एक राजा के मन में प्रश्न उभरा-प्रजा से मुझे इतना ‘कर’ मिला है पर खजाने में बहुत कम पहुँचता है। बात क्या है? पैसा जाता कहां है? राजा ने इस समस्या के समाधान के लिए सेवानिवृत्त गृहमन्त्री को बुलाया। राजा ने कहा- “मंत्रिवर! प्रजा बहुत कर चुकाती है पर खजाना कभी भरता नहीं है। वह सदा रिक्त बना रहता है। कर खजाने में कम पहुँचता है। वह कहां चला जाता है?”
मंत्री ने कहा- “महाराज! मैं इस प्रश्न का उत्तर कल राजसभा में दूँगा।” दूसरे दिन राजसभा जुड़ी। उसमें सब मन्त्री और सहायक आमन्त्रित थे। मन्त्री ने कहा- “राजन्! मैं आज एक प्रयोग करना चाहता हूँ। उसमें सब मंत्री मेरा सह्योग करेंगे।”
राजा ने मंत्री के प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया। मंत्री ने दो किलो बर्फ की शिला मंगवाई। उसे पंक्ति में सबसे अन्त में बैठे मंत्री को पकड़ाते हुए कहा ‘आप इसे हाथ में लें और आगे वाले मन्त्री के हाथों में थमा दें।’ दूसरा उसे हाथ में ले और तीसरे के हाथ में थमा दे। इस प्रकार बर्फ की शिला को आगे से आगे सरकाते चलो।
राजा का मंत्रिमंडल विशाल था। पचास-साठ हाथों से गुजरते-गुजरते वह बर्फ राजा के हाथ में पहुँची। राजा ने देखा- दो किलो बर्फ रसगुल्ले जितनी रह गई है।
मन्त्री ने राजा से निवेदन किया “राजन! मैंने आपके प्रश्न का उत्तर दे दिया है।”
राजा ने विस्मय भरे स्वरों में कहा “मंत्रिवर! यह कैसा उत्तर दिया है? मैं कुछ नहीं समझ पाया।”
“राजन्! पहले मंत्री के हाथ में शिला आई, वह दो किलो थी। वह आगे से आगे चलती गई, पिघलती गई और झरते-झरते बर्फ की छोटी-सी डली रह गई। राजन्! प्रजा से धन आता। है। वह पहले एक मन्त्री के पास पहुँचता है, फिर दूसरे, तीसरे के पास पहुँचता है। उनके हाथों से गुजरते-गुजरते वह बर्फ की डली जितना हो खजाने में पहुँच पाता है।”
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