do bailon kee katha by munshi premchand
do bailon kee katha by munshi premchand

हीरा बोला, ‘भगवान की दया है।’

‘मैं तो अब घर भागता हूँ।’

‘यह जाने देगा?’

‘इसे मार गिराता हूँ।’

‘नहीं-नहीं, दौड़कर थान पर ले चलो। वहाँ से हम आगे न जाएँगे।’

दोनों बछड़ों की भाँति प्रसन्नता प्रकट करते हुए घर की ओर दौड़े। वह हमारा थान है। दोनों दौड़कर अपने थान पर आए और खड़े हो गए। दढ़ियल भी पीछे-पीछे दौड़ा चला आता था।

झूरी द्वार पर बैठा धूप खा रहा था। बैलों को देखते ही दौड़ा और उन्हें बारी-बारी से गले लगाने लगा। मित्रों की आँखों से आनंद के आँसू बहने लगे। एक झूरी का हाथ चाट रहा था।

दढ़ियल ने जाकर बैलों की रस्सियाँ पकड़ लीं।

झूरी ने कहा, ‘मेरे बैल हैं।’

‘तुम्हारे बैल कैसे? मैं मवेशीखाने से नीलाम लिए आता हूँ।’

‘मैं तो समझता हूँ, चुराए लिए आते हो। चुपके से चले जाओ। मेरे बैल हैं। मैं बेचूँगा, तो बिकेंगे। किसी को मेरे बैल नीलाम करने का क्या अधिकार है?’

‘जाकर थाने में रपट कर दूँगा।’

‘मेरे बैल हैं। इसका सबूत यह है कि मेरे द्वार पर खड़े हैं।’

दढ़ियल क्रोध करता हुआ बैलों को जबरदस्ती पकड़ ले जाने के लिए बढ़ा। उसी समय मोती ने सींग चलाया। दढ़ियल पीछे हटा। मोती ने पीछा किया। दढ़ियल भागा। मोती पीछे दौड़ा। गाँव के बाहर निकल जाने पर वह रुका, पर खड़ा दढ़ियल रास्ता देख रहा था। दढ़ियल दूर खड़ा धमकियाँ दे रहा था, गालियाँ निकाल रहा था, पत्थर फेंक रहा था और मोती विजयी बहादुर की भाँति उसका रास्ता रोके खड़ा था। गाँव के लोग तमाशा देखते थे और हँसते थे।

जब दढ़ियल हारकर चला गया, तो मोती अकड़ता हुआ लौटा।

हीरा ने कहा, ‘मैं डर रहा था कि कहीं तुम गुस्से में आकर मार न बैठो।’

‘अगर वह मुझे पकड़ता, तो मैं बिना मारे न छोड़ता।’

‘अब न आएगा।’

‘आएगा तो दूर ही से खबर लूँगा। देखूँ कैसे ले जाता है।’

‘जो गोली मरवा दे?’

‘मर जाऊँगा, उसके काम न आऊँगा।’

‘हमारी जान को कोई जान ही नहीं समझता।’

‘इसलिए कि हम इतने सीधे होते हैं।’

जरा देर में नाँद में खली, भूसा, चोकर, दाना भर दिया गया और दोनों मित्र खाने लगे। झूरी खड़ा दोनों को सहला रहा था और बीसों लड़के तमाशा देख रहे थे। सारे गाँव में उत्साह-सा मालूम होता था।

उसी समय मालकिन ने आकर दोनों के माथे चूम लिए।