एक था बादशाह आलम खान। जैसा उसका नाम था, वैसा ही उसका स्वभाव भी था। वह सारे संसार को अपना घर मानता था और सभी से प्यार और इज्जत के साथ बोलता था। उसका राज्य दूर-दूर तक फैला हुआ था। अपने अलग-अलग सूबों में उसने सूबेदार बैठा दिए, ताकि जनता को कोई कष्ट न हो। सभी सूबेदारों से उसने कहा था, ”जनता को कोई तकलीफ हो, तो हमें फौरन बताया जाए।”
एक दिन आलम खान ने अपने एक प्रमुख सेनापति नवाब अली को बुलाकर कहा, ”आज से तुम होगे मेरे राज्य के दक्षिण सूबे के सूबेदार। जाकर अपना काम-काज सँभालो। ध्यान रहे, मेरे पास तुम्हारी कोई शिकायत नहीं आनी चाहिए।”
नवाब अली बोला, ”आप बेफिक्र रहें। मैं आपके हुक्म का पूरी तरह पालन करूँगा हुजूर।”
बादशाह आलम खान ने कहा, ”चलो, मैं भी तुम्हारे साथ चलता हूँ। तुम्हारे साथ सूबे में घूमकर प्रजा की हालत पास से देखूँगा।”
बादशाह आलम खान नवाब अली के साथ दक्षिण सूबे में जगह-जगह घूमने लगा। जहाँ भी वह जाता, लोगों से खूब घुल-मिलकर उनके सुख-दुख की बातें करता। पर नवाब अली दूर अकड़ा खड़ा रहता। उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि बादशाह इन दीन-हीन, फटेहाल लोगों को क्यों इतना सिर पर चढ़ा रहा है?
इतने में एक गरीब बच्चा कहीं से दौड़ता हुआ आया और बादशाह की उँगली पकड़कर खड़ा हो गया। इस पर सभी को हँसी आ गई। बादशाह आलम खान भी खिलखिलाकर हँस पड़ा। उसने उस बच्चे को प्यार से गोद में उठाया और पुचकारने लगा।
इस पर नवाब अली बोला, ”हुजूर, यह बच्चा तो गंदा है। इसने ढंग के कपड़े तक नहीं पहने। आप इसे क्यों गोद में उठा रहे हैं? आपके कपड़े खराब हो जाएँगे।”
सुनकर आलम खान चुप रहा, उसने कुछ कहा नहीं।
अपनी यात्रा पूरी करके बादशाह लौटा। उसने नवाब अली से कहा, ”मुझे लगता है नवाब अली, कि मेरा निर्णय ठीक नहीं था। तुम्हें सूबेदार बनाकर मैंने गलती की। तुम्हारे दिल में तो जरा भी प्यार-ममता नहीं है। मेरी प्रजा को तुम तो मार डालोगे। नहीं-नहीं, तुम योग्य सूबेदार नहीं हो सकते!”
सुनकर नवाब अली को अपनी गलती पता चल गई। बोला, ”हुजूर, मेरी आँखों के आगे अमीरी और भेदभाव का परदा था। आज मेरी आँखें खुल गईं। मुझे माफ कर दीजिए। आगे से आपको कोई शिकायत नहीं मिलेगी।”
और सचमुच नवाब अली ने बादशाह से जो वादा किया था, उसे अंत तक निभाया।
वह मन ही मन अपने आपसे कहता था, ‘बादशाह ने मुझे जो प्यार और हमदर्दी का पहला पाठ सिखाया, वह कितना जरूरी था। वह न होता, तो शायद मैं अपना काम-काज इतनी अच्छी तरह न कर पाता।’
