भारत कथा माला
उन अनाम वैरागी-मिरासी व भांड नाम से जाने जाने वाले लोक गायकों, घुमक्कड़ साधुओं और हमारे समाज परिवार के अनेक पुरखों को जिनकी बदौलत ये अनमोल कथाएँ पीढ़ी दर पीढ़ी होती हुई हम तक पहुँची हैं
Hindi kahani : पंजाबी का सशक्त युवा कथाकार, गांव और शहर के निम्न और मध्य वर्ग की जटिलताओं को कथा में पिरो कर प्रस्तुत करता। दलित वर्ग की समस्याओं की ओर सूक्ष्मता से ध्यान दिलाना और उनके लिए नए राहों की ओर अग्रसर होने को लालायित। पांच कहानी-संग्रहों के साथ अभी हाल ही में एक उपन्यास की रचना।
अनेक वर्षों से पंजाबी पत्रकारिता से संबंद्ध। वर्ष 2006 से ‘पंजाबी पत्रिका ‘कहानी धारा’ का संपादन और पत्रिका को उच्च साहित्यिक स्तर पर पहुंचाना।
रवि डिफेंडर
बॉल जैसे ही मिड फील्ड की पोजीशन पर खेलते हुए पांच नंबर की जर्सी वाले खिलाड़ी ने स्ट्राईकर आर्यन को पास की तो आर्यन ने इसे सुनहरी मौका समझा। दाएं पैर से बॉल रोक कर वह गोली की तरह विरोधी टीम के गोल की ओर बॉल लेकर दौड़ पड़ा। विरोधी टीम के दो खिलाड़ी उसके आसपास दौड़ रहे थे। आर्यन पल में ही दोनों को चकमा दे कर बॉल को गोल के नजदीक ले गया। उसके कानों ने कई खिलाड़ियों की भागदौड़ को नजदीकी से महसूस किया। तभी उसका दिमाग चला और आर्यन ने फुटबॉल के आगे पैर रख कर एकदम से रोक लिया। उसके बूट धरती पर जम गए। विरोधी खिलाड़ी आगे निकल गए। आर्यन के लिए यह पल बहुत कीमती थे। फुर्ती से उसने अपना शरीर घुमाया और बाएं पैर से बॉल विरोधी टीम के गोल में फेंक दी। बॉल गोली की तरह विरोधी टीम के गोल में दाखिल हो गई। और उसके डिफेंडर देखते ही रह गए। बॉल. गोल पोस्ट से दो इंच के फासले पर….गोल के नैट से जा टकराया। यह पल बहुत तेजी से बीते। गोलकीपर भी संभाल न पाया और आर्यन द्वारा गोल करते ही ग्राउंड में तालियां गूंज उठीं। सीमेंट के थड़े पर बैठा रवि कुमार एकदम उछला। तालियां बजाते ही उसने ऊंची आवाज में कहा, “शाबाश आर्यन बेटा।”
आस-पास बैठे अन्य लोगों ने उसकी ओर घरते हए देखा। रवि ने बेपरवाही से पुराने नीले रंग के ब्लेजर को ठीक किया। जेब पर लिखे ‘इंडिया’ शब्द को सहलाया और फिर से थडे पर बैठ गया।
तब विरोधी टीम के तीन खिलाड़ियों को तो आर्यन ने चक्कर में डाल दिया था, जब उसने एक खिलाड़ी की टांगों के बीच से बॉल निकाल लिया और उधर विरोधी मिड फील्डर खिलाड़ी उस पर आ झपटे। परन्तु आर्यन का दिमाग उनसे तेज चला। वह बॉल को पीछे धकेल कर बहुत तेजी से पीछे मुड़ा और बॉल निकाल ले गया। उसने तेजी से अपनी दाहिनी ओर खेलते साथी स्ट्राईकर सात नंबर को बॉल पास कर दिया। वह बॉल की ठीक पोजीशन बना कर गोल की ओर दौड़ नहीं पाया और पलों से ही बॉल विरोधी मिड फील्डर ने उसे छीन लिया। जब भी बॉल आर्यन के पास आया, वह विरोधी पर दबाव बना कर खेलता रहा। बॉल को आगे-पीछे मोड़ते हुए, उसने विरोधियों को चक्र में घुमा कर रख दिया था। मैच खत्म होते ही आर्यन को बांहों में लेते हुए रवि ने कहा, “लो बेटा! अंतर्राष्ट्रीय गोल्डन एशिया कप के चुनाव में तुम्हारा नाम पक्का हो गया।”
आर्यन ने अपने पापा के पैरों को छूकर प्रणाम किया।
“पापा! मेरा फुटबॉल खेलने का एक ही मकसद है कि फुर्ती से और अच्छा खेलना। अपनी पोजीशन पर अच्छा खेलना है। मेरा लक्ष्य यही है कि मैं दूसरों से अच्छा और अपनी पोजीशन में बढ़िया खेलूं।”
सिटी ग्राउंड में फुटबॉल खिलाड़ियों के चयन का ट्रायल चल रहा था। सरकार की ओर से कोच, डॉयरेक्टर व चेयरमैन की टीम बैठी थी। इस ट्रॉयल में अंतर्राष्ट्रीय गोल्डन एशिया कप’ खेलने के लिए खिलाड़ियों का चुनाव किया जाना था। मैच के बाद फिर अकले-अकेले खिलाड़ी को बुलाया गया था। उन की इंटरव्यू ले कर सभी को घर भेज दिया गया। दूसरे दिन चयनित खिलाड़ियों की लिस्ट ऑफिस में लगाई जानी थी। रवि दूसरे दिन आर्यन को लेकर कोच के आफिस पहुंच गया।
‘पापा! लिस्ट में मेरा नाम तो है ही नहीं..। मेरे दाहिनी ओर स्ट्राकर खेलने वाला का नाम तो लिस्ट में है।”
“हैं…हैं…हद हो गई यार! तुम तो सब से अच्छा खेले थे….किस लडके का नाम है, वही जो तुम्हारे साथ स्ट्राकर पर खेल रहा था। सात नंबर की जर्सी वाला….है यार! वो तो एकदम गलत ही खेल रहा था। बॉल के पीछे तो उससे दौड़ा भी नहीं जा रहा था….। कमाल है…यार!” गुस्से से भर कर वह कोच के कमरे में चला गया। वहां अन्य अफसर भी बैठे थे।
“बात सुनिये कोच साहिब मेरी! भला किस बेस पर आपने मेरे लड़के आर्यन को टीम में सलेक्ट नहीं किया। बात सुनिए मेरी…वो सब से बढ़िया खेला। कोई मुकाबला ही नहीं उसका यार….। आप देख तो रहे थे…। डिफेंडरों की दीवार चीर कर बॉल ले जाता रहा और आप ने जो लडका सिलैक्ट किया है, वो कोई खिलाड़ी है। बॉल को वह पकड नहीं पाता…अपने साथ के खिलाड़ी को पास करने से पहले विरोधी खिलाडी उससे बॉल छीन ले जाता रहा। …उससे तो दौड़ा भी नहीं जा रहा था…। ऐसे गधों को टीम में भर्ती करके आप एशिया कप जीत लेंगे….बताइए मुझे…।” रवि अपना ब्लेजर ठीक करते हुए बोला।
“तुम कौन हो भई? तुम्हें मालम भी है, बात किससे कर रहे हो… हमें सरकार ने ऐसे ही कोच नहीं बनाया। हम सब कुछ देख-सुन कर ही खिलाड़ियों का चुनाव करते हैं।” कोच पेन को घुमाते हुए तल्खी से बोला।
“देखिए मेरी ओर…। यह ब्लेजर देख रहे हैं…। देख रहे हैं, इस पर ‘इंडिया’ लिखा हुआ है। मालूम है आपको? ऐसा ब्लेजर कौन पहनता है…। यह भी मालूम होगा…मैं रवि कुमार हूं…। यार, मैं भी फुटबॉल का प्लेयर रहा हूं। मैंने भी अंतर्राष्ट्रीय टूर्नामेंट खेले हैं। अपने समय में, अपने जैसा कोई डिफेंडर मैंने पैदा नहीं होने दिया। बॉल गोल में से निकल जाए…बाज जैसी आंख थी मेरी..। बंगलौर वाले रैड स्टार फुटबॉल क्लब का नाम सुना होगा. ..वे चुन-चुन कर खिलाड़ी रखते थे। उस समय भारत का कोई भी क्लब उन्हें हरा नहीं सकता था। मैंने उन्हें हराया था। एक बार नहीं, कई बार…। मैं गोल होने ही नहीं देता था। जब हम रैड स्टार क्लब को हराते थे तो अखबारों में सुर्थी हुआ करती थी….”रैड स्टार क्लब बनाम रवि कुमार’… ये देखो अखबार।” और रवि कुमार ने कोट की जेब से लैमीनेशन किया पुराना अखबार निकाल कर उन्हें दिखाया।
“अच्छा, अच्छा..। तुम हो रवि कुमार..। लेकिन अब तुम्हारा समय नहीं रहा। अब समय हमारा है। तुम तीस साल पुरानी बातें आज कर रहे हो…। चल, चलता बन यहां से…।” कोच के साथ बैठे खेल डॉयरेक्टर ने कहा। अन्य बैठे ऑफिसर हंसने लगे।
“मैं आपको बता दूं…। तुम्हारे जैसे पांच-सात कोच और पैदा हो गए न….तो तुम लोग देश से फुटबॉल का नाम ही खत्म कर दोगे। अरे थोड़ा सा खौफ खाओ…अरे …भगवान के घर में…। ऐसे हीरे खिलाड़ी को तुम लोग मिट्टी में गवां रहे हो।” कहते हुए रवि बाहर आ गया।
“पापा, आप चिन्ता न करें, मैं एक दिन चोटी का खिलाड़ी बनूंगा।” आर्यन ने अत्यन्त गर्व से कहा।
रवि अभी भी जहर से भरा हआ था। अपने पत्र को रिक्शे में साथ बिठा कर वह बस अड्डे की ओर चल दिया। रिक्शे पर बैठते ही रवि कुमार खामोश हो गया। उसे अपने खेल के दिन याद आ गए…।
स्कूल से निकलते ही उसे पंजाब किकर क्लब वालों ने अपने क्लब में शामिल कर लिया। दरअसल रवि को एक देहाती फुटबॉल टूर्नामेंट में खेलते हुए उस कलब के प्रधान ने देखा था। रवि क्लब में डिफेंडर की पोजीशन पर खेलने लगा। बहुत जल्दी वह क्लब का बढ़िया खिलाड़ी बन गया। उसकी डिफैंस इतनी जबरदस्त थी कि वह गोलकीपर के सामने दीवार बन कर खड़ा हो जाता था। उसके शरीर में अत्यन्त फुर्ती और लचक थी। लोग कहते थे, भई रवि तो विरोधी टीम के आगे चीन की दीवार बन कर खड़ा हो जाता था, या तो बॉल उसे पार कर जाए। जब विरोधी टीम को पता लगता कि रवि डिफैंस पर है तो उनका दिल टूट जाता। मैच में जब विरोधी टीम का स्ट्राइकर बॉल ले कर आता, वह सेकेण्डों में ही बॉल छीन कर, अपने मिड फील्डर को पास कर देता। विरोधियों को दौड़ा-दौड़ा कर, वह थका देता। सभी उसे लोहे की टांगों वाला रवि भी कहते थे या फिर चीन की दीवार। बात उस समय की है, जब पंजाब किकर क्लब ने नेशनल कप जीता था और रवि कुमार के नाम सुर्खियों में इस प्रकार आया, ‘पंजाब किकर क्लब के लिए चीन की दीवार बना रवि कुमार’। दूसरी अखबार की सुर्जी थी, ‘रवि डिफेंडर बनाम चीन की दीवार।’
बिना किसी डर के वह विरोधी स्ट्राइकर से भिड़ जाता था। पता नहीं कितनी बार गिरा होगा….परन्तु खतरनाक चोट से वह बचता रहा। बचपन में बाप द्वारा खिलाए मटन-चिकन और बकरे के पाए के सूप ने उसकी हड्डियों में लोहा और स्टील भर दिया था। …तब क्लब की सारी टीम रवि के इर्द-गिर्द घूमती थी। उसकी और अन्य साथियों की डिफैंस इतनी तगड़ी थी कि बॉल विरोधियों से छीन कर वे अपने स्ट्राइकरों के सामने फेंक देते थे। उस समय पंजाब किकर क्लब ने ‘नेशनल कप’ जीता था और रवि के नाम के साथ सभी ने ‘रवि डिफेंडर’ जोड़ दिया था। इसी नाम से वह पूरे फुटबॉल जगत में प्रसिद्ध हुआ।
“लीजिए उतरिए बाबू जी! अड्डा आ गया।” रिक्शे वाले ने ब्रेक मार कर रवि का ध्यान तोड़ दिया। ‘रवि डिफेंडर’ मिट्टी हुए शरीर को लेकर रिक्शे से उतरा। उसने अपने ब्लेजर को हाथों से झाड़ा।
उसने रिक्शे वाले को चालीस रुपये दिए और अपने पुत्र से कहा, “बेटा, तम चिन्ता मत करो…। तेरा बाप अपने समय का प्रसिद्ध डिफेंडर रहा है। सभी मझे रवि डिफेंडर के नाम से जानते हैं। जैसे अभी हम शान से रिक्शे से उतरे हैं न, इसी शान से हम तब हवाई जहाज से उतरे थे, जब एशियाई देशों के थाईलैंड में हुए ‘अंतर्राष्ट्रीय गोलडन कप’ जीत कर आए थे। यार क्या शान थी तब तुम्हारे बाप की। यही ब्लेजर पहना था, ‘इंडिया’ लिखा था ब्लेजर पर…तुम दिल छोटा मत करना…तेरी गेम सच में बहुत मार्के वाली है…। तुझे आगे बढ़ने से कोई माई का लाल नहीं रोक सकता। हां, वो अंतर्राष्ट्रीय गोल्डन एशिया कप था ही शान वाला। रवि कुमार को वह कप याद आ गया।
तब अंतिम मैच था। टीम के कोच ने रवि को सख्ती से कहा, ‘तुम्हें यह मैच हर हाल में हारना होगा। हम पर मेजबान कंट्री का बहुत दबाव है। तुम बुरा खेलना बस…और कोई गोल नहीं करना। किक इस तरह से मारना कि बोल गोलपोस्ट के ऊपर से निकल जाए। अधिक से अधिक फॉउल करना। ऐसा नहीं करोगे तो भविष्य में टीम में खेल नहीं पाओगे।’ कोच की बात सुन कर रवि परेशान हो गया। रवि वहां इंडिया के लिए खेलने गया था। ग्राउंड में वार्म-अप करते हुए वह धर्मसंकट में फंसता जा रहा था। रवि उस मैच में स्ट्राइकर खेल रहा था। विरोधी टीम ने ऑफ साईड जा कर गोल किया, जिसे स्वीकार नहीं किया गया। विरोधी टीम ने अपना डिफैंस मजबूत कर दिया। रवि ने अपने साथ के साथ मिड फील्ड पर पूरा दबाव रखा था। गेंद विरोधी के गोल में फेंकना ही उनकी योजना थी। सेकेण्ड हॉफ तक गेम पहुंच गई। अंत में रवि ने कोच की नसीहत को दिमाग से निकाल ग्राउंड के बाहर फेंक दिया और इंडिया के लिए खेलने वाला स्ट्राइकर बन मैदान में कूद पड़ा। उसकी टीम में दाएं-बाएं से स्ट्राइकर बॉल ले कर जाते तो दूसरी पूरी डिफेंस में खेलती टीम बॉल को ग्राउंड से बाहर कर देती। इन्हें ‘कार्नर’ मिल जाता परन्तु बॉल गोल में न पहुंचती। विरोधी पहले ही उसे रोक लेते। सभी गलत खेल रहे थे।
एक बार रवि की टीम के मिड फील्डर ने बॉल को घेर कर दाएं खेलने वाले स्ट्राइकर को दिया और स्ट्राइकर ने बॉल गोलपोस्ट के ऊपर से निकाल दी। ‘अरे साले ने यह क्या किया…यह भी कोच की गेम खेल रहा है…।’ रवि गुस्से से बोला। गेम शीर्ष पर था। मिड फील्डर ने एक बॉल विरोधी से छीन कर रवि को पास की। रवि ने इसे सुनहरी मौका समझा। उसने एकदम निर्णय लिया, ‘अब देखा जाएगा…मैं इंडिया की लाज रखूगा।’ और रवि अपनी गेम खेलने लगा। चीते की फुर्ती से विरोधी के एक डिफेंडर को काटते हुए रवि बॉल लेकर आगे बढ़ा। फिर दूसरा डिफेंडर आ गया। उसने दसरे डिफेंडर को काट कर गोल की ओर बॉल को किक किया तो दसरा डिफेंडर उसकी टांगों के बीच आ घुसा। रवि उसके साथ ही गिर गया और गिरते ही वह दो-तीन पलटनी खा गया। तभी ‘गोल…गोल’ होने का शोर मचा। रवि की जबरदस्त किक से गोल हो गया था। मगर रवि उठ नहीं पाया। उसकी दाहिनी टांग की नीचे की हड्डी में गहरी चोट आई। जो काफी देर बाद जा कर ठीक हो पाई। मगर रवि कुमार बहुत शान से फुटबॉल की टीम के साथ हवाई जहाज से उतरा। उतरते ही कोच ने फरमान जारी कर दिया, ‘मि. रवि कुमार, आज के बाद आप इंडिया टीम में खेल नहीं पाओगे।”
तब रवि कुमार भीतर तक हिल गया, “कोच साहिब! मैंने इंडिया के लिए खेला है। आपके लिए नहीं…यह टांग भी इंडिया के लिए टूटी है…। कोच साहिब …मैंने अपना खेल खेला, आप अपनी गेम खेलो।”
यह सोचते ही वह बस के पास पहुंच गया। बस में चढ़ते ही रवि ने फिर कहा, “बेटा, तुम एक दिन यही ‘इंडिया’ का कोट पहन कर अंतर्राष्ट्रीय खिलाड़ी बनोगे। मैंने तुम्हारा खेल देखा है… इतने सालों से तुम्हें प्रैक्टिस करवा रहा हूं।”
बस गांव की ओर चल दी। अंतर्राष्ट्रीय गोल्डन एशिया कप उसका आखिरी मैच साबित हुआ। अपने कंट्री ‘इंडिया’ लौटने पर तीसरे ही दिन उसे लगी गहरी चोट का बहाना बना कर, उसे अंतर्राष्ट्रीय टीम से बाहर कर दिया गया। परन्तु रवि को इस बात का गर्व था कि उसके गोल द्वारा ही अंतर्राष्ट्रीय गोल्डन एशिया कप इंडिया की झोली में आया था।
रवि कुमार जल्दी ही चोट से उबर आया। घर लौट कर वह फिर से पंजाब किकर क्लब के लिए खेलने लगा। नेशनल कप टूर्नामेंट फिर से शुरू हो गया। क्वार्टर फाइनल में रवि की क्लब का मैच राजधानी फुटबॉल क्लब के साथ था। राजधानी क्लब के दो-तीन खिलाड़ी रवि के प्रति खंदक रखने लगे….जब वह अपने खेल प्रदर्शन के कारण अंतर्राष्ट्रीय गोल्डन एशिया कप टीम के लिए स्लैिक्ट हुआ था।
मैच चल रहा था। रवि डिफेंस पर खेल रहा था। विरोधी टीम के एक खिलाड़ी ने बॉल को बचाते हुए, फारवर्ड खिलाड़ी से आगे बढ़ा। आगे रवि डिफेंडर आ गया। उसने बड़ी फुर्ती से बॉल को उसकी टांगों से निकाल कर, बॉल अपने साथी को पास कर दिया। तभी विरोधी टीम का गुरमुख आ गया, जो स्ट्राइकर खेल रहा था। वह रवि से भिड़ गया। उसने रवि की टांग पर कूदते हुए जूते सहित पंजा मार उसे नीचे गिरा दिया। रवि एकदम उठ नहीं पाया। उसकी बाएं टांग की हड्डी दरक गई। रवि चीखने लगा। रेफरी ने गुरमुख को रेड कार्ड दे कर बाहर कर दिया। परन्तु गुरमुख ने रवि डिफेंडर को गहरी चोट दी। रवि पछता रहा था, उसने गुरमुख को मौका ही क्यों दिया। विरोधी टीम को रवि को ‘बेकार’ ही करना था। रवि की टांग टूटते ही पंजाब किकर की भी टांग टूट गई। फिर रवि को अपने पैरों पर खड़े होने में दो साल लगे। लेकिन खेल उससे हमेशा के लिए छूट गया।
उसने फिर से खेलने की कोशिश की परन्तु रवि के पास वो चीते सी फुर्ती नहीं रह गई थी। उसके अंदर एक डर बैठ गया था, कहीं फिर से टांग टूट न जाए। एक दिन पंजाब किकर क्लब के प्रधान ने उससे कहा, “यार, तुम इतने बड़े खिलाड़ी हो। तेरे जैसा डिफेंडर कोई पैदा नहीं हुआ…। सभी कहते हैं, जिस टीम के आगे रवि डिफेंडर चीन की दीवार के समान खड़ा हो जाता है, वह टीम कभी हारती नहीं, रवि डिफेंडर चीन की दीवार है, जिसके आगे से कोई बॉल निकाल नहीं सकता। स्टेट का ‘महाराजा रणजीत सिंह पुरस्कार’ तुम्हें मिला है…। तुम एक बार चंडीगढ़ जा कर खेल डाइरेक्टर से मिलो और उनसे कहो, तुम्हें कोई नौकरी दिला दे…। यार बहुत नौकरियां होती हैं, उनके पास खिलाड़ियों के लिए। पुलिस में भर्ती होते है खिलाड़ी…तुम देख लो, एस.एस. सिधू तुम्हारे साथ ही क्लब के लिए खेलता था। तुम एक साथ अंडर-वर्सिटी मुकाबले में खेलते रहे थे। वह पुलिस में अफसर हो गया। अब तो वह एस.एस.पी. लग गया है। यार, सरकार के पास बहुत ‘कोटा’ होता है।”
इस सलाह को मान कर रवि चंडीगढ़ चल दिया, अपने सारे सर्टिफिकेट और पुरस्कार लेकर। वह बहुत ‘अभिमान’ से ‘इंडिया’ वाला ब्लेजर पहन कर गया। उसे उम्मीद थी कि खेल डाइरेक्टर उसे गले लगा लेगा और कहेगा, “भई वाह रवि कुमार! रवि डिफेंडर! तुम्हारे जैसे हीरे खिलाड़ी बार-बार पैदा नहीं होते। तुम तो वही हीरे हो, जिसके एक गोल से भारत ने अंतर्राष्ट्रीय गोल्डन कप जीता था।” वह सोचता रहा, “डाइरेक्टर साहिब, मुझे सम्मान से आफिस में बिठाएगा…चाय व बिस्कुट खिलाएगा।”
रवि जब वहां पहुंचा, उसका सपना मिट्टी के बर्तन तरह चूर-चूर हो कर बिखर गया। सामने वही कोच डाइरेक्टर की कुर्सी पर बैठा था, जिस कोच ने उसे थाईलैंड में मैच हारने के लिए कहा था।
उसे डाइरेक्टर की नसीहत अभी भी अच्छे से याद थी, जब उसने डाइरेक्टर का दरवाजा खोला था…
“देखो रवि! तुम्हारी गेम अब खत्म हो गई है यार। कभी थी तुम्हारी पास गेम…। देखो, जब खिलाड़ी के पास गेम होता है, वह खिलाड़ी होता है…। जब सीन से आउट हो गया तो उसके स्थान पर नया खिलाड़ी आ जाता है…। भई अब तो खिलाड़ियों की लाइनें लगी हुई हैं। एक खिलाड़ी गिर जाता है, उसे कोई नहीं उठाता…उसकी जगह लेने के लिए पांच और खिलाड़ी आ खड़े होते हैं। फिलहाल तो कोई नौकरी नहीं है। यदि अधिक ही जिद करते हो तो खेल मंत्री के पास चले जाओ..।” डॉइरेक्टर ने कोरा जवाब दे दिया।
“देखिए डाइरेक्टर साहब! मैं आपके लिए पूरे पन्द्रह साल तक खेला। स्टेट के लिए खेला…देश के लिए खेला…। जब थाईलैंड में खेला तब वहां के खेल चेयरमैन ने मुझसे कहा था, तुम हमारे पास आ जाओ। हमारी टीम में खेलो…। तुम्हारा परिवार भी यहां आ जाए। मगर मैंने कहा, नहीं यार, मैं अपने कंट्री के लिए खेलूंगा…। और आप मेरी देशभक्ति का यह फल दे रहे है।” रवि की आवाज भर्रा आई।
“देखो रवि कुमार! मेरे पास तुम्हारे लिए कोई नौकरी नहीं …न मैं तुम्हें पुलिस में भर्ती करवा सकता हूं….न स्कूल में चपरासी लगवा सकता हूं…। क्योंकि तुमने अपने से बड़े अफसर की बात नहीं मानी…। अब चलते बनो।” डाइरेक्टर तल्ख हो गया।
“जब तक तुम्हारे जैसे सांप खेल विभागों में बैठे हैं, तब तक न कोई खिलाड़ी होगा…न कोई मैडल मिलेगा। तुम लोग अच्छे खिलाड़ियों को डंक मारते हो…। तुम्हारे अपने भाई-बहन …खिलाड़ी बनेंगे। तुम्हारे अपने बेट-बेटियाँ…खेल कोटे से नौकरियां लेंगे। बेड़ा गर्क हो सब का।” और रवि कुमार अपने सारे सर्टिफिकेट, मैडल इकट्ठ कर वापस चल दिया। उसका जी चाहा, वे इन सब चीजों को दरिया में फेंक दे। रास्ते भर वह सोचता आया, उसके साथ खेलने वाले कई खिलाड़ी सरकारी नौकरियों पर लग गए। कोई पुलिस में भर्ती हो गया…कोई रेलवे में और कोई अन्य विभागों में सैट हो गए।
रवि डिफेंडर गांव से उठा था, फिर गांव के लायक ही रह गया। उस दिन के बाद रवि कई दिनों तक घर से बाहर नहीं निकला।
उधर घर में तंगी आने लगी। गरीबी पसरने लगी। उसे प्यार करने वाले विदेश चले गए, साथियों ने उसे कुछ पैसे दिए, जिससे उसने दो कमरे बनवा लिए। साथ में रसोई और बाथरूम बना लिया था। गेट के पिलर पर उसने ‘रवि डिफेंडर, पूर्व अंतर्राष्ट्रीय फुटबॉल खिलाड़ी’ की नेमप्लेट लगा दी।
कुछ समय बाद रवि का विवाह हो गया। उसके घर का खर्चा बढ़ गया। उसकी जिन्दगी की गेम एकदम बेकार हो गई। वह शहर के एक कारखाने में जाने लगा। कारखाने का मालिक किसी समय फुटबॉल खेलता रहा था। वह रवि को जानता था। एक दिन उसने रवि से कहा. “यार रवि तम कारखाने आ जाया करो। काम कोई नहीं. बस कर्मचारियो पर नजर रखना है…। फौरमैनी अच्छा काम है। इससे तुम्हारे घर का गुजारा भी चलता रहेगा।”
घर के चक्रव्यूह में वह ऐसा उलझा कि फुटबॉल उसके सपनों में ही कहीं दफन हो गया। अब उसे फुटबॉल के सपने नहीं आते थे। नहीं तो जब वह फुटबॉल खेला करता था, वह सोते हुए भी टांगें चलाता रहता था। मगर अब उसे उठते ही चिन्ता सताने लगती कि घर में क्या खत्म है, क्या लाना है। दूध के पैसे देने हैं…।
फिर उसके कुछ साथियों ने उसे हौसला दिया। इंग्लैंड में रहते उसके जानकार लड़कों ने गांव के प्राइमरी बच्चों की फुटबॉल टीम तैयार करने का मशवरा दिया। वे हर महीने कुछ पैसे भेजने लगे। रवि डिफेंडर के अंदर सोया खिलाड़ी फिर से जाग उठा। रवि ने स्कूल टीम तैयार करना शुरू कर दिया।
वह अनमने भाव से ग्राउंड में जाने लगा। ग्राउंड में पन्द्रह-बीस बच्चे फुटबॉल खेलने के लिए आने लगे। उन बच्चों के अंदर उसे अपना भविष्य नजर आने लगा। अपने जख्मी अतीत को भीतर दफन कर, वह बच्चों को खेलने के गुर बताने लगा।
वह जब कभी उदास होता तो वह अपना ट्रंक खोल कर, उसमें से अपने सम्मान-पत्र निकालता, एक-एक मैडल को हाथों से महसूस करता। ब्लेजर निकाल कर पोरों से उसे महसूस करता और नम आंखों से फिर ट्रंक में रख कर संभाल देता।
कभी-कभी वह अपना नीला रंग का ब्लेजर पहन कर गांव के ग्राउंड पर जाता। बच्चों को बताता…”मेरा यह नीला ब्लेजर देखते हो…। यह ब्लेजर मुझे इंडिया की टीम में सलेक्ट होने पर मिला था। हम सभी खिलाड़ियों ने यही ब्लेजर पहने थे। ‘इंडिया’ लिखे इस ब्लेजर को पहनने के लिए तुम्हें बहुत सख्त मेहनत करनी होगी। इस ग्राउंड में पसीना बहाना पड़ेगा। तभी तुम इस ब्लेजर को पहन सकते हो…आज से अपना यह लक्ष्य निश्चित कर लो।”
एक दिन वह उसी तरह खुशी में उछल उठा, जैसे अंतर-यूनिवर्सिटी फुटबॉल मुकाबले में अपना पहला गोल करके उछल उठा था।
उसके घर में बच्चे की किलकारी गूंजी। वह बच्चे का बाप बन गया। उसकी मां ने उसके बेटे को उसे दिखाते हुए कहा, “लो रवि! तुम्हारे घर में भगवान् ने बच्चा दिया है। खुशी में लड्डु बांटो।”
रवि ने बच्चे को गोदी में ले, उसका माथा चूमा। उसके मन में एक बार फिर से ‘इंडिया’ वाला ब्लेजर घूमा।
“मां, मैं इसे फुटबॉल का बड़ा खिलाड़ी बनाऊंगा….। जो मैं नहीं कर पाया…वो यह करेगा।”
रवि ने अपनी पत्नी राजविंदर की सलाह से पुत्र का नाम रखा- आर्यन कुमार। रवि ने मेले से उसे जो पहला खिलौना ला कर दिया, वो फुटबॉल था। यह देख कर पत्नी ने मुंह बनाया, “आप फिर हमारे जख्मों पर नमक छिड़क रहे हैं। बीस साल फुटबॉल खेल कर भी आपको चैन नहीं आया।”
कंडक्टर ने सीटी बजाते हुए आवाज दी, “लो भई सम्मीपुर आ गया। यहां वाले उतर जाओ भई।”
रवि का सोच में डूबा मन जिन्दगी की ग्राउंड में फिसल गया। उसने आर्यन से कहा, “आर्यन, उठो गांव आ गया।” खेल से थके आर्यन को बस में बैठे झपकी आ गई थी। वह तेजी से उसके पीछे बस से उतर गया।
“देखो बेटा…यूं हौसला मत हारो। आदमी जब चलता है, तो ऊंचा-नीचा रास्ता आता ही है….कभी-कभी ठोकर खाकर भी गिरता है। मगर आदमी फिर से उठता है। तुम्हारा काम सिर्फ खेलना है….वह भी अच्छा…। मुझे मालूम है, तुम्हारे पास जो स्किल है, वह अन्य किसी के पास नहीं। आज ग्राउंड में सभी को मालूम है, तुम अच्छा खेलते हो। यदि चार आदमी आंखें मूंद भी ले या अंधे हो जाए…तो भी क्या..। कोई तो तुम्हारा गेम देखने वाला पैदा हो ही जाएगा…। अरे पगले, किसी चीज का बीज कभी नाश नहीं होता।”
“ठीक कहते हैं पापा।” कहते हुए आर्यन में फिर हौसला भर गया।
दोनों अंधेरा होने पर घर पहुंचे। रवि खाना खाकर बिस्तर पर जा लेटा। आर्यन भी थकावट के कारण बिस्तर पर लेट गया और अपने बाप रवि के बारे में सोचने लगा।
आर्यन अभी पांच बरस का ही था कि रवि उसे फुटबॉल के दांव-पेच सिखाने लगा। वार्म-अप होना…कमर की लचक…दौड़ने के लिए स्टैमिना बढ़ाना और फुटबॉल के सूक्ष्म से सूक्ष्म दांव रवि उसे समझाता। वह आर्यन को मंह-अंधेरे ही ग्राउंड ले जाता। बाकी खिलाडियों में आर्यन को बिठा देता और समझाने लगता,
“बच्चों! खिलाड़ी की चार आंखें होती हैं…उसकी दो आंखें पीछे होती है। हर खिलाड़ी ग्राउंड में खेलता है। ऐसा नहीं कि बस जोर-जोर से किक मारते रहो। बॉल जमीन पर रहना चाहिए….। हर खिलाड़ी को बस यह नहीं सोचना चाहिए, उसे ही गोल करना है…बॉल पास करना, विरोधी से बॉल छीन कर, आगे पास करो या दाएं-बाएं दो। अगर तुम यहां घिर गए तो बॉल पीछे डिफेंडर की ओर फेंक दो…। अगर तुम्हारे विरोधी मिड फील्ड में एकत्रित हो गए हो तो गेम को दाएं-बाएं फैला दो और आगे बढ़ो…। इस समय स्ट्राइकर का रोल बहुत बड़ा होता है। उसे पूरा जोर लगा कर खेलना चाहिए। जब मैं खेलता था. बॉल मेरे जतों को टच करता था. मझ में चीते सी फर्ती आ जाती थी। विरोधी स्ट्राइकर को मैं पास फटकने नहीं देता था। जब स्ट्राइकर से डिफेंडर या मिड फील्डर बॉल बना कर पास करे तो फिर सारी गेम स्ट्राइकर के पास होती है। जब दबाव बना कर खेलोगे तो गोल करने के बहुत चांस होते हैं।”
आर्यन यह सब सुनता रहता। उसके सामने पिता द्वारा बताई सारी बातें साकार होकर घूमने लगी।
आज भले उसे अंतर्राष्ट्रीय गोल्डन एशिया कप की टीम से बाहर कर दिया गया था परन्तु वह इतनी जल्दी हार मानने वाला नहीं था। आर्यन एक तूफान था, जिसे कोई रोक नहीं सकता था। वह जानता था, उसके मुकाबले का अन्य खिलाड़ी टीम में नहीं था।
उन्नींदी स्थिति में रवि डिफेंडर उसके सामने आ खड़ा हुआ… “पुत्र आर्यन! अगले साल होने वाले ट्रायल की तैयारी शुरू कर दो। …तूफान को कोई रोक नहीं सकता।”
उसे अपने पापा की बात याद आ रही थी, “बेटा! खेल-डाइरेक्टर ने मुझे नौकरी देने से इसलिए इन्कार किया था क्योंकि मैंने उस अंतर्राष्ट्रीय फाइनल मैच में हारने वाली उसकी बात को नहीं माना था। बेटा! मैंने अपनी जिन्दगी का दांव लगा कर गोल किया और ‘इंडिया’ के लिए मैच जीता। यदि मैं चाहता तो मैं भी…।”
“हां पापा! मैं और मेहनत करूंगा। मैं और भी बेहतर खेलूंगा…मैं और भी…।” बुदबुदाते हुए आर्यन को पता नहीं कब नींद ने घेर लिया।
फुटबॉल से खेलने वाला रवि जिन्दगी से खेलने लगा। कभी घर के बर्तनों के साथ खेलता, कभी कारखाने जा कर मजदूरों के साथ खेलता। शाम को गांव के छोटे बच्चों के साथ फुटबॉल खेलता जो बड़े हो रहे थे। उसकी पत्नी राज ने सिलाई सेंटर खोल लिया। वह कपड़े सिल कर गुजारा करने लगी। घर फुटबॉल की तरह रेंगने लगा। रवि के भीतर का डिफेंडर मरा नहीं था। चीन की दीवार अभी टूटी नहीं थी। आसपास के गांवों में जब कभी खेल मेला लगता या सांस्कृतिक मेला लगता तब पोस्टर पर उसकी तस्वीर लगा कर अंतर्राष्ट्रीय प्रसिद्ध फुटबॉल खिलाड़ी डिफेंडर रवि कुमार अवश्य लिखा जाता। उस दिन रवि कारखाने से छुट्टी ले लेता। वह नहा कर अपना ‘इंडिया’ वाला ब्लेजर ट्रंक से निकालता। गले में मैडल पहन कर मेले में जाता। नयी उम्र के खिलाडी उसके पैरों को छू कर आशीर्वाद लेते। पांच-सात लड़के फुलकारी तान कर उसे स्टेज पर ले जाते। उनके आगे पांच-सात ढोल बजाने वाले चलते। विशेष कुर्सी पर बैठ कर उसे लगता जैसे देश का सर्वोच्च ‘अर्जुन पुरस्कार’ उसकी झोली में आ पड़ा हो। मेले के प्रबंधक जबरदस्ती उसकी जेब में चार-पांच हजार रुपये डाल देते। स्टेज से भाषण देते हुए वह नौजवानों को खेलों की ओर जाने की प्रेरणा देते हुए कभी झिझकता नहीं था।
एक बार आर्यन के जे.जे. फुटबॉल क्लब का खालसा फुटबॉल क्लब पंजाब के साथ मैच था। आर्यन जे.जे. फुटबॉल क्लब की ओर से खेल रहा था। उसने देखा कि विरोधी टीम में वो गुरप्रीत भी खेल रहा था, जिसका सलेक्शन कोच ने अंतर्राष्ट्रीय गोल्डन एशिया कप के लिए उसके स्थान पर किया था। उसे देख कर आर्यन को गुस्सा आ गया। खंदक तो उसी दिन से थी। जब कोच ने उसे बाहर बिठा दिया था। मैच शुरू हो गया। आर्यन स्ट्राइकर खेल रहा था। मैच शुरू हुए अभी पन्द्रह मिनट ही हुए थे कि आर्यन में अत्यन्त जोश आ गया। मिड फील्डर से बॉल लेकर वह आगे बढ़ा। विरोधी टीम में एक डिफेंडर गुमराह करते हुए नीचे गिर गया। आर्यन बॉल लेकर तेजी से गोल की ओर बढ़ा, अचानक डिफैंस में गुरप्रीत आगे आ गया। आर्यन ने पूरे जोर से बॉल को किक मारा, इस बार उसका निशाना गोल नहीं, गुरप्रीत था। बॉल गुरप्रीत के मुंह पर गोली की तरह लगा और गुरप्रीत एकदम नीचे गिर गया। बॉल पोस्ट से टकराते हुए नैट में जा गिरी। गुरप्रीत कितनी देर तक उठ नहीं पाया। दो मिनट बाद खेल फिर से शुरू हो गया। एक बार आर्यन तेजी से बॉल लेकर निकला, तब गुरप्रीत उससे बॉल छीनने की कोशिश में पैर तिलक जाने से उल्टा गिर गया। मैच के आखिरी समय में बॉल मिड फील्ड के खिलाड़ियों के बीच घूम रहा था। बॉल गुरप्रीत के पास था। आर्यन ने पीछे से बॉल छीनने के लिए अपनी टांग, गुरप्रीत की टांग में फंसा दी। आर्यन ने उसके जूतों पर जूते रख कर उसे घुटनों के बल गिरा दिया। यह सब कुछ इतनी तेजी से हुआ कि रैफरी को कुछ समझ में नहीं आया। गुरप्रीत उठ न पाया। वह चीखने लगा। उसके घुटने पर गहरी चोट लगी थी। ग्राउंड में बाहर बैठे लोग शोर मचाने लगे कि आर्यन ने जानबूझ कर ऐसा किया था। कुछ समझदार लोगों द्वारा बीच-बचाव करने पर मामला ठंडा हुआ। आर्यन जब अपने बाप के पास पहुंचा तब रवि गुस्से में था,
“पुत्र! यह अच्छे खिलाड़ी का काम नहीं। आज तुम फटबॉल नहीं खेल रहे थे। तम खंदक निकाल रहे थे। तम्हारा टारगेट खेलना. गोल करना नहीं था बल्कि उस लडके को चोट पहचाना था। यदि उसकी टांग टूट जाती, मालूम है क्या होता…? रवि उदासी से बोल रहा था।
“अब खेल ले एशिया कप…। मेरी जगह पर गया था न…।” आर्यन विजयी अंदाज में बोल रहा था।
अंतर्राष्ट्रीय गोल्डन एशिया कप का दूसरा साल का ट्रायल आर्यन के लिए अंतिम साबित हुआ। उस दिन भी रवि अपना वही ‘इंडिया’ वाला नीला ब्लेजर पहन कर, आर्यन के साथ खेल के मैदान में गया। मैदान में भेजते समय रवि ने उसका कंधा थपथपाया और कहा, “बेटा! देखना इस बार तुम्हारा सिलेक्शन पक्का।”
मैच से पहले ही कोच ने पांच खिलाडियों को एक ओर खडा कर लिया। इन पांचों में आर्यन भी था। कोच ने कहा, “तुम रवि कुमार के बेटे हो?”
“जी!”
“देखो, तुम्हारा स्लेक्शन इस बार भी नहीं होगा। तुम चाहे खेलो या न खेलो..। इन दो लड़कों की गेम मैंने देखी है…इनका चुनाव करने के लिए ऊपर से खेल डाइरेक्टर के आदेश भी है।” कोच ने स्पष्ट कह दिया।
वर्दी पहन कर, जूते पहन कर, खेलने के लिए तैयार-बर-तैयार आर्यन ने मन ही मन कहा, “अगर मेरा चुनाव नहीं करना तो इन्हें आगे मैं भी जाने नहीं दूंगा।” आर्यन गुस्से में था।
आर्यन स्ट्राइकर पोजीशन पर खेलता था। मगर कोच ने उसे डिफेंडर खेलने को कहा। वे दोनों खिलाड़ी, जिन्होंने आठ व नौ नंबर की जर्सी पहन रखी थी, उन्हें स्ट्राइकर पोजीशन पर खेलना था। कोच ने पांचों खिलाड़ियों को आर्यन की ओर कर दिया। जिस कारण विरोधियों ने शुरू में ही दबाव बना लिया। पहले पांच मिनट में ही विरोधियों ने गोल कर दिया। अगले तीन मिनट बाद एक विरोधी डिफेंडर का गोल के सामने बॉल पर हाथ जा पड़ा। उन्हें पैनल्टी मिल गई। यह तो सीधा गोल था। नौ नंबर के खिलाड़ी ने किक मार कर दूसरा गोल दाग दिया। आर्यन खीझ गया। गेम को जानबूझ कर उलट दिया गया था ताकि आर्यन फुर्ती से खेल न पाए। अगले राउंड में आठ नंबर खिलाड़ी बॉल निकाल कर गोल की ओर बढ़ा। सामने आर्यन आ गया। उसने पूरे जोर से बॉल को किक मार दी, परन्तु बॉल तो दूसरे के पास जा चुका था और जूते सहित वह जोरदार किक आठ नंबर के खिलाड़ी की टांग पर जा लगी। किक इतनी तेज थी कि घुटने के नीचे टांग मुड़ गई। वहां अन्य खिलाड़ी भी गिर गए। किसी को मालूम न हुआ कि चोट कैसे लगी थी।
“लो खेलो बेटा, तुम भी एशिया कप।” रवि कुमार समझ चुका था। उसे उठा कर अस्पताल ले जाया गया। मैच फिर से शरू हो गया। तब मैच का पहला हॉफ खत्म होने वाला था। जब आर्यन को लंबा पास किया हुआ बॉल मिला। उसने फुर्ती से घूम कर बॉल को विरोधी टीम के गोल की ओर बढ़ाया। विरोधी स्ट्राइकर की पोजीशन पर खेल रहे नौ नंबर के खिलाड़ी ने फूर्ती से आर्यन से बॉल छीन ली और एकदम से घूम गया। भला आर्यन यह कैसे बदर्शत करता। कोई विरोधी खिलाड़ी उससे बॉल छीन ले। वह एकदम गुस्से से चीख उठा। उसके दिमाग में कोच का स्वर गूंज उठा, “देखो! तुम्हारा सलेक्शन इस बार भी नहीं होगा। ये जो आठ और नौ नंबर के खिलाड़ी खड़े हैं, यही अंतर्राष्ट्रीय गोल्डन एशिया कप के लिए जाएंगे।” आठ नंबर के खिलाडी की टांग में मोच तो पहले ही आर्यन के जूते से पड गई थी। अब इस की बारी थी। आर्यन गोली की तरह नौ नंबर के पीछे भागा। दौड़ने में उसका कोई मुकाबला नहीं था। एकदम उसने दाएं टांग का जूता पंजे सहित उसकी दोनों टांगों से निकलते बॉल पर दे मारा। मगर नौ नंबर का खिलाडी आर्यन के अचानक पैर पड़ने से उखड़ गया। …वह आंधी समान जा रहा था। उसने दो-तीन बार पल्टनी खाई। पहले वह सिर की ओर से गिरा। लड़का जलेबी समान टेढ़ा-मेढ़ा हो गया। फिर वह खुद से उठ नहीं पाया। रेफरी ने मैच खत्म कर दिया। कोच भागते हुए आया। वह आर्यन का हिंसक खेल समझ गया। रवि भी अपने पुत्र का गेम देख कर परेशान हो गया।
“क्या हो गया तुझे आर्यन ….?” मन ही मन कहते हुए वह उधर की ओर चल दिया।
उसके निकट जा कर कोच गुस्से से बोल रहा था, “देखो लड़के! तुमने आज जानबूझ कर दो खिलाड़ियों को चोट लगाई। पहले तुमने आठ नंबर के लड़के की टांग तोड़ दी। फिर इसके सिर में चोट मारी…तुम्हें मालूम था कि तुम्हें नहीं खिलाया जा रहा…तुम ने सलेक्ट होने वाले खिलाडियों को जान-बूझकर ‘बेकार’ कर दिया…।”
“आर्यन बेटा, तुम्हें क्या हो गया आज। तुम तो अच्छे-भले खेलते थे। मैंने तुम्हें यह तो नहीं सिखाया कि भई तुम विरोधी खिलाड़ियों को चोट पहुंचाओ। आज तुमने चोट इन खिलाड़ियों को नहीं, मुझे दी है।” रवि भी तल्ख हो गया।
“ऐ लड़के, कान खोल कर सुन ले….जब तक मैं इस गेम में हूं…तुम्हें कहीं भी खेलने नहीं दूंगा….न किसी क्लब में न किसी टूर्नामेंट में। तेरे बाप ने अपनी मनमर्जी कर के देख लिया देखा बर्बाद हो गया…। अब त अपनी मर्जी करने लगा है और हम मनमर्जी करने वालों को बर्बाद कर के रख देते हैं।” कोच ने अपना फैसला सुना दिया।
उसी समय रवि आर्यन की कलाई पकड़ कर चल दिया। कुछ खिलाड़ी आर्यन को मारने के लिए आगे बढ़े। आर्यन की देह मिट्टी होने लगी। खेल मैदान में हवा से बातें करने वाला….चीते की फुर्ती वाला आर्यन इस समय मुश्किल से ही स्वयं को खेल मैदान से बाहर ले जा रहा था।
“तुमने आज मेरी बीस साल की गेम को मिट्टी में मिला दिया बेटा! मेरे ब्लेजर की लाज तो रखता…देखता है न ‘इंडिया’ लिखा है इस ब्लेजर…पुत्तर ऐसे नहीं मिलते यह ब्लेजर…। तपस्या करनी पड़ती है…सच्चे खिलाड़ी की तरह खेलना पड़ता है…मगर तुम ने बेटा आज खेल के मैदान में मेरी पीठ लगा दी। उस खिलाड़ी की पीठ लगा दी, जिसने अंतर्राष्ट्रीय गोल्डन एशिया कप में ‘इंडिया’ की पीठ नहीं लगने दी थी…तुम ने उस खिलाड़ी की पीठ लगा दी। कभी इस मैदान में मुझे पंजाब लीग में बढ़िया खिलाड़ी का खिताब मिला था। आज तुमने मुझे इस मैदान में मिट्टी कर दिया…।”
“पापा! कोच ने पहले ही मुझे कह दिया था कि वह मेरा सलेक्शन नहीं करेगा…इन दोनों का करेगा…ऊपर से खेल डाइरेक्टर का आर्डर है …और पापा मैं कोच की बात सुन कर पागल हो गया था…।”
रवि डिफेंडर अपने पुत्र की बात सुन कर मिट्टी हो गया।
आर्यन सिर झुकाए जाते हुए फिर कहने लगा, “पापा! आप इतने बड़े खिलाड़ी रहे। ‘इंडिया’ का ब्लेजर पहन कर आप भी मेरे लिए ‘ऊपर से’ आर्डर ले आते।”
रवि की आंखें भर आईं। उसने उसी ब्लेजर की आस्तीन से आंखें पोंछ ली।
रवि ने ‘इंडिया’ के नाम वाले ब्लेजर को उतार कर हाथ में ले लिया। कुछ कदम आगे बढ़ते हुए उसने वह ब्लेजर जोर से ग्राउंड की ओर फेंक दिया।
आर्यन भौंचक्का सा मिट्टी में लिपट गए ब्लेजर की ओर देखता रह गया। रवि डिफेंडर, अपने पुत्र का हाथ पकड़ कर ग्राउंड से बाहर हो गया।
“अरे देशवासियों! आज के बाद मुझे कभी रवि डिफेंडर कह कर मत पुकारना। मर गया आज रवि..डि..फड..।” हवा को चीरता हुआ उसका स्वर मैदान की दीवारों से टकरा कर खामोश हो गया।
भारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा मालाभारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा माला’ का अद्भुत प्रकाशन।’
