panchtantra ki kahani शेर और खरगोश की अमर कहानी
panchtantra ki kahani

किसी वन में एक शेर रहता था । उसका नाम था भासुरक । वह बहुत बलशाली तो था ही, बड़ा अत्याचारी भी था । जंगल में चाहे जिस जानवर पर हमला करता और मारकर खा जाता । उसकी वजह से पूरे जंगल में त्राहि-त्राहि मची थी । सभी जीव परेशान थे । सोच रहे थे, क्या करें, क्या नहीं?

आखिर जंगल के सभी जानवरों ने एक बड़ी सभा की । सबने सोचा, ‘भला इस अहंकारी शेर से कैसे बचा जाए?’

इस पर किसी ने सुझाव दिया, “क्यों न हम सभी मिलकर शेर के पास जाएँ । हम उससे प्रार्थना करेंगे कि हम उसके खाने के लिए एक जानवर रोजाना भेजेंगे । वह उसे खा ले, लेकिन जंगल के बाकी जानवरों को परेशान न करे ।”

सबको यह बात ठीक लगी ।

आखिर सभी जानवर मिलकर भासुरक शेर के पास गए और उससे प्रार्थना की, “हम आपके पास रोजाना एक जानवर भेजेंगे । उसे मारकर आप अपनी भूख मिटा लें, लेकिन जंगल के बाकी जानवरों को कुछ न कहें ।”

भासुरक मान गया । कहा, “ठीक है, लेकिन इस नियम में कोई विघ्न नहीं पड़ना चाहिए ।”

जंगल के जानवरों ने मिलकर तय किया कि बारी-बारी से एक जानवर शेर के पास जाएगा । शेर उसे मारकर खा ले । लेकिन दूसरे जानवर तो बचे रहेंगे ।

एक दिन की बात । शेर के पास जाने के लिए खरगोश की बारी आ गई । आज उसे भासुरक शेर का भोजन बनने के लिए उसके पास जाना था । सोचकर ही उसका मन काँप रहा था । उसके भीतर झंझावत चल रहा था, ‘क्या करूँ, क्या न करूँ? क्या कोई ऐसा तरीका नहीं हो सकता कि यह शेर मर जाए । फिर तो मेरे प्राण आसानी से बच जाएँगे ।’

‘मगर यह शेर तो इतना बड़ा है । ऐसी भला कौन सी तरकीब हो सकती है जिससे यह विशाल शेर मर जाए । मैं तो छोटा सा हूँ । मैं भला क्या कर सकता हूँ?’ सोचकर खरगोश और उदास हो गया ।

पर भारसुरक शेर के पास जाना तो था ही । वह अपने घर से निकला और शेर की गुफा की ओर चल दिया ।

वह धीरे-धीरे कुछ सोचता हुआ जा रहा था, इस कारण उसे और भी देर हो गई । उसका मन बुरी तरह घबरा रहा था ।

रास्ते में एक कुआं दिखाई पड़ा, तो खरगोश अपना मन बहलाने के लिए उस कुएँ पर कूदने लगा । कूदते-कूदते अचानक वह चौंका । कुएँ में उसकी परछाई दिखाई पड़ रह थी । उसे देखते ही वह उछल पड़ा । बोला, “अरे वाह! मिल गया रास्ता, मिल गया ।”

उसी समय खरगोश तेजी से चलता हुआ भासुरक शेर के पास गया । शेर उसे देखते ही गुस्से में आ गया । दहाड़कर बोला, “एक तो तुम छोटे से हो, फिर इतनी देर से आए हो । बताओ, इतनी देर कैसे लग गई?”

इस पर खरगोश विनम्रता से बोला, “महाराज, मैं अपने घर से चला तो समय से था, पर रास्ते में एक दुष्ट शेर मिल गया । वह मुझे खाना चाहता था । मैंने उसे बहुत समझाया कि मैं भासुरक शेर के पास जा रहा हूँ उनका भोजन बनने के लिए पर वह मान ही नहीं रहा था, कह रहा था भासुरक शेर कौन है मेरे आगे? वह तो मेरे आगे थर-थर काँपता है ।”

“अच्छा, ऐसा कहा उसने?” भासुरक शेर को बड़ा गुस्सा आया । बोला, “चलो कहाँ है वह, मैं उसकी खबर लेता हूँ ।”

उसी समय भासुरक शेर खरगोश के साथ-साथ चल पड़ा । खरगोश रास्ते में तरह-तरह की बातें करते हुए उसे उसी कुएँ पर ले आया । वहाँ आकर बोला, “देखिए महाराज, यह रहा उस शेर का दुर्ग । इसी किले के अंदर वह रहता है । वह कह रहा था कि तुम्हारे भासुरक शेर को तो मैं पानी पिला दूँगा, पानी!”

सुनकर भासुरक को बहुत गुस्सा आया । उसने कुएं में झाँककर देखा, तो उसे अपनी परछाई नजर आई । उसी को उसने दूसरा शेर समझ लिया । दहाड़कर बोला, “कौन हो तुम?”

कुएँ से उसी की आवाज लौटकर आई । उसे लगा, कुएँ वाला शेर भी कह रहा है, “कौन हो तुम?”

भासुरक शेर गुस्से में बोला, “मैं आऊँ तुम्हें मजा चखाने?”

कुएं के अंदर से भी आवाज आई “मैं आऊँ तुम्हें मजा चखाने!”

अब तो भासुरक शेर से रहा नहीं गया । उसने गुस्से में आग-बबूला होकर कुएँ के अंदर छलाँग लगा दी और फिर उसका कुछ पता नहीं चला ।

इस तरह उस अत्याचारी शेर से मुक्ति पाकर खरगोश मस्ती से उछलने-कूदने लगा । उसकी खुशी का ठिकाना न था । अपनी बुद्धि के बल पर उसने इतने बड़े शेर को मौत के कुएँ में धकेल दिया था ।

उसी समय खरगोश ने दौड़कर जंगल के दूसरे जानवरों को यह समाचार सुनाया । अत्याचारी शेर से मुक्ति पाकर सब खुश थे । सब मन ही मन खरगोश की बुद्धिमता की तारीफ कर रहे थे, जिसने आखिर क्रूर और अत्याचारी शेर से सभी को मुक्ति दिला दी थी ।