Mother in law and daughter in law
Ehsaas ki Dor

Summary: एहसास की डोर: सास-बहू से माँ-बेटी तक का सफ़र

सास जो शुरू में बहू को नापसंद करती थी, बीमारी के समय उसकी देखभाल से समझ पाती है कि बहू ही घर की असली धुरी है।

Short Story in Hindi: सुनीता देवी अपने बेटे कबीर पर जान छिड़कती थीं। उनका सपना था कि बहू भी उनकी पसंद की हो, जो उनकी परंपराओं का पूरा ध्यान रखे। लेकिन कबीर ने अपनी पसंद से शादी कर ली आर्या से।

शादी के शुरुआती दिनों में ही सुनीता देवी को लगा कि यह लड़की उनके मुताबिक नहीं है। आर्या साधारण कपड़े पहनती, ज़्यादा बोलती नहीं और घर के कामों में धीरे-धीरे हाथ बँटाती। जब सुनीता देवी देखती कि दाल में नमक कम है या पूजा की थाली में फूल उल्टे रख दिए गए हैं, तो झुंझलाकर कह देतीं,

“हमारे ज़माने की बहुएं पहली ही बार में सब सीख जाती थीं। तुम्हें तो बार-बार समझाना पड़ता है।”

आर्या चुपचाप सुन लेती। कई बार आँखें भर भी आतीं, मगर उसने कभी पलटकर कुछ नहीं कहा। वह जानती थी कि अपनापन समय लेता है।

धीरे-धीरे घर में एक अनकही दीवार खड़ी हो गई। कबीर दोनों के बीच तालमेल बिठाने की कोशिश करता, लेकिन माँ-बेटे की बातें ज़्यादा सुनी जातीं और आर्या का मन दब जाता। पड़ोस की औरतें भी कान में फुसफुसा देतीं, “नई बहू तुम्हें ज़्यादा भाव नहीं देती।”

यह सुनकर सुनीता देवी और कड़वी हो जातीं।

कुछ महीनों बाद अचानक सुनीता देवी को तेज़ बुखार हो गया। कबीर दफ़्तर की मीटिंग्स में फँसा रहता, ऐसे में पूरा घर सँभालने की जिम्मेदारी आर्या पर आ गई। उसने दवा दी, गरम सूप बनाया और रातभर तकिया ठीक करती रही।

एक रात जब सुनीता देवी करवट बदलते हुए दर्द से कराह उठीं, आर्या ने तुरंत उनका हाथ थाम लिया और बोली,

“माँ, घबराइए मत… मैं यहीं हूँ।”

उस पल सुनीता देवी ने उसकी आँखों में देखा। उनमें सच्चा अपनापन और चिंता झलक रही थी।

दिन बीते, सुनीता देवी की तबीयत ठीक होने लगी। उन्होंने गौर किया कि जिस बहू को वह अब तक केवल आलोचनाओं की नज़र से देखती थीं, वही पूरे घर की धुरी बनी हुई है। न सिर्फ उनका ख्याल रख रही थी बल्कि पड़ोसियों से लेकर नौकर तक सबको संभाल रही थी।

एक शाम जब आर्या दवा लेकर आई, सुनीता देवी की आँखें भर आईं। उन्होंने काँपते स्वर में कहा—

“बिटिया, मैंने तुम्हें कभी सही से समझा ही नहीं। तुम तो मेरी बेटी से भी बढ़कर हो।”

आर्या हल्की मुस्कान के साथ बोली,

“माँ, बेटी और बहू में फ़र्क क्यों? घर तभी घर बनता है जब हम एक-दूसरे को अपनाएँ।”

उस दिन से सास-बहू का रिश्ता बदल गया। अब सुबह की पूजा साथ होती, रसोई में हँसी-ठिठोली सुनाई देती। पड़ोस की औरतें कहने लगीं—

“सुनीता जी की बहू तो सच में उनकी परछाई लगती है।”

कबीर ने भी चैन की साँस ली। उसे महसूस हुआ कि घर का वातावरण कितना बदल गया है।

यह कहानी बताती है कि रिश्ते केवल परंपराओं से नहीं, बल्कि अपनापन और धैर्य से बनते हैं। शुरुआत में अगर सास को बहू की आदतें खलती हैं तो इसका मतलब यह नहीं कि रिश्ता हमेशा दूरी में बँधा रहेगा। समय, देखभाल और सच्चे प्रेम से हर दीवार ढह सकती है और रिश्ते एहसास की डोर से मज़बूती से जुड़ सकते हैं।

राधिका शर्मा को प्रिंट मीडिया, प्रूफ रीडिंग और अनुवाद कार्यों में 15 वर्षों से अधिक का अनुभव है। हिंदी और अंग्रेज़ी भाषा पर अच्छी पकड़ रखती हैं। लेखन और पेंटिंग में गहरी रुचि है। लाइफस्टाइल, हेल्थ, कुकिंग, धर्म और महिला विषयों पर काम...