Hindi Kahani: “आकांक्षा आठ बज चुके हैं , अभी तक मुझे चाय भी नहीं मिली है ।”
कलावती ने अपनी बहू से कहा ।
अपने नाती मोलू को गोद में लिए आकांक्षा किचन में जाने लगी तो दामाद आदित्य दौड़ता हुआ आया और कहा…..
“मम्मी जी लाइए मोलू को मुझे दीजिए । आप दादी जी को चाय दे दीजिए ।”
“अरे इसने गिला कर दिया है । मैं इसकी नैपी चेंज कर देती हूं ।” आकांक्षा ने कहा ।
“वह मैं कर लूंगा आप जाइए ।” आदित्य ने सास को कहा।
“मेरे हाथ में कल से दर्द है नहीं तो मैं ही कर लेती । रिया कहां है ? उसे तो बच्चे की फिक्र ही नहीं है ।”
कलावती ने मुंह बनाते हुए कहा ।
“नहीं ऐसी बात नहीं है । अभी उसकी मीटिंग चल रही है । ऑफिस नहीं जा रही है बच्चे के कारण । वर्क फ्रॉम होम है । मीटिंग छोड़ नहीं सकती , अर्जेंट है । वैसे परेशानी क्या है मैं और मम्मी जी तो हूं हीं , हम देख लेंगे मोलू को ।”
कहता हुआ आदित्य अपने कमरे में चला गया ।
कलावती ने अपनी बहू की तरफ मुखातिब होते हुए धीरे से व्यंग्यात्मक लहजे में कहा …….
“दामाद अच्छा ढूंढा है , बिल्कुल जोरू का गुलाम ।”
इसमें जोरू का गुलाम की क्या बात है मां जी ? यह बच्चा रिया और आदित्य दोनों का है । वह रिया की अनुपस्थिति में यदि उसे देख रहा है तो क्या हुआ ।”
आकांक्षा ने सास को शांत लहजे में सफाई दी ।
“हमारे जमाने में मर्द ऐसे नहीं होते थे । रात से पहले घर के भीतर प्रवेश भी नहीं करते थे । दालान और बैठक हीं उनके दिन का निवास स्थल होता था । इस तरह पत्नी के पीछे-पीछे नहीं घूमते थे । मैंने अपने बेटे को भी वही संस्कार दिया है । जब रिया और विवेक का जन्म हुआ था तो क्या प्रवीण अपना काम छोड़कर तुम्हारे पीछे-पीछे घूमता था ?”
कलावती ने थोड़ा कड़े होकर सवाल किया ।
“समय अब वह नहीं रहा मां जी । आपके जमाने में बड़ा सा संयुक्त परिवार था । घर में इतनी अधिक स्त्रियां होती थीं कि मर्दों की जरूरत हीं नहीं होती थी । बच्चे अपने आप पल जाते थे । मेरे समय में भी आप मेरे साथ थीं । मैंने अपनी मां और बहन को भी बुला लिया था और सबसे बड़ी बात यह थी कि मैं नौकरी नहीं करती थी । सारे दिन घर में रहती थी । परिस्थितियों ने न्यूक्लियर फैमिली को जन्म दिया है । पति-पत्नी दोनों नौकरी करते हैं । ऐसे में बच्चा आ गया तो दोनों को मिलकर पालना होगा ।”
शांत भाव से अपनी बात को रखते हुए आकांक्षा किचन में चली गई । उसने सास को कुछ कहने का मौका ही नहीं दिया ।
बेटी दामाद के पास मोलू के जन्म के समय आकांक्षा और प्रवीण बेंगलुरु आए थे । एक महीना रहकर आकांक्षा ने बच्चे को संभाला । प्रवीण तुरंत लौट गया था क्योंकि उस समय कलावती की तबीयत ठीक नहीं थी । छोटे बेटे विवेक पर छोड़कर आए थे दोनों । कुछ दिनों बाद कलावती को भी परपोते को देखने की इच्छा हुई थी इसी कारण आकांक्षा सास को लेकर बेंगलुरु आई थी ।
उस दिन रिया के अपार्टमेंट में पड़ोसी का मैरिज एनिवर्सरी था । सभी के लिए निमंत्रण आया था । कलावती तो पहले जाने को तैयार नहीं थी । किंतु आकांक्षा उन्हें अकेले नहीं छोड़ना चाहती थी । आग्रह करके ले गई । बड़े से हाॅल में खाने-पीने , म्यूजिक और कहकहों का दौर चल रहा था । आकांक्षा सास के पास ही बैठी थी । बड़ा सा स्टेज बना था । रिया ने मोलू को गोद में लिया हुआ था । आदित्य के हाथ में उपहार था । दोनों स्टेज पर चढ़े । उतरने के क्रम में रिया की साड़ी स्टेज की सीढ़िया से फंस गई । गोद में मोलू था जिसके कारण वह झुककर अपनी साड़ी को निकाल नहीं पाई । तभी आदित्य दौड़ पड़ा । उसने झुक कर उसकी साड़ी निकाली और रिया को स्टेज से संभालते हुए नीचे लाया । मोलू को उसने अपने गोद में ले लिया । इतने में आकांक्षा भी उठ पड़ी , फिर दामाद के हाथों से उसने मोलू को गोद में ले लिया और पुनः सास के पास आकर बैठ गई । आकांक्षा को डांटते हुए कलावती ने कहा…..
“तुम नहीं जा सकती थी ? पूरी भीड़ को दिखाना था कि दामाद तुम्हारा बिल्कुल जोरू का गुलाम है । उसकी साड़ी ठीक कर रहा था ।”
“तो क्या करता उन्हें स्टेज पर गिरने देता ?”
आकांक्षा ने कहा ।
रिया और आदित्य बगल में ही खड़े थे । वे उनकी बातें सुन रहे थे ।
कलावती को जोड़ों में हमेशा दर्द रहता था जिसके कारण उसे उठने-बैठने में परेशानी होती थी । कुछ महीनो से हाथ में भी काफी दर्द रह रहा था जिसके कारण वह कोई काम नहीं कर पाती थी। आकांक्षा सास का बहुत ज्यादा ख्याल रखती थी । दोपहर का समय था । आकांक्षा कलावती के पास आई और कहा ….
मोलू सो रहा है । उसे आपके पास ही सुला रहे हैं । वह तुरंत सोया है इसलिए जल्दी उठेगा नहीं । आप देखते रहिएगा । मैं और रिया अपार्टमेंट के नीचे सब्जी लेने जा रहे हैं ।
कलावती को सोफे पर बैठे-बैठे आंख लग गई थी । अचानक मोलू के रोने की आवाज सुनकर वह चौंक पड़ी । किसी तरह उठकर वह मोलू के पास गई और चुप कराने लगी । लेकिन वह तो चुप होने का नाम ही नहीं ले रहा था । लगातार रोए जा रहा था । छूकर देखा…… “गिला भी नहीं है ……शायद इसे भूख लगी है।” कलावती ने सोचा ।
तभी कमरे से आदित्य बाहर आया । कलावती देखकर चौंक पड़ी और खुश भी हुई । वह नहीं जानती थी कि आदित्य घर में है ।
“अरे आदित्य बेटा तुम घर में ही हो ? शायद इसे भूख लगी है । जरा बोतल में भरकर इसका दूध दे दो ।”
“मैं……?”
आदित्य चौंका ।
“मैं नहीं जानता कि इसका बोतल कहां है और रिया ने इसका दूध कहां रखा है ।”
“बेटा मेरे पैरों में बहुत दर्द है मैं उठकर किचन में नहीं जा सकती । ” असहाय हो कलावती ने विनम्रता से कहा ।
तब तक मोलू ने पूरे घर को सर पर उठा लिया था । कलावती एकदम परेशान हो गई । अंत में उत्तेजित होते हुए उसने आदित्य से कहा……
“बच्चे के बाप हो , तुम्हें भी यह सब सीखना चाहिए । अगर रिया की अनुपस्थिति में इसे भूख लगेगी तब तो यह बच्चा भूख से मर जाएगा ।”
“क्यों दादी दूध तैयार करने में कहीं आदित्य की मर्दानगी कम हो गई तो…..? और इसे फिर से जोरू का गुलाम टाइटल मिल गया तो……? तो फिर यह सब क्यों सीखेगा आदित्य….।”
रिया ने कटाक्ष किया ।
“अरे तुम लोग कब आई ….? स्तब्ध हो कलावती ने सवाल किया ।
“हम लोग कहीं गए ही नहीं थे सिर्फ आपको कुछ समझाना चाहते थे ।”
रिया दादी के पास बैठ गई और उनका हाथ अपने हाथों में लेकर प्यार से कहा…….
“दादी मुझे माफ करिएगा । आज की परिस्थितियों के बारे में आपको समझाना जरूरी था । बच्चे का पालन-पोषण पति-पत्नी के सहयोग से ही होना चाहिए । दोनों का अंश होता है बच्चा । यदि मां कर सकती है तो पिता भी कर सकता है । बच्चों के पालन-पोषण में पूरे परिवार की भूमिका महत्वपूर्ण होती है । आज वक्त और हालात दोनों बदल चुके हैं। पति-पत्नी एक दूसरे के हमसफर ……. हमकदम….सहयात्री…….के साथ-साथ जन्मदाता भी होते हैं । ऐसे में एक दूसरे को और अपने अंशों को संभालने में सहयोग नहीं करेंगे तो और कौन करेगा…..? समय के साथ हमारे जो बड़े हैं , प्रौढ़ावस्था या वृद्धावस्था में प्रवेश कर जाते हैं। फिर हम उन पर कितना निर्भर रह सकते हैं । पूरा जीवन वे अपने बच्चों को संभालते हैं और फिर अपने बच्चों के बच्चों को संभालने के लिए भी उनसे उम्मीद रखा जाता है । उन्हें भी उम्र की उस दहलीज पर आराम की जरूरत होती है । बदलाव की जरूरत है दादी समय के साथ अपनी सोच बदलनी चाहिए ।”
कलावती बिल्कुल मौन हो गई । जब बहुत देर तक चुप रही तब रिया को अपराध बोध होने लगा । उसे लगा कि उसने दादी का दिल दुखा दिया ।आकांक्षा भी संकोच में पड़ गई।
“तुम लोगों को दुखी होने की जरूरत नहीं है ।” अचानक कलावती ने मुंह खोला ।
“दरअसल मैं सोच रही थी कि हम जड़ों से जुड़े तो रहते हैं किंतु सिर्फ जड़ों की जड़ता को हीं अपनाते हैं । जड़ों के अन्य गुणों की तरफ हमारा ध्यान ही नहीं जाता और हम अपने एक परंपरावादी सोच से हमेशा घिरे रहते हैं । अक्सर नई पीढ़ी और पुरानी पीढ़ी के बीच इसी बात को लेकर विवाद होता है और एक गहरी खाई जन्म लेती है ।
आज तुम लोगों ने मेरी जड़ता को लचीला बनाया है । मेरी जकड़ी सोच को बदला है । वक्त और परिस्थिति के कारण बदलाव बहुत जरूरी होता है । तभी हम समय के साथ चल सकेंगे । अन्यथा गहरी खाई के दो किनारो पर दोनों पीढ़ियां रह जाएंगी । ”
