दूर न जाओ—गृहलक्ष्मी की कहानियां
Dur Na Jao...

गृहलक्ष्मी की कहानियां-शादी के बाद संजीव जब नई नवेली दुल्हन को लेकर घर पहुंचा तो चारों ओर खुशी और उल्लास का माहौल था। हर कोई दुल्हन का चांद सा मुखड़ा देखने के लिए उत्सुक था। बच्चे तो अभी से दुल्हन से बातें करने के लिए बेचैन हुए जा रहे थे। संजीव भी उतावला था।जयमाल के समय उसने दुल्हन कि एक झलक देखी थी परंतु उस समय इतनी निगाहें उन दोनों पर टिकी हुई थी कि वह चाह कर भी उसे भरपूर नजरों से नहीं देख सका। इसके बाद शादी की रस्में तेजी से निपटायी जाने लगी और फिर घूंघट में छुपा कर दुल्हन की विदाई कर दी गई।

रात को संजीव हसीन सपनों में खोया हुआ कमरे में दाखिल हुआ। पूरा कमरा रंग-बिरंगे फूलों से सजा हुआ था तथा परफ्यूम की मादक गंध चारों तरफ फैली हुई थी। पूरा शबनमी माहौल दो जवां दिलों के एक साथ धड़कने का गवाह बनने वाला था। संजीव धीरे-धीरे पलंग की ओर बढ़ा। वहां पहुंचकर जब उसने दुल्हन के चेहरे को देखा तो उसका दिल जोर-जोर से धड़कने लगा ।पलंग पर साक्षात सौंदर्य की देवी बैठी हुई थी। कुछ देर तक तो संजीव अपलक उसे निहारता रहा फिर जेब से हीरे की अंगूठी निकाली। अपनी पत्नी के लिए यह उसका प्रथम स्नेहोपहार था। लेकिन यह क्या? उसने जैसे ही अंगूठी उसे पहनाने की कोशिश की दुल्हन ने अपने हाथ खींच लिए। संजीव ने सोचा कि शायद वह शर्मा रही है इसलिए ऐसा कर रही है। उसने उसके हाथों पर अपना हाथ रखा। परंतु संजीव को इस बार भी प्रतिरोध का सामना करना पड़ा। संजीव ने एक बार फिर उसके नजदीक जाने की चेष्टा की इस बार दुल्हन ने उसे धक्का दे दिया और वह पलंग से नीचे गिर गया।
संजीव हैरान था कि सुहागरात को एक पत्नी अपने पति से ऐसा बर्ताव कैसे कर सकती है। उसने उठकर प्रश्न किया“हर्षिता यह क्या हो गया है तुम्हें? क्या तुम नहीं जानती कि मैं तुम्हारा पति हूं?“हां आपका और मेरा विवाह हो चुका है और इस नाते हम पति-पत्नी है। परंतु यह विवाह केवल एक समझौता है। कृपया इस समय आप मुझे चुपचाप सोने दे, नहीं तो मैं अपनी भावनाओं पर काबू नहीं रख पाऊंगी और फूट-फूट कर रो पड़ूंगी। इतना कह कर हर्षिता चुपचाप लेट गई। संजीव की हिम्मत नहीं हुई कि वह उससे और कुछ पूछे या उसके नजदीक जाये। वह पास रखे सोफे पर जाकर करवटें बदलने लगा।
अचानक यह क्या हुआ संजीव समझ न सका। शादी के पहले तो उसने सुना था कि हर्षिता सर्वगुण संपन्न और काफी सलीके वाली लड़की है। घर में होने वाली दुल्हन के रूप और गुण की चर्चा सुनकर संजीव फूला नहीं समा रहा था और शादी के पहले से ही शादी के हसीन सपने देखने लगा था। उसने अपने मित्र विनय से सुना था की सुहागरात को पत्नी अपने पति पर प्रेम की ऐसी रसवर्षा करती है कि वह सराबोर हो जाता है।विनयकी बात तो झूठी निकली ही संजीव के सपने भी बिखर कर रह गए। हर्षिता का प्रथम रात्रि का व्यवहार आश्चर्यजनक था। संजीव के मन में रह-रह कर सवाल उठ रहे थे क्या मैं हर्षिता को पसंद नहीं हूं? क्या वह किसी और को चाहती है? क्या यह विवाह उसकी इच्छा के विरुद्ध हुआ है? परंतु आजकल तो हर मां-बाप शादी के पहले लड़की की रजामंदी जरूरी समझते हैं। फिर ऐसा क्यों? संजीव रात भर इन्हीं खयालों से जूझता रहा।
सुबह की पहली किरण फूटते ही संजीव जब अपने विचारों की कुहेलिका से निकला, तो देखा कि हर्षिता चाय का प्याला लेकर उसके सामने खड़ी है। सुबह की ओस सी शीतल और लजीली-शर्मीली हर्षिता की नजरें नीचे झुकी हुई देख कर संजीव को लगा कि शायद रात की घटना से उसे ग्लानि हुई है।इसीलिए उससे नज़रें नहीं मिला पा रही है। लेकिन संजीव ने चाय का प्याला लेकर जब उसे अपनी बगल में बैठने का इशारा किया तो वह झट से कमरे से निकल गई। संजीव को कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि ऐसी सुंदर, सुशील और कोमल लड़की प्यार की जगह उस पर पत्थर क्यों बरसा रही है
दिन पर दिन बीतते रहे हर्षिता की रातें पलंग पर और संजीव की सोफे पर कटती रहीं। संजीव चाह कर भी हर्षिता के ह्रदय को कुरेद न सका, क्योंकि उसने पहले ही आगाह कर दिया था कि वह अपनी भावनाओं पर नियंत्रण न रख सकेगी और रो पड़ेगी। अपनी पुलिस की नौकरी में संजीव ने ना जाने कितने अपराधियों से राज उगलवाये थे परंतु अपनी पत्नी के दिल में छुपी बातें जानने में वह अपने को असफल पा रहा था। अपराधी उसके सामने गिड़गिड़ा ते थे। परंतु अपनी पत्नी को रुलाना! यह उससे ना हो सकेगा।
संजीव ऑफिस पहुंचा तो उसका मित्र इंस्पेक्टर विनय मिल गया। विनय को आदमी के चेहरे के भाव पढ़ने की कला में महारत हासिल थी। उसने संजीव का हाथ पकड़ते हुए कहा-‘यार कई दिनों से तुम्हारा बुझा हुआ चेहरा देख रहा हूं। तुम्हारी आंखों में एक अजब सी शून्यता तैरती रहती है। शादी के बाद तो पुरुष प्रसन्नचित्त दिखाई देते हैं, परंतु तुम एकदम बेहाल दिख रहे हो। बात क्या है? भाभी जी से कोई अनबन हुई है अथवा किसी अपराधी को लेकर परेशान हो?’ विनय और संजीव सच्चे दोस्त थे और अपनी बातें एक दूसरे से शेयर करते थे।‘यार एक शातिर अपराधी को मैंने दस दिन की पुलिस रिमांड पर लिया है। कल उसका दसवां दिन पूरा हो रहा है, परंतु मैं उससे पूछताछ नहीं कर पाया हूं। वह कुछ भी बताने के पहले नशे की मांग करता है।‘ यह कह कर संजीव ने अपनी वैवाहिक समस्या छुपा ली। बताता भी कैसे! क्या विनय से यह कहता कि उसकी पत्नी ने सुहागरात को उसे धक्के देकर पलंग से गिरा दिया है या फिर यह बताता की शादी के बीस दिनों बाद भी दोनों अलग-अलग सोते हैं।
अगले दिन संजीव ऑफिस पहुंचा तो उसकी जेब में सचमुच नशे की पुड़िया थी। वह जानता था कि किसी अपराधी को नशा मुहैया कराना कानूनन गलत है। परंतु आज रिमांड का दसवां दिन पूरा हो रहा था और संजीव प्रण करके आया था कि वह अपराधी से राज उगलवा कर ही रहेगा, भले इसके लिए उसे कानून से हटकर काम करना पड़े। लॉकअप में संजीव ने उसे पुड़िया दिखाते हुए कहा,“देखो आज मैं तुम्हारे लिए क्या लाया हूं।यदि तुम मुझे अपने सारे अपराधों के बारे में एक-एक कर बताओ तभी यह नशे की पुड़िया मैं तुम्हें दूंगा। नशे की पुड़िया को देखकर मोहन की आंखों में चमक आ गई। वह बोलने लगा,“मेरे अपराधकी शुरुआत तब हुई थी जब मैंने एक लड़की की इज्जत को तार-तार किया था। इसके बाद मैं अपराध की दुनिया में चला आया। हेडमास्टर सुधाकर पाण्डेय की हत्या मैंने हीं की थी और बैंक की शाखा से छप्पन लाख की डकैती भी मैंने हीं डाली थी।“ वह अपने आपराधिक जीवन की परतें खोलता चला गया। संजीव ने पूछा,“जिस लड़की की इज्जत को तुमने दाग़दार किया था वह कौन थी?”“वह मेरी दूर की ममेरी बहन थी लेकिन मुझे अपने सगे भाई जैसा मानती थी। आठ बजे शाम को जब मैं उसके घर गया तो वह एकदम अकेली थी। वह मेरे लिए किचन में कॉफी बनाने गई कि मैंने उसे पीछे से पकड़ लिया। वह भैया-भैया चिल्लाती रही परंतु मैंने उसकी एक न सुनी। संजीव ने पूछा,“क्या नाम था उसका और वह कहां रहती थी?”“उसका नाम हर्षिता था और वह मॉडल टाउन में रहती थी। वह तेजिंदर जी की बेटी थी।”- अपराधी ने कहा। संजीव के दिमाग में जोर का धमाका हुआ। हर्षिता तो उसकी पत्नी का नाम है। क्या इसने…। क्या इसीलिए हर्षिता…। संजीव तेजी से लॉकअप रूम से निकल गया और घर की ओर चल पड़ा।

अपने कमरे में पहुंचकर संजीव ने हर्षिता से प्रश्न किया,“हर्षिता क्या तुम मोहन को जानती हो?” प्रश्न सुनकर हर्षिता सूखे पत्ते की तरह कांपने लगी और चिल्ला उठी “नहीं मैं किसी मोहन को नहीं जानती। मैं किसी को नहीं जानती। तुम चले जाओ यहां से।” लेकिन संजीव ने उसे जोर से पकड़ लिया और बोला,“नहीं हर्षिता आज मैं अपने और तुम्हारे बीच से मोहन को खत्म करके ही रहूंगा। आज मैं तुम्हारी एक न सुनूंगा।” संजीव की बाँहों का बंधन और मजबूत होता जा रहा था कुछ देर तक तो हर्षिता छटपटाती रही और उसके मजबूत बंधन से निकलने का प्रयास करती रही, पर धीरे-धीरे शांत पड़ गई। इसके बाद उसने भी संजीव को अपनी बाँहों में ले लिया। संजीव ने धीरे से एक चुम्बन उसके गालों पर जड़ दिया। प्रेम की मादक गंध से पूरा कमरा महक उठा।

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