dekhane-samajhane mein antar
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मजनूँ की कहानी हम सबने सुनी है। उसके गाँव के राजा ने उसे बुलाया था और कहा था-तू पागल हो गया है? लैला बहुत साधारण-सी लड़की है। उससे बहुत सुन्दर लड़कियाँ हम तुझे दे सकते हैं। तेरी पीड़ा से हमें तकलीफ होती है। तेरे बहते आँसुओं से, और गाँव के आस-पास तेरे गूंजते हुए गीतों की आवाजों से, हमें भी पीड़ा होती है। तू व्यर्थ परेशान है। लैला बड़ी साधारण लड़की है। हमने बहुत सुन्दर लड़कियाँ बुलवा ली हैं, तू देख ले, तुझे जो पसन्द हो वह चुन ले।

मजनूँ बहुत हँसने लगा। उसने कहा, आपको पता ही नहीं कि लैला कौन है। लैला को देखने के लिए मजनूँ की आँख चाहिए। मेरे सिवाय कोई नहीं जानता कि लैला कौन है।

सम्राट् ने कहा, मैंने देखा है तेरी लैला को, और मेरे दरबारियों ने देखा है, “बड़ी साधारण सी लड़की है। क्यों पागल हुआ चला जाता है?

मजनूँ ने कहा- वह होगी साधारण। मजनूँ के लिए नहीं है। मजनूं की आँख के लिए नहीं है।

उस सम्राट् ने कहा-मालूम होता है, लैला जैसी है, वैसी तू नहीं देखता। तू जैसी देखना चाहता है, वैसी देख लेता है। प्रोजेक्शन है। कोई।

हम कोई भी वह नहीं देखते, जो है। हम जो देखना चाहते हैं, वह तो प्रिय हम ऊपर से डाल देते हैं। जिसे हम मित्र देखना चाहते हैं, हम मित्र के भाव उसके ऊपर आरोपित कर देते हैं। और जिसे हम शत्रु देखना चाहते हैं, शत्रु के भाव आरोपित कर देते हैं। और जो भाव हम “इम्पोज” कर देते हैं, आरोपित कर देते हैं, वही हमें दिखायी पड़ना शुरू हो जाता है। हम वह नहीं देखते जो है। हम वही देखते हैं, जो हम देखना चाहते हैं।

ये कहानी ‘ अनमोल प्रेरक प्रसंग’ किताब से ली गई है, इसकी और कहानियां पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर जाएंAnmol Prerak Prasang(अनमोल प्रेरक प्रसंग)