भैया ने दी?’

शारदा – ‘राजा भैया कौन हैं?’

शारदा – ‘वही तो हैं, जो अभी इधर से गये हैं।’

श्याम – ‘वही तो नहीं, जो लम्बा-सा सांवले रंग का आदमी है?’

शारदा – ‘हां-हां, वही-वही। मैं अब उनके घर रोज जाऊंगी?’

देवी – ‘क्या तू उसके घर गई थी?’

शारदा – ‘वही तो गोद में उठाकर ले गए थे।’

श्याम – ‘तू नीचे खेलने मत जाया कर। किसी दिन मोटर के नीचे दब जायेगी। देखती नहीं, कितनी मोटरें आती रहती हैं।’

शारदा – ‘राजा भैया कहते थे, तुम्हें मोटर पर हवा खिलाने ले चलेंगे।’

श्याम – ‘तुम बैठी-बैठी क्या किया करती हो, जो तुमसे एक लड़की की निगरानी भी नहीं हो सकती?’

देवी – ‘इतनी बड़ी लड़की को संदूक में बंद करके नहीं रखा जा सकता।’

श्याम – ‘तुम जवाब देने में तो बहुत तेज हो, यह मैं जानता हूं। यह क्यों नहीं कहती कि बातें करने से फुरसत नहीं मिलती।’

देवी – ‘बातें मैं किससे करती हूं? यहां तो कोई पड़ोसिन भी नहीं?’

श्याम – ‘मुन्नू तो हई है।’

देवी – (ओठ दबाकर) ‘मुन्नू क्या मेरा कोई सटा है, जिससे बैठी बातें किया करती हूं? गरीब आदमी है, अपना दुःख रोता है, तो क्या कह दूं? मुझसे तो दुत्कारते नहीं बनता।’

श्याम – ‘खैर, खाना बना लो, नौ बजे तमाशा शुरू हो जायेगा। सात बज गए हैं।’

देवी – ‘तुम जाओ, देख आओ, मैं न जाऊंगी।’

श्याम – ‘तुम्हीं तो महीनों से तमाशे की रट लगाए हुए थी। अब क्या हो गया? क्या तुमने कसम खा ली है कि यह जो बात कहें, वह कभी न मानूंगी?’

देवी – ‘जाने क्यों तुम्हारा ऐसा खयाल है। मैं तो तुम्हारी इच्छा पाकर ही कोई काम करती हूं। मेरे जाने से कुछ और पैसे खर्च हो जायेंगे और रुपये कम पड़ जायेंगे तो तुम मेरी जान खाने लगोगे, यही सोचकर मैंने कहा था। अब तुम कहते हो, तो चली चलूंगी। तमाशा देखना किसे बुरा लगता है?’

नौ बजे श्याम किशोर एक तांगे पर बैठकर देवी और शारदा के साथ थियेटर देखने चले। सड़क पर थोड़ी ही दूर गए थे कि पीछे एक और तांगा आ पहुंचा। इस पर राजा बैठा हुआ था। और उसकी बगल में – हां, उसके बगल में बैठा था मुन्नू मेहतर, जो बाबू साहब के घर में सफाई करता था। देवी ने उन दोनों को देखते ही सिर झुका लिया। उसे आश्चर्य हुआ कि राजा और मुन्नू में इतनी गाढ़ी मित्रता है कि राजा उसे तांगे पर बिठाकर सैर कराने ले जाता है। शारदा राजा को देखते ही बोल उठी – ‘बाबूजी, देखो, वह राजा भैया आ रहे हैं। (ताली बजाकर) राजा भैया, इधर देखो, हम लोग तमाशा देखने जा रहे हैं।’

राजा ने मुस्करा दिया और बाबू साहब मारे क्रोध के तिलमिला उठे। उन्हें ऐसा मालूम हुआ कि ये दुष्ट केवल मेरा पीछा करने के लिए आ रहे हैं। इन दोनों में जरूर सांठ-गांठ है। नहीं तो राजा मुन्नू को साथ क्यों लेता, उनसे पीछा छुड़ाने के लिए उन्होंने तांगे वाले से कहा – ‘और तेज ले चलो, देर हो रही है।’ तांगा तेज हो गया। राजा ने भी अपना तांगा तेज किया। बाबू साहब ने जब तांगे को धीमा करने को कहा, तो राजा का तांता भी धीमा हो गया। आखिर बाबू साहब ने झुंझलाकर कहा – ‘तुम तांगे को छावनी की ओर ले चलो, हम थियेटर देखने नहीं जायेंगे।’ तांगे वाले ने उनकी ओर कुतूहल से देखा और तांगा फेर दिया। राजा का तांगा भी फिर गया। बाबू साहब को इतना क्रोध आ रहा था कि राजा को ललकारूं, पर डरते थे कि कहीं झगड़ा हो गया, तो बहुत से आदमी जमा हो जायेंगे और व्यर्थ ही झेंप होगी। लहू का घूंट पीकर रह गए। अपने ऊपर झुंझलाने लगे कि नाहक आया। क्या जानता था कि ये दोनों शैतान सिर पर सवार हो जायेंगे। मुन्नू को तो कल ही निकाल दूंगा। आगे राजा का तांगा कुछ दूर चलकर दूसरी तरफ मुड़ गया, और बाबू साहब का क्रोध कुछ शांत हुआ, किंतु अब थियेटर जाने का समय न था। छावनी से घर लौट आये।

देवी ने कोठे पर आकर कहा – ‘मुफ्त में तांगे वाले को दो रुपये देने पड़े।’

श्याम किशोर ने उसकी ओर रक्त-शोषक दृष्टि से देखकर कहा – ‘और मुन्नू से बातें करो, और खिड़की पर खड़ी हो-होकर राजा को छवि दिखाओ। तुम न जाने क्या करने पर तुली हुई हो।’

देवी – ‘ऐसी बातें मुंह से निकालते तुम्हें शर्म नहीं आती? तुम मेरा व्यर्थ ही अपमान करते हो, इसका फल अच्छा न होगा। मैं किसी मर्द को तुम्हारे पैरों की धूल के बराबर भी नहीं समझती, उस अभागे मेहतर की क्या हकीकत है। तुम मुझे इतना नीच समझते हो?’

श्याम – ‘नहीं, मैं तुम्हें इतना नीच नहीं समझता, मगर बेसमझ जरूर समझता हूं। तुम्हें इस बदमाश को कभी मुंह न लगाना चाहिए था। अब तो तुम्हें मालूम हो गया कि वह छटा हुआ शोहदा है, या अब भी कुछ शक है?’