Hindi Love Story: हमारी राजधानी के एक मॉल में टाइम पास की नीयत से टहलते हुए मुझे पीछे से आती “हॉय!” की आवाज़ ने पलटा। प्राणों में कुछ सुखद और हसीन इत्तेफ़ाकों की यादें भी शामिल हो तो सांसे लेना आसान होता है।
जीवन की परम मनोहर और लम्बे वक़्त तक बने रहने वाली आवाज़ की मालकिन को मैंने अपलक निहारा-“अरे! तुम यहाँ कैसे?”
“शायद धरती इतनी बड़ी नहीं हो पायी कि, हम कभी ना मिलते।” उसके चेहरे की ख़ुशी और मुस्कान का आशिक़ मैं तब भी था।
“हाँ…” मैंने याद करते हुए आगे कहा- “यह बात तो मैं कहा करता था, उस समय तुम्हें यकीं नहीं था इन बातों में।”
“इसका मतलब पुरानी बातें याद हैं तुम्हें?” उसकी मुस्कान बनी हुई थी, पर कुछ पेचीदगी सी ज़रूर आ गई थी।
“चाय पिएँ?” इस जीवन में तो उसकी चाय की लत सुधर नहीं सकती।
“ओके। मम्मी और दिशा है उस शॉप में, उन्हें बोल कर आती हूँ।”
“ओके।”
उसने वापस आकर बताया कि, वह अपनी बहन दिशा की शादी के लिए ख़रीदारी करने दो दिनों से शहर में ही थी और आज रात वापसी की ट्रेन है। पास के ही एक होटल में वे रुके हुए थे और उनका काम लगभग हो ही गया था।
दो कुर्सियों वाली छोटी टेबल के अपने हिस्से में मैंने कप रखा और उसने एक हाथ में कप के साथ दूसरे हाथ की हथेली पर अपना चेहरा।
“तैयारियाँ हो गईं शादी की?”
“हाँ, हो ही गई हैं। मम्मी बेचारी अकेले रह जाने से ज़्यादा दुखी है, और दिशा का तो पूछो ही मत। जब से इंगेजमेंट हुई है, मैडम सतरंगी दुनिया के सैर-सपाटे में ही निकली हुई हैं। इसलिए तो मुझ पर ही तैयारियों का लोड ज़्यादा है। सोचती हूँ जी लेने दो बच्ची को अपने दिन, सपनों वाले दिन। हा…हा…हा…”
“सच क्यों नहीं कहती कि, झूठे सपनों वाले दिन? हा…हा…हा…तुम्हारे सपने का क्या हुआ?” मैंने ना चाहते हुए भी पूछ ही लिया।
“सच कहूँ, तो तुम्हारे अलावा सपनों में आने लायक़ तो कोई नहीं मिला फिर…” कहते हुए वह एकाएक रुक गई। शायद उसे लगा हो इन सब बातों का हमारा रिश्ता बाकी भी है या नहीं; जाँच कर ली जानी चाहिए।
“तुम तो मेरे ख़्याल से शाम तक फ़्री हो? कहीं बाहर चलें, मुझे यहाँ थोड़ी सफोकेशन सी हो रही है।” उसके संभलने की चेष्टा और थोड़े भारी होते अंदाज़ देखते हुए मैंने कहा।
उसने मम्मी को कॉल पर बता दिया कि, वह मेरे साथ कहीं जा रही है और ट्रेन की टाइमिंग के अकार्डिंग होटल पहुँच जाएगी। हमने मॉल की तीसरी मंज़िल से लेकर लोवर बेसमेंट की पार्किंग तक के लिफ्ट के सफ़र में एक शब्द भी नहीं खर्चे।
“पुराने दिनों की ताज़गी…तुम्हारी कार अब भी सिगरेट की ख़ुशबू से भरी होती है?” उसने बैठते और बेल्ट लगाते हुए कहा।
“कार भी तो वही है। मुझे तो बहुत बार इसमें तुम्हारी गंध भी आती है।” मैंने कार पार्किंग से निकालते हुए कहा।
सड़क पर कार आते तक मैं उसकी मौजूदगी के नशे को और भी महसूस करने लगा था।
“सिगरेट लोगी?”
“हाँ, क्यों नहीं। तुम्हें पता है, अपनी आख़िरी सिगरेट मैंने तुम्हारे साथ ही पी थी।” मैं वह आवाज़ पहचान पा रहा था जो हमेशा ही लाग लपेट से परे रही है।
“कैसी चल रही है तुम्हारी लाइफ़?” मैंने अपनी सिगरेट सुलगाई और झिझकते हुए; लाइटर, सिगरेट उसकी ओर खिसका दी। झिझक इसलिए कि, पहले हर सिगरेट हम शेयर ही करते थे। ड्राइव पर और ना जाने कितने ही लम्हें हमने एक के बाद एक सिगरेट फूँकते हुए बिताए थे।
“वैसी ही, जैसी एक हाउस वाइफ की चलनी चाहिए। सब कुछ अच्छा है, तेजस भी बहुत अच्छे हैं।”
“वैरी गुड।” हम शहर के बीच बनी एक आर्टिफिशियल झील, मरीन ड्राइव पर थे। यहाँ हम पहले भी आ चुके थे।
“वॉव। तुम्हें याद है कि यह जगह मुझे पसंद आई थी?” झील के चारों ओर चौड़े फुटपाथ पर बहुत लोग मॉर्निंग या इवनिंग वॉक के लिए आते थे। आस-पास भुट्टे, चने, चाय-पकोड़े, मोमोज़ वालों की भरमार रहती थी। हमने कार पार्क की। हम उसी वॉकिंग स्ट्रीप पर थे जिसमें मोहब्बत की कुछ कहानियाँ तो हमने जी हुई थीं।
“बारिश याद है तुम्हें?” उसने कहा।
“हाँ, याद कैसे नहीं होगी। भुट्टा लोगी?”
हमने याद किया, वह दिन जब एक शाम हम यहाँ टहलते हुए बातें कर रहे थे और एक दूसरे को जी रहे थे। बारिश का मौसम था, पर अचानक इस तरह ताबड़तोड़ बरसेंगे बादल, यह अंदाज़ नहीं था। यकायक तेज़ी से आने लगी बारिश में जब तक हम शेड ढूँढ पाते; पूरी तरह से भीग चुके थे। आज सिर्फ़ एक दूसरे की मौजूदगी महसूस करते हुए हम चलते रहे, जब तक कि झील के आख़िरी कोने में ना पहुँच गए। यह चुप्पी शायद हम दोनों के लिए असहनीय थी।
एक कोने पर पड़ी खाली गार्डन चेयर देखते हुए मैंने पूछा – “कुछ देर बैठें यहाँ?”
“हाँ, यह चेयर भी वैसी की वैसी ही है न?” उसने बैठते हुए कहा। मैं उसके बगल में बैठा, पर दूरी पहले से ज़्यादा थी और हमारे शरीर एक-दूसरे को छूते नहीं थे। मन का जुड़ाव न होता तो शायद हम यहाँ होते ही नहीं।
“तुमने नहीं बताया, तुम्हारी लाइफ़ कैसी चल रही है? और कहाँ तक पहुँची तुम्हारी स्कोरिंग?”
“काहे का स्कोर?” हाँलाकि मैं यह जानता था, वह क्या पूछ रही है।
“तुम्हारी गर्लफ्रेन्डस का। अब भी कोई है लाइफ़ में, या सब को छोड़ते जाना ही अब भी तुम्हें पसंद है?” उसकी उलाहनाओं ने बता दिया कि उसे फ़र्क पड़ता है।
“हा…हा…स्कोर तो मैंने कभी नोट किया नहीं। मैं बेचारा क्या कर सकता हूँ, जब तुम्हारा भगवान चाहता ही नहीं कि, मैं सिंगल रहूँ; कोई ना कोई लड़की लाइफ़ में भेज ही देता है। और डियर छोड़ा तुमने था मुझे, मैंने नहीं।”
“मैंने? थोड़ा फिर से सोचो, क्या पता हम दोनों ने एक दूसरे को छोड़ा हो? या तुमने जानबूझ कर मुझे ऐसा करने पर मजबूर किया हो?” उसकी आवाज़ में रूखेपन की जगह नमी आ गई थी।
“तुम्हारे जाने के बाद पूरा साल लगा मुझे संभलने में। मेरी एक-एक सुबह और शाम तुम्हारी यादों से लड़ते बीती है।”
“और मैं कहूँ कि, मैं आज भी सुबह जब मोबाइल देखती हूँ, तो तुम्हारे ‘गुड मार्निंग डार्लिंग’ और किसेस की याद आती है; और रात में फोन ऑफ करते समय एक बार ‘गुड नाइट’ चेक कर ही लेती हूँ।” उसकी आँखों और गले में भी अब नमी बढ़ती सी लगी।
“क्या रिश्तों में बंधे बग़ैर, किसी प्यार को ज़िंदा नहीं रखा जा सकता?” मैंने अपना पूराना सवाल किया।
“तुम्हारी वही पूरानी ज़िद है। लेकिन तुम्हें अच्छा लगेगा जान कर कि, ज़िंदा रखा जा सकता है और ज़िंदा है।”
“क्या हम एक-दूसरे की लाइफ़ में फिर से आ सकते हैं?” उसके साथ का स्वाद ताज़ा हो उठा।
“क्यों, तुम्हारी लिस्ट कुछ छोटी पड़ जाएगी मेरे बग़ैर?” उसने मुस्कुराने की कोशिश करते हुए वापसी की। झूठी मासूम मुस्कान।
“छोटी तो नहींः पर हाँ, अधूरी ज़रूर रह जाएगी।”
“सुनो पागल! मैंने कहा ना, तुम अब भी हो लाइफ़ में और यह मुझे पसंद है। तुम इतने गहरे हो मेरे साथ कि तुम्हारे कॉल, मैसेज की ज़रूरत भी ख़त्म हो चुकी है। कई बार मन में आता है तुम्हें थैंक्स कहूँ। तुम नहीं होते तो शायद प्यार को जीना मुझे आता ही नहीं।”
उसके कहे को समझने की कोशिश करते हुए मैंने आसपास निगाहें दौड़ाई तो मुझे ख़्याल आया कि, अब शाम हो चुकी थी और हमारी कुर्सी वाली जगह पर ज़्यादा रौशनी नहीं थी।
“अब चलें?” उसने कहा।
“आं…हाँ। चलो।”
मैंने होटल पहुँचकर कार रोकी और उसे जाते देखने से बचने की कोशिश में, उसकी ओर देखा नहीं। वह उतरी नहीं और कहा-“आ जाओ। मम्मी और दिशा से मिल लो, अच्छा लगेगा उन्हें।”
“हाँ चलो।” मैंने कार पार्क की।
हम लिफ्ट में पहुँचे, उसने बारह का बटन दबाया और मैंने कह ही दिया- “मुझे हग करना है तुम्हें”।
और बग़ैर उसके जवाब का इंतज़ार किए हम एक-दूसरे से चिपक गए।
ये कहानी ‘हंड्रेड डेट्स ‘ किताब से ली गई है, इसकी और कहानी पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर जाएं – Hundred dates (हंड्रेड डेट्स)
