mitrata brabari ki bhali, hitopadesh ki kahani
mitrata brabari ki bhali, hitopadesh ki kahani

Hitopadesh ki Kahani :मगध देश में चम्पकवती नाम की एक वनस्थली थी। उस वन में चिरकाल से एक कौआ और एक मृग बड़े ही मित्र भाव से रहते आ रहे थे। स्वच्छन्द विचरण करता हुआ तथा यथेच्छ भोजन प्राप्त करता हुआ वह मृग बड़ा ही हृष्ट-पुष्ट हो गया था। उस पर एक सियार की दृष्टि पड़ गई। सियार सोचने लगा कि इस मृग का स्वादिष्ट मांस किस प्रकार खाया जा सकता है? जो हो, मुझे उसके लिये यत्न तो करना ही चाहिये ।

ऐसा विचार कर सियार उस मृग के समीप गया। उसने निश्चय किया कि किसी न किसी प्रकार मृग को विश्वास में लेना होगा। मृग के पास जाकर सियार कहने लगा, “मित्र ! नमस्कार । कहो आनन्द से तो हो?”

मृग ने उसकी ओर देखा और न पहचान कर पूछा, “कौन हो तुम?”

“मैं क्षुद्रबुद्धि नाम का सियार हूं। यहां इस वन में मित्रहीन होने के कारण एक प्रकार से मृतक समान ही रह रहा हूं। अतः आज आप सदृश मित्र को पाकर एक प्रकार से नये ढंग से जीवन लाभ का अनुभव करने लगा हूं।”

मृग बोला, “अच्छा, चलो ठीक है।”

उसके बाद जब सूर्य अस्त होने पर सायंकाल का समय हो गया तो वे दोनों उस स्थान की ओर गये जहां मृग निवास करता था । मृग एक पेड़ के समीप रहता था और उस चम्पक वृक्ष की एक शाखा पर एक सुबुद्धि नाम का कौआ भी अपना घौंसला बनाकर रहा करता था । कौए और मृग में प्रगाढ़ मित्रता थी ।

सुबुद्धि कौए ने चित्रांग मृग के साथ सियार को आते देखा तो उससे पूछने लगा, मित्र । यह दूसरा कौन है ? मृगने कहा, ” मित्र ! यह सियार है। हमारे साथ मित्रता करने की अभिलाषा से यहां आया है। “

कौआ बोला, “मित्र ! सहसा आये हुए किसी के साथ भी मित्रता नहीं कर लेनी चाहिए। यह तो उचित नहीं है ।

“कहा भी है कि जिसका कुल-शील कुछ भी ज्ञात न हो उसे कभी आश्रय नहीं देना चाहिये। इसी प्रकार एक बार एक बिलाव के अपराध से जरद्गव नामक बूढ़ा गीध मार डाला गया था ।” यह सुनकर उन दोनों ने पूछा, “यह किस प्रकार ?”

कौआ बोला, “सुनाता हूं, सुनो।”