kaun mahaan hai
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भारत कथा माला

उन अनाम वैरागी-मिरासी व भांड नाम से जाने जाने वाले लोक गायकों, घुमक्कड़  साधुओं  और हमारे समाज परिवार के अनेक पुरखों को जिनकी बदौलत ये अनमोल कथाएँ पीढ़ी दर पीढ़ी होती हुई हम तक पहुँची हैं

कभी कलकल बहने वाली एक नदी थी। उस नदी में पानी का बहाब बहुत तेज था। नदी के दोनों ओर की जितनी भी हरियाली और पेड़ है, उन सब ने इसी नदी के तेज बहाव के कारण अपना वजूद धीरे-धीरे खोने लगे हैं। एक बड़ा पेड़ हर साल बारिश और बाड़ को सहते-सहते न जाने कैसे टिक गया है, पर उसकी जड़ों की पकड़ भी धीरे धीरे कमजोर होने लगी हैं।

एक दिन उस पुराने पेड़ ने नदी से पूछा- आकाश छूते बड़े-बड़े पेड़, ऊंचे ऊंचे मकान, ये सब तुम कुछ भी नहीं छोड़ती हो, अपने पानी के बहाव में सब कुछ तबाह कर देती हो, पर किनारे पर छोटी-छोटी हरी घास के साथ कुछ भी गलत नहीं होता है कभी। ऐसा क्यों? इसे बहा क्यों नहीं ले जा सकती? घास इतना छोटा है कि इसे तो आसानी से नुकसान पहुंचाया जा सकता है। पत्ते की तुलना में हल्का और कमजोर है। नदी की धारा में बह जाना बहुत आसान है वैसे भी। हम सभी बड़े पेड़ उसकी तुलना में बहुत सक्त हैं और जड़ें भी मजबूत हैं, फिर भी हमारा इतना नुकसान कैसे होता है। और एक छोटी-सी घास टिक कैसे जाती है?

यह सुनकर नदी ने कहा, नहीं-नहीं ऐसा कुछ नहीं है। तुम सब आकार में बड़े हो लेकिन चेतना में या कर्म में नहीं। आपको बड़ा होने पर बहुत गर्व है। आप सभी विशाल हो और अपनी इन विशाल शाखाओं पर बहुत गर्व करते हो।

लेकिन घास को देखो, उनके मन में गर्व या अहंकार बिलकुल नहीं है। वह बहुत नरम है। वह विनम्र और उदार, दयालु और सहनशील है। आप सब भी परोपकारी हो, पर अहंकारी हो। और मैं नहीं कर सकती किसी के अहंकार या घमंड को सहन। इसलिए अपनी जल धारा में तुम लोगों को बहा ले जाती हूं। बाढ़ के दौरान तुम सभी बड़ी-बड़ी शाखाओं से मेरे बहते पानी को बाँध देते हो। लेकिन छोटा-सा घास मेरे सामने विनम्रतापूर्वक आत्मसमर्पण कर देता है, हर विपत्ति या दुःख-दर्द को वो सहन कर लेता है, इसलिए उसके लिए कुछ भी बुरा नहीं होता है। यहां तक कि जब बाढ़ के समय मिट्टी चढ़ जाती है इसके ऊपर तो वह कुछ दिनों बाद फिर से अपना सिर ऊपर कर के जीता है। सिर्फ मैं नही इंसान कुचलता है और जानवर के मुंह में जाता है फिर भी कुछ दिनों बाद वो फिर से अपना अस्तित्व ले के मेरे किनारे पे खड़ा हो जाता है। सूरज की प्रखर किरणों से वो मुरझा जाता है, बिखर जाता है फिर भी हर बार संघर्ष करने से पीछे नहीं हटता है। मुझे ये सब रोमांचित करता है। मैं उसकी चेतना और आदर्शों के सामने बहुत छोटा हूं, इसलिए वह मेरी पसंदीदा है। दुनिया इससे सीखेगी …इन सभी गुणों को सीखना चाहिए। इसीलिए मैं उस छोटे से घास के सामने हार जाता हूं। हर बार बाढ़ का पानी उस पर बहता है, लेकिन यह बरकरार है। मेरे पानी को वो रोकने की कभी कोशिश नहीं करता है बांध बन के सामने। तो घास मेरी दोस्त है, सच्ची दोस्त है।

यह सब सुनकर, बड़ा पेड़ चुप हो गया और सोचने लगा कि वास्तव में घास कितनी महान है।

भारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा मालाभारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा माला’ का अद्भुत प्रकाशन।’