prayaschit
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जिस समय गौतम बुद्ध मत का प्रचार कर रहे थे, उसी समय एक अत्यंत भयंकर डाकू अंगुलिमाल जंगल में भटके हुए लोगों को लूटता- ही नहीं अपितु उनकी हत्या करके उनकी अंगुलियों को काटकर उनकी माला बनाकर पहन लेता था। वह जिस जंगल में रहता था, उसी से होकर बुद्ध भी जाते थे। एक दिन वह डाकू उनके सामने आ गया। उसका भयंकर रूप देखकर बुद्ध के शिष्य तो भयभीत हो गए पर बुद्ध बिल्कुल नहीं डरे। उनका अपूर्व तेज देखकर वह डाकू हतप्रभ हो गया, जब वह बुद्ध के सामने आया तो उन्होंने पूछा कि वह क्या चाहता है? उसने उत्तर दिया- तुम सबकी हत्या। बुद्ध ने कहा कि हम लोग भागेंगे नहीं। तुम हम सबकी हत्या करने के पूर्व सामने वृक्ष की एक डाल काट लाओ। वह गया और डाल काट लाया। बुद्ध ने कहा- ठीक है, अब तुम इसे उसी वृक्ष से जोड़ दो।

उसने कहा कि यह सर्वथा असंभव है। मैं उसे जोड़ नहीं सकता। बुद्ध ने कहा जिस डाली को तुम जोड़ नहीं सकते हो उसे काट कर अलग क्यों करते हो। जो काटता है उसमें जोड़ने की भी शक्ति होनी चाहिए। इसी प्रकार तुम लोगों की हत्या तो कर सकते हो पर उन्हें जीवन दान नहीं दे सकते। बुद्ध की धर्मभरी वाणी उसके अंतर्मन को बेध गई। उसने अपना खड्ग फेंक दिया और उनके चरणों में गिर गया और बोला ‘आज मैं प्रतिज्ञा करता हूँ कि यह क्रूर कर्म कभी नहीं करूंगा।’ अपने बुरे कर्मों का प्रायश्चित करूंगा। मुझे अपना शिष्य बना लीजिए और उस दिन से वह बौद्ध भिक्षु बन गया।

सारः सद्बुद्धि वह प्रकाश है, जो मनुष्य को सही रास्ता दिखाती है।

ये कहानी ‘इंद्रधनुषी प्रेरक प्रसंग’ किताब से ली गई है, इसकी और कहानियां पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर जाएंIndradhanushi Prerak Prasang (इंद्रधनुषी प्रेरक प्रसंग)