भारत कथा माला
उन अनाम वैरागी-मिरासी व भांड नाम से जाने जाने वाले लोक गायकों, घुमक्कड़ साधुओं और हमारे समाज परिवार के अनेक पुरखों को जिनकी बदौलत ये अनमोल कथाएँ पीढ़ी दर पीढ़ी होती हुई हम तक पहुँची हैं
कोई उत्तर नहीं मिला इसलिए उसने जोर से चिल्लाते हुए कहा, “छोटकी”
“क्या है दीदी? क्यों इतने जोर से चिल्लाती हो?”- छोटी ने रौब जमाते हुए कहा।
“देख छोटी, पहली बात तो यह है कि मैं तेरी बड़ी बहन हूँ इसीलिए तुझे मेरे साथ सभ्यता से बात करनी चाहिए। मैं तुझसे जो पूछ्रे उसका उत्तर अच्छे से देना चाहिए।
“आप तो हर वक्त सलाह मशवरा ही देती रहती हैं।”
“नहीं हर वक्त मैं सलाह नहीं देती हूँ और न ही मैं टोकती फिरती हूँ।” तू जब मेरी बातों का सीधा जवाब नहीं देती है, उसी वक्त ही मैं तुझ पर चिल्लाती हूँ।”
“हाँ-हाँ ठीक है, क्या काम है बता दीजिए।” छोटी ने फिर भी बेरुखी से कहा।
“क्या काम ऐसा पूछती है? घर में सारा दिन कुछ न कुछ काम तो होता ही रहता है, पर तुझे क्या? तू तो सारा दिन सजने-धजने में ही बीता देती है।” बडी बहन को छोटी का यह सजना-धजना बिलकल अच्छा नहीं लगता था।
छोटी ने कहा, “देखो दीदी मुझे तानें मत मारो। रामू चाचा आकर घर का सब काम कर देते हैं। फिर मेरे लिए कोई काम ही नही बचता है। मैं सारा दिन क्या करूँ?”
“क्या करूँ क्या? कुछ पढ़ाई-लिखाई करनी नहीं है।”
“पूरा दिन थोड़ी ही न पढ़ना होता है? और कुछ भी तो करना चाहिए।”
“तो क्या पूरा दिन सजने-धजने में ही निकालना है?” आखिरकार बड़ी बहन ने छोटी के सजने पर अपनी नाराजगी प्रकट कर ही दी।
छोटी भी यह बात भली-भांति समझती थी इसीलिए उसने कह दिया, “आपको मेरा यह सजना-सवारना कतई नहीं पसंद नही हैं, साफ-साफ क्यों नहीं कह देती? हालांकि आप मेरी उम्र की थी, तब आइने के सामने से हटती ही नहीं थी। आपके बाल भी कितने लंबे थे माँ तो कंघी करते-करते थक जाती थीं। फिर आप उनमें गजरा लगाती थी। माँ ने मुझे सब बताया है।
बड़ी बहन ज्यादा कुछ सुन नहीं पाई। साड़ी के पल्लु से अपने केशविहीन सर को ढकती हुई वह पूजा के कमरे में चली गई और फूट-फूटकर रोने लगी।
लेकिन ऐसा पहली दफा नहीं हुआ था। पहले भी ऐसा हुआ था। एक बार छोटी ने घुगरिया गड़े लहंगा पहने की जिद कर रही थी। पहले तो छोटी ने बड़ी बहन से बहुत मिन्नते की थी। बड़ी बहन ने लहँगा पहनने की वजह पूछी तो छोटी ने कहा, “मुझे शिव-पार्वती के मंदिर जाना है। मैनें गौरी व्रत रखा है।”
“तू यह गौरी व्रत किस लिए रखती है? अच्छा पति पाने के लिए या सज-धज कर बाहर जाने के लिए?”
“दोनों बात सही है।” नटखट छोटी ने बताया।
“नहीं, व्रत सिर्फ अच्छा पति पाने के लिए ही किया जाता है।” बड़ी बहन ने बोल तो दिया, लेकिन फिर वह गहरी सोच में डुब गई। उसने भी तो बहुत सारे व्रत रखे थे, पर क्या उसको पति सुख मिला? जब वह अपने कमरे में से बाहर आई तो छोटी को उसने नहीं देखा।
वह अंदर गई, पिटारा खुला हुआ था….
जब छोटी वापस आई तो उन दोनों में बहुत बहस हुई। बड़ी बहन ने छोटी को बहुत डांटा, लेकिन छोटी पर उसका कोई प्रभाव नहीं पड़ा।
एक दिन मध्याह्न से लेकर देर शाम तक गृह का द्वार खुला ही नहीं छोटी को अपनी सहेलियों के साथ उसकी एक सहेली की शादी में जाना था। छोटी को शादी में जाने के लिए बाल बनाने थे। लहंगा-चोली पहनना था, उस पर चुनरियाँ भी ओढ़नी थी। माँ ने एक नकली हार दिया था, वह पहनना था और बड़े-बड़े झुमके भी। छोटी ने तीन-चार बार द्वार खटखटाया, लेकिन उसकी बड़ी बहन द्वार खोलती ही नहीं थी। वह चिल्लाने लगी, पर उसका कोई असर उस पर नहीं पड़ा ही नहीं। “ओह! वह कब सजेगी? कब? थोड़ी देर में ही सारी सहेलियां आ जाएगी?”
छोटी ने धैर्य छोड़ द्वार पर डंडे लगाने शुरू कर दिया। आखिर द्वार खुला। पर यह क्या? उसकी बड़ी बहन आदमकद आईने के सामने खड़ी-खड़ी लाल और हरी बंधेज व रेशम की साड़ी का पल्लू ठीक कर रही थीं।
छोटी से रहा नहीं गया, “दीदी यह क्या कर रही हो? आपको यह लाल-हरा बंधेज पहनना नहीं चाहिए। यह तो शादी का जोड़ा है। वह तो सौभाग्यवती…”
“क्या? क्या मैं यह नहीं पहन सकती?” वह फूट-फूटकर रोने लगी।
उस वक्त बम्बई से उन दोनों बहनों के पिताजी के मित्र उनके घर आए थे। उन्होंने यह दृश्य देखा और उनके कानों में दोनों बहनों की बात सुनाई दी।
वे वहीं खड़े रह गए। उन्होंने बड़े प्यार से बड़ी बहन को देखा और सर पर हाथ रखते हुए कहा, “बेटा! आप यह लाल हरा बंधेज जरूर पहन सकती हो। तुम पर यह कितना निखरता है। वैसे तू अभी कितनी छोटी है। तेरी उम्र सजने-धजने के ही तो है।”
“अरे पर वह…” उन दोनों के पिता नवीन भाई ने कहा। पर क्या नवीन? जमाना कितना बदल गया है। मैं तो कहता हूँ उसकी दूसरी शादी करा दो। जो चल बसा है वह चल बसा है, उसके पीछे रोने-धोने में क्यों जिंदगी को बर्बाद कर देना? यह कोई धर्म नहीं है यह तो एक सड़ी हुई परंपरा है।
फिर उन्होंने बड़ी बहन के सर को सहलाते हुए कहा, आज से तू सजेगी-धजेगी, गाएगी, नाचेगी। तेरा हर सपना पूरा करने की जिम्मेदारी मेरी, चल अब हंस दे।”
बड़ी बहन ने छोटी की ओर प्यार से देखा, तो छोटी भी उसकी ओर टुकुर-टुकुर देख रही थी। दोनों बहनें हँसती हुई गले मिली। पूरा घर जैसे पंछिओं के कलरव से चहकने लगा।
भारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा मालाभारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा माला’ का अद्भुत प्रकाशन।’
