Hindi Motivational Story: भक्त रैदास फटे जूते की सिलाई में ऐसे तल्लीन थे कि सामने कौन खड़ा है, इसका उन्हें मान भी नहीं हुआ। आगंतुक भी कब तक प्रतिक्षा करता, उसने खाँस कर रैदास का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया। रैदास ने दृष्टि ऊपर उठाई। सामने एक सज्जन थे। उन्हें देख वे हड़बड़ा कर खड़े हो गए और विनम्रतापूर्वक बोले, क्षमा करें, मेरा ध्यान काम पर था। उसने रैदास से कहा, “मेरे पास पारस है। मैं कुछ आवश्यक कार्य से आगे जा रहा हूँ। कहीं खो ना जाए इसलिए इसे अपने पास रख लें। मैं शाम को लौटकर वापस ले लूँगा। इतना ज़रुर बता दूँ, कि पारस के स्पर्श से लोहा स्वर्ण में बदल जाता है। यदि आप चाहें तो अपनी रांपी को इसका स्पर्श कराके सोने की बना सकते हैं। यह सज्जन और कोई नहीं देवराज इन्द्र थे जो लंबे समय से रैदास की भक्ति और निर्लोभी स्वभाव की चर्चा सुनते आ रहे थें वे रैदास की भक्ति व स्वभाव की परीक्षा लेने के लिए वेश बदल कर उनके पास पहुँचे थे।
रैदास ने उनसे कहा, ‘आप पारस निःसंकोच छोड़ जाएँ, लेकिन इसके उपयोग की सलाह मैं स्वीकार करने में असमर्थ हूँ क्योंकि यदि मेरी रांपी सोने की बन गई तो वह झटके से मुड़ जाएगी। वही दिन भर की मज़दूरी से मैं वंचित रह जाऊँगा। मुझे ना धन की कामना है और ना ही अन्य व्यवसाय की। प्रभु कृपा से मैं अपने परिश्रम व आस्था से किए व्यवसाय से पूर्णतः संतुष्ट हूँ। इंद्र रैदास की कर्मनिष्ठा और जवाब को सुनकर अत्यन्त प्रसन्न हुए और उन्हें आशीर्वाद दे कर लोट गए।
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