imalee ke kantaade moral story
imalee ke kantaade moral story

एक दिन चुनमुन शाम के समय पार्क में खेलने जा रहा था। अभी वह पत्थरों वाली गली में पहुँचा ही था कि उसे आवाज सुनाई दी, ”चुनमुन, चुनमुन, अरे ओ चुनमुन!”

चुनमुन बड़ा हैरान था। भला कौन उसे इतने प्यार से बुला रहा है! और क्या सचमुच उसी को आवाज दी जा रही है? कुछ देर के लिए उसके पाँव ठिठक गए, फिर वह आगे चल दिया।

लेकिन थोड़ी देर बाद फिर वही आवाज उसे सुनाई दी, ”चुनमुन, चुनमुन, ओ प्यारे चुनमुन! मैं तुम्हीं को बुला रहा हूँ।”

अबके चुनमुन ने गौर किया, पास वाले खूब बड़े और छतनार इमली के पेड़ से आवाज आ रही थी। वही चुनमुन को पास बुला रहा था।

चुनमुन को लगा, जैसे इमली का पेड़ हँस रहा है और उसने चुनमुन की ओर अपनी बाँहें फैला दी हैं।

चुनमुन चकराया। वह इमली के पेड़ के पास जाकर खड़ा हो गया। तभी अचानक इमली के तीन कंताडे़ उसके पास आकर गिरे। अंदर से खूब सुर्ख लाल, जैसे उसे पसंद थे।

चुनमुन ने वे तीन इमली के कंताड़े उठा लिए। फिर पेड़ को धन्यवाद देने के लिए ऊपर देखा।

इमली का पेड़ खिल-खिल हँस रहा था। मानो कहना चाहता हो, ”प्यारे चुनमुन, तुम मुझे अच्छे लगते हो, क्योंकि तुम भोले-भाले और प्यारे बच्चे हो। बहुत से बच्चे मुझे पत्थर मारकर कंताड़े लेने की कोशिश करते हैं, पर तुमने एक बार भी ऐसा नहीं किया। बल्कि जब भी मेरे पास से गुजरते हो, प्यार से ‘टा-टा’ करके जाते हो। इसीलिए मैंने सोचा कि मैं तुम्हें उपहार जरूर दूँगा। ये बहुत बढ़िया कंताड़े हैं। इन्हें अपने दोस्तों के साथ मिल-बाँटकर खाना, तो मुझे बहुत खुशी होगी।’

सुनकर चुनमुन भी हँस पड़ा। वह खुश होकर बोला, ”धन्यवाद, इमली के ओ प्यारे पेड़! बहुत-बहुत धन्यवाद! आज तुमने मुझे जीवन की बड़ी मीठी सीख दी है।”

चुनमुन ने यह किस्सा अपने दोस्तों को सुनाया, तो उन्हें बड़ी हैरानी हुई। फिर सबसे कहा, ”चुनमुन तुम सीधे-सरल हो, इसलिए तुम्हें सब प्यार करते हैं। हम भी तुम से यह सीख लेंगे।”