एक व्यक्ति बहुत बुरी तरह बीमार पड़ा। मरने से पहले वह अपने पुत्र के लिए एक संरक्षक चाहता था। ईश्वर और शैतान, दोनों ने उसके सम्मुख प्रस्ताव रखा कि वे उसके पुत्र को संरक्षण देंगे। लेकिन उसने इन दोनों का प्रस्ताव ठुकराकर मृत्यु को अपने पुत्र का संरक्षक चुना और शांति से संसार से विदा हो गया।
पुत्र जंब बड़ा हुआ तो मृत्यु ने उसे वरदान दिया कि वह असाध्य रोगों से पीड़ित व्यक्तियों को अपने उपचार से ठीक कर सकता है। लेकिन साथ ही उसने चेतावनी भी दी कि जो मरने के एकदम करीब आ पहुँचा हो, उसका इलाज मत करना वरना इसका नतीजा ठीक नहीं होगा।
युवक मान गया और जल्दी ही अपने इलाज के लिए पूरे राज्य में प्रसिद्ध हो गया। एक बार वहाँ का राजा बुरी तरह बीमार पड़ा। उसके बचने की कोई आशा न रही। राज्य की ओर से सब जगह मुनादी कराई गई कि जो राजा को ठीक कर देगा, उसे आधा राज्य पुरस्कार में दिया जाएगा। सुनकर उसे लालच आ गया और वह उसका इलाज करने राजमहल में जा पहुँचा। वहाँ उसे मृत्यु नजर आई, लेकिन उसने उसकी उपस्थिति की परवाह न करते हुए राजा का उपचार किया और राजा स्वस्थ हो गया। मृत्यु ने कहा कि तुमने मेरे कार्य में विघ्न डाला। इसलिए अब मुझे तुम्हारे ही प्राण लेने होंगे। युवक के बहुत गिड़गिड़ाने पर उसने उसकी जान तो बख्श दी, लेकिन उसे दिया गया वरदान वापस ले लिया।
सारः हमें अपने दिए वचन का पालन करना चाहिए।
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