भारत कथा माला
उन अनाम वैरागी-मिरासी व भांड नाम से जाने जाने वाले लोक गायकों, घुमक्कड़ साधुओं और हमारे समाज परिवार के अनेक पुरखों को जिनकी बदौलत ये अनमोल कथाएँ पीढ़ी दर पीढ़ी होती हुई हम तक पहुँची हैं
बहुत पुरानी बात है अन्ना का जन्म होने वाला था, चारों तरफ अफरा-तफरी मची हुई थी, क्योंकि पहले से उसकी मां सुजाता की गोद में एक बेटा और पांच बेटियां थीं, पूरा परिवार दूसरे लड़के की आस लगाए बैठा था। सुजाता का पति अपने माँ-बाप का इकलौता लडका था इसीलिए सुजाता के ससुर चाहते थे कि बेटा कम-से-कम दो बेटों का बाप बने। पर सुजाता प्रसव के दर्द में कराह रही थी कि तभी अचानक डॉक्टर बोलीं, ‘बच्चा उल्टा है मैं मां को बचा सकती हूं या बच्चे को’
‘माँ को’- सभी एक सुर में बोल पड़े। बच्चा मत बचाओ, मां को बचाओ पर मां मन ही मन प्रभु से प्रार्थना करने लगीं।
‘हे प्रभु मेरे बच्चे की जान बचा लीजिए भले उसकी जगह मेरी जान ले लीजिए। वो अपनी बेटियों को बुला कर समझाने लगीं, ‘मैं अगर ना रहूं तो जो भी भाई या बहन आये, उसे बहुत प्यार करना और खूब मन लगाकर सब लोग पढ़ाई करना’- बोल कर मां बेहोश सी होने लगी और डाक्टर अपना प्रयास करती रहीं।
पुराने जमाने में बच्चे को थोड़ा-थोड़ा खींच कर काट कर निकाला जाता था, सभी ईश्वर से प्रार्थना करने लगे। खौलते हुए पानी से जैसे ही डॉक्टर ने औजार उठाया, अचानक बच्ची ने जन्म ले लिया। डाक्टर ने ये चमत्कार देख जोर-जोर से रोते हुए, उसी हाल बिना नाल काटे बच्चे को गले से लगा लिया और बोलीं, ‘इस बच्ची ने मुझे पाप करने से बचा लिया, अपनी मां को बचा लिया और बहनों को अनाथ होने से बचा लिया।’
घर में बच्ची बहुत प्यार से पाली गई। उसके आने से पूरे घर में खुशहाली-सी आ गयी पर बाबा ईर्ष्या से उलझे जा रहे थे कि एक तो इतनी परेशानी से जन्म लिया. ऊपर से लडकी। पर मां ने अपना दर्द भल अपनी बेटी को गले लगाकर, बहुत प्यार करके सोचने लगीं, ‘मैं अपनी बेटियों को खूब पढ़ा-लिखाकर अफसर बनाऊंगी। अपनी बेटियों के रास्ते का सारा कचरा मैं स्वयं हटाऊंगी। जब तक वो नौकरी नहीं कर लेंगी तब तक मैं शादी नहीं करने दूंगी। मैं उन्हें अपनी तरह बेबस, लाचार, घर वालों की कठपुतली बनकर कर जीने नहीं दूंगी, आखिर मां हूं मैं। मैं हमेशा इनके रास्ते में उजाले का दीया तब तक जलाती रहूंगी जब तक ये स्वयं औरों के जीवन में दीया जलाकर, उजाला दिखाने के लायक ना बन जाए।
तभी अचानक बच्ची के रोने की आवाज आयी। वो बच्ची को अपना दूध पिला थपकी देती हुई सुलाते-सुलाते खुद भी ये सोचते हुए सो गयी कि ईश्वर ने मेरी झोली में दुनिया का सबसे बड़ा आशीर्वाद बेटियों के रूप में डाला है, मैं धन्य हो गयी। मैं सदैव अपनी बेटियों के हौसले के पंख को मजबूत करने में कोई कसर नहीं छोडूंगी। मैं अपनी बेटियों को हर क्षेत्र में आगे बढ़ाऊंगी।
धीरे-धीरे समय बीतता गया और जैसे बड़ा बेटा इक्कीस साल का हुआ, तो उसकी घरवालों ने शादी तय कर दी। उसकी मां बहुत परेशान हुई कि बेटे की पढ़ाई बीच में ही छूट जाएगी। बहुत दुखी हुई और अब सोचने लगी कि ‘यदि बेटे की पढाई की ही किसी को चिंता नहीं तो फिर बेटियों को कैसे पढ़ा पाऊँगी? क्या करूं कैसे बेटीयों को आगे पढाऊँ? आगे नहीं पढाया तो अफसर बनाने का सपना भी टूट जाएगा। तभी डाकिए की आवाज आयी और मां को सुराग मिल गया। माँ ने डाकिये से कहा, ‘भाई आप तो हर जगह जाते रहते हैं। हमारी भी एक चिट्ठी दूसरे गांव में पहुंचा देते तो एहसान होता। मेरी बेटीयों की जिन्दगी का सवाल है डाकिया भाई तैयार हो गया तो उन्होंने अपनी समधिन के नाम चिट्ठी लिखी। कुछ दिनों बाद डाकिया फिर एक चिट्ठी लेकर घर आया। इस बार सुजाता के पति ने पत्र पढ़ा तो पता चला कि पत्र उनकी समधन ने उनके नाम लिखा है।
आदरणीय भाईसाहब जी प्रणाम!
‘मेरी बेटी अब आपकी बेटी बनने जा रही है। वो अभी पढ़ाई कर रही है। मैं उसे आगे पढ़ा कर अफसर बनाना चाहती हूं। आप उसकी मदद करिए। क्या आप इससे सहमत हैं? अगर हैं तो मैं आपके यहां शादी होने दूंगी, नहीं तो मैं नहीं करूंगी। इसे पढाने के लिए जितनी लड़ाई लड़नी पड़े, मैं लडूंगी। आप से आग्रह है कि आप मेरी प्रार्थना सुन लीजिए, मैं आजीवन आपकी आभारी रहूंगी’
आपकी समधन
सुजाता को जैसे सोने में सुहागा मिल गया। उसने सोचा अगर बहु पढ़ेगी तो बेटियों को भी कोई नहीं रोकेगा। उसने तुरंत चिट्ठी अपने ससुर को भी दिखाई। बहुत मिन्नतें करने पर ससुर और पतिदेव दोनों मान गये और शादी भी धूमधाम से हो गयी। बहु भी डबल एम. ए. पीएचडी करने के बाद विद्यालय में प्रिंसिपल बन गयी। धीरे-धीरे सभी बच्चों को पढ़ाने के रास्ते खुल गए।
सुजाता की सूझ-बूझ, जिद और संघर्ष की वजह से सब बेटियां कुशलमंगल अच्छी नौकरी में लग गई। हालाँकि सुजाता को बहुत कुछ मजबूरियों से जूझना पड़ा अपनी बेटियों को पढ़ाने के लिए, तब कहीं बेटियों के लिए विद्यालय का रास्ता बन पाया। आखिरकार एक मां ने बेटी बचाने, पढ़ाने, और उन्हें अफसर बनाने का संकल्प पूरा किया और अपनी बेटियों को गुलामी, बंधुआ मजदूर, ताने, बोलियों, कुंठा भरे जीवन से आजाद कराकर, उन्हें एक लक्ष्य दिया कि ‘आगे बढ़कर समाज में बच्चियों को बचाओ और उन्हें पढ़ाओ क्योंकि बेटियां पढाई करके ही हुनरमंद, काबिल बन, समाज में बराबरी का स्थान पाती हैं।
सबसे छोटी बेटी अन्ना भी आज एक आइ. एस. अफसर बन चुकी है। अन्ना अपनी माँ सुजाता के संघर्ष को देखकर अकसर सोचती है कि और इस सफर में, एक नारी अर्थात सुजाता जो चौबीस इंच लंबा चूंघट रखकर, एक मां बनकर, अपनी बेटियों के सुखी जीवन का सपना सफल करती है। उस मां के ऋण से मुक्त होना नामुमकिन है। वो दिल ही दिल में ईश्वर को धन्यवाद देती है कि उसे ऐसी माँ का प्यार मिला जो ममतामयी होने के साथ-साथ पूजनीय है। साथ ही अपनी माँ के जीवन को प्रेरणास्रोत मानकर, आज अन्ना अपने आप को एक नारी रूप में देखकर गर्वित महसूस करती है।
भारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा मालाभारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा माला’ का अद्भुत प्रकाशन।’
