महाभारत के लेखक थे भगवान गणेश
Ganesha and Mahabharata Story

Ganesha and Mahabharata Story: मुनि वेदव्यास को महाभारत का रचयिता माना जाता है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि भगवान गणेश ने इस कार्य को लिपिबद्ध किया था? वेद व्यास द्वारा रचित इस महाकाव्य को गणेश जी द्वारा लिपिबद्ध करने के पीछे एक कथा प्रचलित है। प्रस्तुत लेख में जानें कि क्यों लांबोदर ने ही इस कार्य को पूर्ण किया?

Also read: वास्तु दोष मिटाए गणेश जी की प्रतिमाएं

संसार विख्यात महाकाव्य महाभारत, जो संसार के महानतम शास्त्रों में से एक है, भारत वंश के राजा कौरवों और पांडवों का समस्त इतिहास और प्रलयकारी विकराल युद्ध महाभारत के नाम से प्रख्यात हुआ है। इसे सर्वप्रथम बुद्धिदाता विघ्न विनायक भगवान श्री गणेश ने ही अपने कर कमलों से लिपिबद्ध किया था। इसलिए वे विश्व के सर्वश्रेष्ठ लिपिक माने जाते हैं। हमारे देश में आज भी जब बच्चों को सर्वप्रथम लिपि ज्ञान कराया जाता है तो सर्वप्रथम ‘ग’ गणेश को लिखवाकर संसार के सर्वश्रेष्ठ तीव्र लेखक श्री गणेश जी को ही आदर दिया जाता है।
महाभारत की मूल कथा तो कौरवों तथा पांडवों का इतिहास ही है लेकिन इस मूल कथा के अलावा इस शास्त्र में तमाम जीवनोपयोगी ज्ञानवर्धक सामाजिक, धाॢमक, आॢथक, राजनीतिक और कूटनीतिक दृष्टांतों और उपाख्यानों की भरमार है। तमाम चातुर्मासिक व्रत तथा पूजन-अर्चन के कार्य-कारण, युक्ति, विधि-विधान आद्योपांत व्याख्यानित किए गए हैं। तमाम व्रतों तथा उपवासों की परंपराएं इसी महाभारत के उपाख्यानों की ही देन है।
महाभारत में मूल कथा के अलावा जो उपाख्यान आए हैं वे इस प्रकार हैं- (1) शकुंतलोपाख्यान (2) मत्स्य उपाख्यान (3) रामोपख्यान (4) शिवि उपाख्यान (5) सावित्री उपाख्यान (6) नलोपाख्यान।
उपर्युक्त उपाख्यानों के अलावा कुछ पौराणिक कथाएं भी इस शास्त्र में मिलती हैं। जैसे जनमेजय के नागयज्ञ की कथा, समुद्र मंथन की कथा, कद्र-वनिता की कथा, च्यवन ऋषि की कथा, सुकन्या की कथा और इन्द्र वक्रासुर की कथा आदि। हालांकि इन कथाओं के संदर्भ में विख्यात मनीषी साहित्यकार लेखक विंटरनिटज का मत है कि ‘ब्राह्मïणों ने अपना वर्चस्व और प्रभुत्व स्थापित करने के उद्देश्य से ये कथाएं मन से ही गढ़कर बाद में इसी शास्त्र में समायोजित कर ली होंगी। इनके अलावा कुछ प्रसिद्ध दृष्टांत भी महाभारत में वॢणत हैं जैसे मनु प्रलय कथा, आरुणिकी की कथा, अगस्त्य कथा, विश्वामित्र तथा वशिष्ठ के संघर्ष की कथा और नचिकेता की कथाएं।
यह महान शास्त्र महाभारत अठारह पर्वों में विभाजित है जो इस प्रकार है- 1. आदि पर्व, 2. सभा पर्व, 3. वन पर्व, 4. विराट पर्व, 5. उद्योग पर्व, 6. भीष्म पर्व, 7. द्रोण पर्व, 8. कर्ण पर्व, 9. शल्य पर्व, 10. गदा पर्व, 11. सौप्तिक पर्व, 12. ऐषिक पर्व, 13. स्त्री पर्व, 14. शांति पर्व, 15. अश्वमेघ पर्व, 16. आश्रम पर्व, 17. मुशल पर्व तथा 18. स्वर्गारोहण पर्व।
महाभारत के पर्व में हरिवंश पुराण परिशिष्ट के रूप में सम्मिलित है। महाभारत के पूर्व भाग में 95826 श्लोक तथा हरिवंश परिशिष्ट में 16 हजार श्लोक हैं। इस संसार विख्यात महाकाव्य महाभारत की कथा भी महॢष पाराशर के कीॢतमान पुत्र महॢष वेद व्यास के मानस पटल पर पूर्व में ही अंकित हो चुकी थी लेकिन उसे लिपिबद्ध करना अत्यंत दुरुह और कठिन काम था क्योंकि उस काल में छापाखाने नहीं थे। इसलिए व्यास जी ने अपनी चिंता से ब्रह्मïा जी को अवगत कराया। ब्रह्मïा जी ने सुझाव दिया कि इस सृष्टि में भगवान श्री गणेश जी ही सर्वाधिक बुद्धिमान और शीघ्र लेखक हैं। इसलिए यह कठिन कार्य वे ही कर सकते हैं।
ब्रह्मïा जी के सुझाव से व्यास जी ने भगवान श्री गणेश के अनंत नामों में सुमुख एकदंत, (कपिल जिनके श्री विग्रह से नीले और पीले वर्ण की आभा का प्रसार होता रहता है), गजकर्ण, लम्बोदर, विकट, विघ्ननाशक, विनायक, धूम्रकेतु, गणाध्यक्ष, भालचन्द्र तथा गजानन ये बारह नामों की महिमा के बारे में निम्नलिखित श्लोक दृष्टांत है।
एतानि द्वादश नामानि प्रात: सायं पठेन्नर: न च विघ्न भय तस्य सर्व सिघ्यर्थ जायते विद्यार्थी लभते विद्या धनार्थी लभते धनम पुत्रार्थी लभते पुत्रान, मोक्षार्थी लभते गतिम्।
वेद व्यास जी द्वारा जब उपर्युक्त द्वादश नामोल्लेख करते हुए श्री गणेश जी की स्तुति की गई तो प्रसन्न वदन बुद्धि दाता गणेश जी महाभारत की कथा लिखने को तैयार हो गए लेकिन गणेश जी ने अपनी एक शर्त रख दी कि ‘जब मैं लिखना आरंभ कर दूं तो मुझे बीच में रुकना न पड़े। अगर आप तनिक भी रुक गए तो मैं अपनी लेखनी बंद कर दूंगा और आगे नहीं लिखूंगा।
इस पर व्यास जी ने कहा, भगवन गणेश आप की शर्त मंजूर है लेकिन मेरी एक शर्त आपको स्वीकार करनी पड़ेगी। यह कि आप जब लिखें तब हर श्लोक का अर्थ भली-भांति समझ लें तभी लिखें। भगवान श्री गणेश जी ने व्यास जी की बात मानकर लिखने की स्वीकृति दे दी। इस प्रकार महाभारत की कथा लिपिबद्ध होनी शुरू हो गई। महॢष वेद व्यास श्लोक गढ़-गढ़ कर बोलने लगे तथा भगवान गणेश जी उनके अर्थ समझ-समझकर लिखने लगे। गणेश जी के लिखने की गति अत्यंत तीव्र थी।
अत: बीच-बीच में व्यास जी श्लोकों को जरा जटिल बना दिया करते थे। जब तक गणेश जी श्लोक के भाव को समझकर लिखते तब तक व्यास जी अगला श्लोक रच लेते। इस तरह वेद व्यास जी ने महाभारत की कथा की काव्यात्मक सर्जना की तथा श्री गणेश जी ने अपनी अथक प्रवाहमान पुनीत लेखनी से उसे सर्वप्रथम लिपिबद्ध किया था। जानकार विस्मय होगा कि लिखते समय गणेश की लेखनी टूट गई और उन्होंने अपना गजदंत तोड़कर उसका प्रयोग लिखने में किया ताकि व्यास एक क्षण भी न रुक पाएं। गजदंत को तोड़कर लेखनी में प्रयोग के पश्चात् उन्हें एकदंत कहा जाने लगा। यह कथा न केवल मोक्ष पुण्यदायिनी है वरन जीवन की कल्याणकारी पथ प्रदॢशका भी है।